घर बाहर अब क्यों डर हो |
उसका भी इक अम्बर हो |
पढ़ लिख कर बिटिया चाहे |
सुन्दर सा अपना घर हो ||बेटियाँ गर चाहतीं हैं चहचहाने दो |
देश की हाँ में उन्हें भी हाँ मिलाने दो |
आपसे अनुरोध है उनको सुनो समझो |
ज़िन्दगी का गीत उनको गुनगुनाने दो ||बोलते हैं सब यहाँ अनबन नहीं है |
फिर क्यों लगता है कि अपनापन नहीं है |
आप ही बतलाओ क्योकर बेटियों की |
पायलों में अब छना छन छन नहीं है ||लाडली बाबुल का अंतरमन समझती है |
प्यार को सबसे बड़ा वो धन समझती है |
है मिला ऊँचा उसे दरजा, सही भी है |
सादगी को सत्य को दर्पण समझती है ||जंग की फितरत नहीं है बेटियों की |
झूँठ की आदत नहीं है बेटियों की |
ज़िन्दगी में प्यार ओ सद्भाव हो बस |
ओर तो हसरत नहीं है बेटियों की ||घर पिया के बेटियाँ सज धज चलीं |
आइने को देके वो अचरज चलीं|
जा रहीं ससुराल वो जाना ही था|
माथ लेके मायके की रज चलीं ||मुस्कुराती गुनगुनाती बेटियाँ हैं |
किछ सुनहरे पल सजातीं बेटियाँ हैं |
जीतना है मुफलिसी ओ गम से कैसे |
जीतकर हमको सिखाती बेटियाँ हैं ||हो अगर उलझन जो मन में रास्ता हैं बेटियाँ |
हार बैठो राह में तो हौसला हैं बेटियाँ |
आपके पग -पग पे हैं ये साथ साये की तरह |
मानसिक संघर्ष हो तो आस्था हैं बेटियाँ ||बेटियाँ खुशियों भरा हैं ज़िन्दगी का पल |
जी रहीं हैं आज भी वो सादगी का पल |
हो रहा हो जब अँधेरा सोच पर हावी |
उस समय हैं बेटियाँ ही रोशनी का पल ||आपके पदचिन्ह पाकर अनुसरण करती रहीं |
आपने गर कह दिया तो जागरण करती रहीं |
बेटियाँ तो हर समय इक बात पर माँ-बाप की |
हर बड़ी छोटी खुशी का बस वरण करती रहीं ||भेडियों के भी नगर में अब किले होने लगे |
ओर ऎसी सोच के अब काफिले होने लगे |
रोग इसमें जुड़ गया लालच का तो फिर यूँ हुआ |
जुल्म के ही बेटियों पर सिलसिले होने लगे ||मांगतीं हैं कब कहाँ अधिकार बेटियाँ |
मांगतीं हैं कब कहाँ उपहार बेटियाँ |
आपने ही जन्म देकर है बड़ा किया |
चाहतीं हैं आपका बस प्यार बेटियाँ ||रख रहीं हैं धन से कब अनुराग बेटियाँ |
बांटती आयीं सदा निज भाग बेटियाँ |
चैन आँखों का हैं ये दिल का सुकूँन भी |
गूँजता दिल में सदा इक राग बेटियाँ ||आजकल परिवार की हैं शान बेटियाँ |
दे रहीं माँ बाप को पहचान बेटियाँ |
कर्म से ओ सोच से अपनी यहाँ सदा |
हैं बढ़ातीं आपका सम्मान बेटियाँ ||हैं जहाँ जैसे भी घर में पल रहीं हैं बेटियाँ |
कौन है जिसको मगर ये खल रहीं हैं बेटियाँ |
बेचने को जो खड़े हैं अपने बेटों को यहाँ |
इस घिनौने काम से बस जल रहीं हैं बेटियाँ ||बेटियाँ ही दर्द में चलना सिखातीं |
गिर गए हो तो उठो बढ़ना सिखातीं |
उलझनों में सांत्वना देतीं हैं अक्सर |
