Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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आज का कुण्डलिया छंद

 

डॉ अजय जनमेजय

 

 

 

  • धरती चक्कर काट के, सूरज का इक और |
    भेंट करे नववर्ष को ,कुछ तो करिए गौर |
    कुछ तो करिए गौर ,सोचिये कुछ तो कारण |
    हुई धरा बैचेन ,करेगा कौन निवारण |
    माँ जैसी ये रोज ,दिलों में खुशियाँ भरती |
    रखें धरा का ध्यान ,मिली माँ जैसी धरती ||

     

  • दुख शिक्षक सबसे बड़ा ,इससे बड़ा न कोय |
    जो -जो इससे है पढ़ा ,वो काहे को रोय |
    वो काहे को रोय ,कष्ट जो जाने सहना |
    वो तो हर हालात ,सीख जाता है रहना |
    जिसको हो ये बोध ,यहाँ क्षणभंगुर है सुख |
    वो तो चाहे ज्ञान ,ज्ञान का शिक्षक है दुःख ||

     

  • जगा लिए जब आपने, भीतर के भगवान |
    रूप तभी भगवान का ,बनता है इंसान |
    बनता है इंसान ,जानकार प्रभु की सत्ता |
    प्रभु के बिन संज्ञान ,न हिल पाता है पत्ता |
    मिट जाते सब फर्क ,कौन क्यों कोई क्या कब |
    भीतर के भगवान् ,आपने जगा लिए जब ||

     

  • तैराकी में थे निपुण ,डूबे उथले नीर |
    बाहर होकर दौड़ से ,खड़े नदी के तीर |
    खड़े नदी के तीर ,रेस जीते नौसिखिये |
    नाचे पहली बार ,बने वो ही नचबलिये |
    दिल्ली में ये हार ,हो गई "आप" बला-की |
    हो कुर्सी से दूर,लगा भूले तैराकी ||

     

  • हक्की -वक्की रह गई,बड़ों बड़ों की सोच |
    कमल जरा सा कम खिला ,लगी हाथ को मोच |
    लगी हाथ को मोच ,पकडनी मुश्किल झाड़ू |
    बनी "आप" तो बाप,कहें या काम बिगाडू |
    आओ पहले आप ,हो रही धक्कामुक्की |
    दिल्ली भी खुद आज ,रह गई हक्की -वक्की ||

     

  • खिसकी आज जमीन तो ,खींचे तुमने पैर |
    वैसे जनता लूटकर ,निभा रहे थे वैर |
    निभा रहे थे वैर ,आज पर पलटा पासा |
    पड़ी वोट की चोट ,तमाशा अच्छा खासा |
    जनता थी चुपचाप ,मगर वो कब तक पिसती |
    किया मतों से चित्त्त,धरा पैरों की खिसकी ||

     

  • चक्की जब उसकी चले ,साबुत बचे न कोय |
    काम बुरा तो फल बुरा ,क्यों अब बैठा रोय |
    क्यों अब बैठा रोय ,सोचता गर तू पहले |
    फिर तुझ पर ये आज, न पड़ते नहले दहले |
    हुए सभी के भोग ,काम के सँग-सँग नक्की |
    पीसे सबके कर्म ,चल रही उसकी चक्की ||

     

     

  • मूषक जैसे काटते ,संबंधो को रोज |
    ऐसे जो भी लोग हैं ,रखिये करके खोज |
    ,रखिये करके खोज ,बात औरों की इन पर |
    खुद की हो जो बात ,करें कब बात परस्पर |
    कह सकते हैं आप ,इन्हें परजीवी चूषक |
    रहते बनकर मित्र ,काम पर जैसे मूषक ||

     

  • शंका शंकित कर रही,संशय बढ़ते रोज |
    जो शंका में फँस गया,ख़त्म हुई कब खोज |
    खत्म हुई कब खोज ,बनाता मन है बातें |
    शंका का ये सर्प ,डस रहा दिन ओ रातें |
    जो देखें हैं तथ्य ,बजा बस उनका डंका |
    छुपी हुई तलवार ,वार करती है शंका ||

     

  • मारक हैं बाते सदा ,रखिये इसका ध्यान |
    बिन सोचे जो बोलते,होता है नुक्सान |
    होता है नुकसान, शब्द बन जाते आरी |
    शब्दों की तलवार ,घाव करती दोधारी |
    सोच समझ कर शब्द ,कहें जो हों उपचारक |
    दिया नहीं गर ध्यान ,शब्द बन जाते मारक |

     

