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बेटियों के लिए आज का मुक्तक

 

 

डॉ अजय जनमेजय

 

 

  • पीर का दरिया उतरना रोज ही |
    रोज जीना ओर मरना रोज ही |
    बेटियों का है यही बस भाग्यफल |
    आँख से आँसू का झरना रोज ही ||

     

  • खुदकुशी कोई करेगा क्या खुशी में |
    खामुशी कोई धरेगा क्या खुशी में |
    कुछ तो होगी पीर बिटिया लाडली की |
    मौत बिन कोई मरेगा क्या खुशी में ||

     

  • बात जब होनी थी केवल प्यार पर |
    आ गयी वो बात क्यों तकरार पर |
    प्यार करने का सिला उनको मिला |
    बेटियों की जान थी तलवार पर ||

     

  • बेटियों के बिन तो घर में तिश्नगी है |
    अनकही चारों तरफ इक खामुशी है
    बेटियों से घर है घर से बेटियाँ हैं |
    बेटियाँ घर में रहें तो रोशनी है ||

     

  • जी रहीं हैं बेटियाँ क्या क्या जतन करते हुए |
    जल रहे हैं गात तक देखो हवन करते हुए |
    जा रहीं हैं दुसरे घर ,छोड़ कर वो मायका |
    देहरी बाबुल की छूकर ओ नमन करते हुए ||

     

  • बेटियाँ खुशबू बनी घर में बिखरना चाहतीं हैं |
    सादगी व्यवहार से दिल में उतरना चाहतीं हैं |
    आप भी गर साथ दें तब ही ये संभव हो सकेगा |
    झील से इस मौत की वो भी उबरना चाहती हैं ||

     

  • दूर रहकर भी सदा रिश्ता समझती है |
    बाप के संताप को बिटिया समझती है |
    भेंट में पूरा जहाँ वो चाहता देना |
    मुफलिसी में बाप की मंशा समझती है ||

 

  • रेल किराया फिर बढ़ा,मंहगी फिर से रेल |
    छुक -छुक भी अब हो गयी ,बस पैसों का खेल |
    बस पैसों का खेल ,खेल भी है सरकारी |
    धीमे धीमे रेल ,जेब पर पड़ती भारी |
    रुला रही थी प्याज ,रेल ने आज रुलाया |
    अब डीजल के साथ ,बढेगा रेल किराया |

     

  • बेटियों को अब नहीं होता गुमाँ है |
    जानती हैं कौन कैसा कब कहाँ हैं |
    फिर भी वो हर बात को ऐसे सहेजें
    |याद का ज्यों साथ में जर्जर मकाँ है |

     

  • बेटियाँ हमको मिलीं हैं इक नदी सी |
    मानसिक बीमार कहते, त्रासदी सी |
    इक हमारी सोच ही कारण बनी है |
    जो गयी मुरझा लता फूलों लदी सी ||

     

  • आँख में आँसू सरीखी घर में होतीं बेटियाँ |
    कब विदा कर दें इसी इक डर में होतीं बेटियाँ |
    बाँधकर रक्खा है हमने कैसी किस्मत से उन्हें |
    इक आज़र के लिए पत्थर में होतीं बेटियाँ ||

     

  • भाव पूरित भावना हैं बेटियाँ |
    रोज इक शुभकामना हैं बेटियाँ |
    आँख अपनी मूँद कर भी क्या करें |
    रोज सच का सामना हैं बेटियाँ ||

     

  • बेटियों पर क्रूरता करते हैं घर के |
    देखिये तो हाल गावों के शहर के |
    बेटियाँ होंगी नहीं तो हम न होंगे |
    रोकने हैं हादसे बढते कहर के ||

     

  • ध्यान में बजते मधुर संगीत जैसी बेटियाँ हैं |
    प्यार से गर गुनगुनाओ गीत जैसी बेटियाँ हैं |
    माँ बहिन बीबी सभी में रूप हैं ये लडकियां ही |
    दो कदम तुम जो बढाओ मीत जैसी बेटियाँ हैं ||

     

  • हैं जहाँ जैसे भी घर में पल रहीं हैं बेटियाँ |
    कौन है जिसको मगर ये खल रहीं हैं बेटियाँ |
    बेचने को जो खड़े हैं अपने बेटों को यहाँ |
    इस घिनौने काम से बस जल रहीं हैं बेटियाँ ||

     

  • बेटियाँ कब जानतीं व्यापार की बातें |
    बात ये उनको लगें बेकार की बातें |
    बात शिष्टाचार की वे भूलती कब हैं |
    पूछ लो उनसे सभी घरवार की बातें ||

     

  • खूबियाँ तुमको उनकी नहीं ज्ञात हैं |
    बेटियाँ ईद,होली है नवरात हैं |
    भाग्य हैं आपका मन में ये सोचिये |
    बेटियाँ जो मिलीं एक सौगात हैं ||

     

    • जो मिला वो लिया कब किया कुछ गिला |
      कब लड़ींबेटियाँ कब अड़ी बेटियाँ |
      आपसे दूर हैं कर रहीं पर दुआ |
      बंदगी बेटियाँ आरती बेटियाँ ||

 

  • प्यार ही सबसे बडी है आज दौलत जानतीं हैं बेटियाँ |
    आप समझो या न समझो ये हक़ीकत जानतीं हैं बेटियाँ |
    आप का हक़ है जिसे चाहे उसे दें खेत ,दौलत ,या मकाँ |
    प्यार पर उनका भी हक़ है ये विरासत जानतीं हैं बेटियाँ ||

 

  • आपका पुत्र भी आपकी मित्र भी |
    कल रहीं बेटियाँ ,आज भी बेटियाँ |
    प्यार ही चाहतीं बस विरासत में ये |
    प्यार की जौहरी ,पारखी बेटियाँ ||

     

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