वक़्त के साँचे में हैं ढलना सिखातीं ||प्रीत की मनुहार लेकर चल रहीं हैं |
प्रेम की रसधार लेकर चल रहीं हैं |
आपको लगतीं हैं खुश जो बेटियाँ हैं |
पीर का अम्बार लेकर चल रहीं हैं ||बेटियाँ उड़ता हवा के साथ बादल |
बेटियाँ माँ के लगा आँखों में काजल |
आपकी किस सोच ने ये क्या किया है |
बेटियाँ जो लग रहीं म्रगछौन घायल ||बेटियाँ मिलतीं सदा बाँहें पसारे |
जानती दुःख दर्द वो सारे हमारे |
बह रहीं बनकर हवा वो दो घरों में |
इस तरह जीतीं हैं वो दोनों किनारे ||प्यार की बहती नदी की धार जैसी |
बेटियाँ हैं द्वार पर मनुहार जैसी |
आपने सोचों किया क्या ,क्यों किया है |
लग रहीं हैं बेटियाँ बीमार जैसी ||रोज इक संघर्ष पर हैं बेटियाँ |
शून्य के निष्कर्ष पर हैं बेटियाँ |
है अभावों में पलीं बेशक मगर |
त्याग के उत्कर्ष पर हैं बेटियाँ ||प्यार बांटा करो बेटियों के लिए |
शुभ ही सोचा करो बेटियों के लिए |
घर में बेटा न हो गम न करना कभी |
दिल न छोटा करो बेटियों के लिए ||मैं थका तो मिलीं छाँव सी बेटियाँ |
मैं रुका तो मिलीं ठाँव सी बेटियाँ |
वो गयी चाँद पर फिर भी बदली कहाँ |
देहरी से बंधीं ,गाँव सी बेटियाँ ||ज़िन्दगी विष भी अगर तो पी रहीं हैं बेटियाँ |
आज जिस हालात में हैं जी रहीं हैं बेटियाँ |
दाँव पर है जान ,दोनों घर की इज्ज़त के लिए |
उफ़ ! दबाकर होंठ ,अपने सी रहीं हैं बेटियाँ ||दूर तक फैला खुशी का अंजुमन है |
बेटियाँ मन में हुआ संकीर्तन हैं |
आँख में उनके तराजू है समझिये |
कर रहीं सबका वो सच्चा आकलन हैं ||हादिसों के रोज होते सिलसिले हैं |
बेटियाँ करती नहीं फिर भी गिले हैं |
हैं कहाँ मंदिर बताएँ आप ही अब |
दूर तक लंका है रावण के किले हैं ||चल रही पहली दफा बिटिया रिझाती |
एक पग धरती कभी पायल बजाती |
आज घर को इक खिलौना सा मिला है |
झूमती है मुस्कुराती खिलखिलाती ||बेटियाँ महकी हवा हैं जानिये तो |
बेटियाँ चहकी फ़िजा हैं जानिए तो |
है नहीं कमजोर बिटिया एक भी पल |
पालिए बेटे सा मन में ठानिये तो ||बेटियाँ मन में बसाकर पीर पलतीं |
बाँधकर वो सोच पर जंजीर पलतीं |
क्या किया हमने कहीं कुछ तो गलत है |
मानकर अपनी यही तक़दीर पलतीं ||द्वार पर मन के बनी इक अल्पना सी |
हो गयी मूरत की ज्यों स्थापना सी |
बेटियाँ रहतीं हैं मन मंदिर में ऐसे |
भाव पूरित अति मधुर इक कल्पना सी ||
बेटियाँ मुरझा गयीं अवसाद से |
हो रहे क्यों आजकल ये हादसे |
बेटियाँ गम हो गयीं हंसती हुई |
क्या हुआ हम पर असर फ़रियाद से ||
द्वार रंगोली सजाती मुस्कुराती बेटियाँ |
घर सजाने आ गयीं हैं गुनगुनाती बेटियाँ |
आपके चेहरे से पढ़कर आपकी हर पीर को |
पीर सारी छीन लेंगी गीत गाती बेटियाँ ||
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