  • प्रेरक बनकर यदि जिएँ ,रखता याद समाज |
    इक छोटी सी प्रेरणा , सफल करे है काज |
    सफल करे है काज ,मिला जब तन मानव का |
    चलें उसी अनुरूप , रखें क्यों मन दानव का |
    हो जीवन का ध्येय , ज़िन्दगी हो उत्प्रेरक |
    मिलती खुशी अपार ,जिओ यदि बनकर प्रेरक ||

     

  • याचक बन कर क्यों खड़ा ,लिए झुका तू माथ |
    प्रभु ने जब तुझको दिया ,दो हाथों का साथ |
    दो हाथों का साथ ,हाथ भी तारनहारी |
    नहीं किसी का भाग्य, बनाता कभी भिकारी |
    सब कुछ लिक्खा माथ,सदा से सोच अराजक |
    जो भी करता कर्म ,बनेगा क्योकर याचक ||

     

  • जीता मन तो जीत है ,हारा मन तो हार |
    मन इक कारण है बड़ा ,करो इसे स्वीकार |
    करो इसे स्वीकार ,मचलता रहता पल -पल |
    बच्चे जैसी जिद्द ,इसे समझाना मुश्किल |
    मन जब रहे न संग ,रहे इक इक पल रीता |
    मै जीता हर जंग ,मित्र जब मन को जीता ||

     

  • ईसाई या पारसी ,मुस्लिम हिन्दू जैन |
    पल भर को पड़ता नहीं ,बिन इक दूजे चैन |
    बिन इक दूजे चैन ,एक माला के मनके |
    को कोई भी पीर ,सभी के आँसू छलके |
    धरा गगन है एक,एक भारत सच्चाई |
    हिन्दू सिख या बोद्ध ,मुस्लिम जैन ईसाई ||

     

  • वृक्षारोपण हम करें ,सुन्दर हो संसार |
    फल ,छाया लकड़ी सभी , दे करते उपकार |
    दे करते उपकार ,नहीं पर ये दर्षाते |
    फिर भी लाखों पेड़, रोज हैं काटे जाते |
    क्या मानव का काम, करे बस दोषारोपण |
    धरती की है माँग ,करें सब वृक्षारोपण ||

     

  • जल जंगल व जमीन का ,नहीं रखा गर ध्यान |
    भुगतेगा इस भूल को , पूरा हिन्दुस्तान |
    पूरा हिंदुस्तान , करें पूरी तैयारी |
    चलो लगायें पेड़ छोड़ , लालच की आरी |
    कहती आज जमीन ,सोचिये मेरा मंगल |
    क्या है जीवन मित्र ,एक पल बिन जल जंगल |

     

  • गंगा माँ तट पर सजा ,गंगा पर्व नहान |
    धन्य भक्त सब हो रहे ,कर गंगा का ध्यान |
    कर गंगा का ध्यान ,आचमन गंगा जल का |
    माँ से पाते भक्त ,रास्ता हर मुश्किल का |
    गंगा मैली आज ,काम क्या है ये चंगा |
    जन्म मरण में साथ ,पूजिए माँ है गंगा ||

     

  • प्यारी है सबसे खबर ,मिला रत्न को रत्न |
    पूरे भारत देश ने ,दिल से किया प्रयत्न |
    दिल से किया प्रयत्न ,सचिन है सबका प्यारा |
    पर्सन ऑफ़ दि वीक, खेल का ये ध्रुव तारा |
    आखीरी जो मैच ,धमाके की इक पारी |
    मिला रत्न को रत्न ,खबर ये सबसे प्यारी ||

     

  • कलकत्ता मैदान में ,क्रिकेट का भगवान |
    साक्षी बना खेल का ,ईडन का मैदान |
    ईडन का मैदान ,गलत आउट फरमाया |
    लेकर बोलिंग हाथ ,एक बिकेट चटकाया |
    धोनी आश्विन खेल ,जमाया है अलबत्ता |
    रोहित सौ के पार ,भा गया है कलकत्ता ||

     

  • मुश्किल आसाराम की ,बढ़कर हुई पहाड़ |
    मैं- मैं भी धीमी हुई ,मिमिया रही दहाड़ |
    मिमिया रही दहाड़ ,फंसे स्वामी नारायण |
    करते थे दुष्काम ,सुनाते थे रामायण |
    मिलनी ही थी जेल ,दुखाया नारी का दिल |
    खुलते जाते राज ,बढ़ रहीं पल पल मुश्किल ||

     

  • मंगल हो मंगल मिशन ,कल है श्री गणेश |
    अन्तरिक्ष में भी बढ़ा ,मेरा भारत देश |
    मेरा भारत देश ,बड़ा है खर्चा माना |
    श्री हरी कोटा नाम ,विश्व ने पूरे जाना |
    लाल ग्रह पर खोज ,बहा था जल क्या कल-कल |
    मंगल का अभियान ,करेंगे प्रभु जी मंगल ||

     

  • दीपों का त्यौहार ये ,झिलमिल करे प्रकाश |
    माँ लक्ष्मी जी आपकी ,पूर्ण करें सब आस |
    पूर्ण करें सब आस ,न भटके पास विफलता |
    पग-पग चूमे पैर ,आपके रोज सफलता |
    जगमग वन्दनवार ,मोतियन का सीपों का |
    शुभ शुभ शुभ हो पर्व ,पर्व जगमग दीपों का ||

     

  • दीवाली शुभ आपको ,दीपों का त्यौहार |
    दीपों की ये रोशनी ,पहुँचे हर घर द्वार |
    पहंचे हर घर द्वार ,द्वार पर खुशियाँ चहकें |
    हो जिसके भी स्वप्न ,स्वप्न सच होकर महकें |
    उन्नति के पथ देश ,देश में हो खुशहाली |
    खुशहाली जब संग ,तभी सच्ची दीवाली ||

     

  • धनतेरस पर आपको ,खुशियों का उपहार |
    धन्न,अन्न से पूर्ण हों ,घर के सब भण्डार |
    घर के सब भण्डार ,खुशी सारे नर -नारी |
    धन्वन्तरि, यमदेव, कुबेर, विष्णु अवतारी |
    क्रपा करें सब देव ,मिले धन ,वैभव ओ यश |
    करें सभी सद कर्म ,सभी को शुभ धनतेरस ||

     

  • मारामारी छिड़ गयी ,ले सरदार पटेल |
    इक दूजे को कोसते ,पी पी करके तेल |
    पी पी करके तेल .एक कहता कांग्रेसी |
    दूजा पूछे प्रश्न ,क्यों नहीं इज्जत वैसी |
    भारत के ये लाल ,सभी की जिम्मेदारी |
    दिल में रखें पटेल ,छोड़ सब मारामारी ||

     

  • पटना में मारे गए ,पाँच आदमी आम |
    लगातार थे बम फटे , नीच सोच का काम |
    नीच सोच का काम ,हुए लगभग सौ घायल |
    चुप गांधी मैदान ,कौन ये करता पागल |
    बने वही सरकार ,जो रोके ऎसी घटना |
    निर्दोषों की मौत ,हिल गया पूरा पटना ||

     

  • कबसे मेरा ख्वाब था ,आज हुई है दीद |
    वो दिन भी लो आ गया ,आज आ गयी ईद |
    आज आ गयी ईद ,दिलों में प्रेम बढाने |
    हिंसा नफरत द्वेष,दिलों से आज मिटाने |
    मेरा मैं हो नष्ट ,प्रार्थना मेरी रब से |
    बढे अमन ओ चैन ,ख्वाब था मेरा कब से ||

     

  • भगदड़ मंदिर में मची ,अफरातफरी हाल |
    लाखों की उस भीड़ में . हुए सभी बेहाल |
    हुए सभी बेहाल , भाग्य कितनों का रूठा |
    गयीं सैकड़ों जान , साँस का धागा टूटा |
    नवमी के दिन पूज्य ,रतन गढ़ माता का गढ़ |
    दतिया मध्य प्रदेश ,मची मंदिर में भगदड़ ||

     

  • रावन अन्दर का जला ,बिखरे सुन्दर रंग |
    काम क्रोध ओ मोह के ,अंग जले सब संग |
    अंग जले सब संग ,रंग है निखरा - निखरा |
    जब था रावन वास ,सभी था बिखरा -बिखरा |
    तन मन अब सब शांत ,हुआ मौसम मन भावन |
    पाई खुशी अपार ,जलाकर मन का रावन ||

     

  • फैलाने दहशत चला ,अब फेलिन तूफ़ान |
    ओडिशा ओर आंध्र तट ,करने को नुक्सान |
    करने को नुक्सान ,तेज गति बारिश भारी |
    दो सौ की रफ़्तार , बनाती हाहाकारी |
    चक्रवात गुस्सैल , खड़ा है रूप दिखाने |
    आया अपने देश , आज दहशत फैलाने ||

 

 

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