Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बेटियों के लिए आज का मुक्तक

 
  • घर बाहर अब क्यों डर हो |
    उसका भी इक अम्बर हो |
    पढ़ लिख कर बिटिया चाहे |
    सुन्दर सा अपना घर हो ||

     

  • बेटियाँ गर चाहतीं हैं चहचहाने दो |
    देश की हाँ में उन्हें भी हाँ मिलाने दो |
    आपसे अनुरोध है उनको सुनो समझो |
    ज़िन्दगी का गीत उनको गुनगुनाने दो ||

     

  • बोलते हैं सब यहाँ अनबन नहीं है |
    फिर क्यों लगता है कि अपनापन नहीं है |
    आप ही बतलाओ क्योकर बेटियों की |
    पायलों में अब छना छन छन नहीं है ||

     

  • लाडली बाबुल का अंतरमन समझती है |
    प्यार को सबसे बड़ा वो धन समझती है |
    है मिला ऊँचा उसे दरजा, सही भी है |
    सादगी को सत्य को दर्पण समझती है ||

     

  • जंग की फितरत नहीं है बेटियों की |
    झूँठ की आदत नहीं है बेटियों की |
    ज़िन्दगी में प्यार ओ सद्भाव हो बस |
    ओर तो हसरत नहीं है बेटियों की ||

     

  • घर पिया के बेटियाँ सज धज चलीं |
    आइने को देके वो अचरज चलीं|
    जा रहीं ससुराल वो जाना ही था|
    माथ लेके मायके की रज चलीं ||

     

  • मुस्कुराती गुनगुनाती बेटियाँ हैं |
    किछ सुनहरे पल सजातीं बेटियाँ हैं |
    जीतना है मुफलिसी ओ गम से कैसे |
    जीतकर हमको सिखाती बेटियाँ हैं ||

     

  • हो अगर उलझन जो मन में रास्ता हैं बेटियाँ |
    हार बैठो राह में तो हौसला हैं बेटियाँ |
    आपके पग -पग पे हैं ये साथ साये की तरह |
    मानसिक संघर्ष हो तो आस्था हैं बेटियाँ ||

     

  • बेटियाँ खुशियों भरा हैं ज़िन्दगी का पल |
    जी रहीं हैं आज भी वो सादगी का पल |
    हो रहा हो जब अँधेरा सोच पर हावी |
    उस समय हैं बेटियाँ ही रोशनी का पल ||

     

  • आपके पदचिन्ह पाकर अनुसरण करती रहीं |
    आपने गर कह दिया तो जागरण करती रहीं |
    बेटियाँ तो हर समय इक बात पर माँ-बाप की |
    हर बड़ी छोटी खुशी का बस वरण करती रहीं ||

     

  • भेडियों के भी नगर में अब किले होने लगे |
    ओर ऎसी सोच के अब काफिले होने लगे |
    रोग इसमें जुड़ गया लालच का तो फिर यूँ हुआ |
    जुल्म के ही बेटियों पर सिलसिले होने लगे ||

     

  • मांगतीं हैं कब कहाँ अधिकार बेटियाँ |
    मांगतीं हैं कब कहाँ उपहार बेटियाँ |
    आपने ही जन्म देकर है बड़ा किया |
    चाहतीं हैं आपका बस प्यार बेटियाँ ||

     

  • रख रहीं हैं धन से कब अनुराग बेटियाँ |
    बांटती आयीं सदा निज भाग बेटियाँ |
    चैन आँखों का हैं ये दिल का सुकूँन भी |
    गूँजता दिल में सदा इक राग बेटियाँ ||

     

  • आजकल परिवार की हैं शान बेटियाँ |
    दे रहीं माँ बाप को पहचान बेटियाँ |
    कर्म से ओ सोच से अपनी यहाँ सदा |
    हैं बढ़ातीं आपका सम्मान बेटियाँ ||

     

  • हैं जहाँ जैसे भी घर में पल रहीं हैं बेटियाँ |
    कौन है जिसको मगर ये खल रहीं हैं बेटियाँ |
    बेचने को जो खड़े हैं अपने बेटों को यहाँ |
    इस घिनौने काम से बस जल रहीं हैं बेटियाँ ||

     

  • बेटियाँ ही दर्द में चलना सिखातीं |
    गिर गए हो तो उठो बढ़ना सिखातीं |
    उलझनों में सांत्वना देतीं हैं अक्सर |
    वक़्त के साँचे में हैं ढलना सिखातीं ||

     

  • प्रीत की मनुहार लेकर चल रहीं हैं |
    प्रेम की रसधार लेकर चल रहीं हैं |
    आपको लगतीं हैं खुश जो बेटियाँ हैं |
    पीर का अम्बार लेकर चल रहीं हैं ||

     

  • बेटियाँ उड़ता हवा के साथ बादल |
    बेटियाँ माँ के लगा आँखों में काजल |
    आपकी किस सोच ने ये क्या किया है |
    बेटियाँ जो लग रहीं म्रगछौन घायल ||

     

  • बेटियाँ मिलतीं सदा बाँहें पसारे |
    जानती दुःख दर्द वो सारे हमारे |
    बह रहीं बनकर हवा वो दो घरों में |
    इस तरह जीतीं हैं वो दोनों किनारे ||

     

  • प्यार की बहती नदी की धार जैसी |
    बेटियाँ हैं द्वार पर मनुहार जैसी |
    आपने सोचों किया क्या ,क्यों किया है |
    लग रहीं हैं बेटियाँ बीमार जैसी ||

     

  • रोज इक संघर्ष पर हैं बेटियाँ |
    शून्य के निष्कर्ष पर हैं बेटियाँ |
    है अभावों में पलीं बेशक मगर |
    त्याग के उत्कर्ष पर हैं बेटियाँ ||

     

  • प्यार बांटा करो बेटियों के लिए |
    शुभ ही सोचा करो बेटियों के लिए |
    घर में बेटा न हो गम न करना कभी |
    दिल न छोटा करो बेटियों के लिए ||

     

  • मैं थका तो मिलीं छाँव सी बेटियाँ |
    मैं रुका तो मिलीं ठाँव सी बेटियाँ |
    वो गयी चाँद पर फिर भी बदली कहाँ |
    देहरी से बंधीं ,गाँव सी बेटियाँ ||

     

  • ज़िन्दगी विष भी अगर तो पी रहीं हैं बेटियाँ |
    आज जिस हालात में हैं जी रहीं हैं बेटियाँ |
    दाँव पर है जान ,दोनों घर की इज्ज़त के लिए |
    उफ़ ! दबाकर होंठ ,अपने सी रहीं हैं बेटियाँ ||

     

  • दूर तक फैला खुशी का अंजुमन है |
    बेटियाँ मन में हुआ संकीर्तन हैं |
    आँख में उनके तराजू है समझिये |
    कर रहीं सबका वो सच्चा आकलन हैं ||

     

  • हादिसों के रोज होते सिलसिले हैं |
    बेटियाँ करती नहीं फिर भी गिले हैं |
    हैं कहाँ मंदिर बताएँ आप ही अब |
    दूर तक लंका है रावण के किले हैं ||

     

  • चल रही पहली दफा बिटिया रिझाती |
    एक पग धरती कभी पायल बजाती |
    आज घर को इक खिलौना सा मिला है |
    झूमती है मुस्कुराती खिलखिलाती ||

     

  • बेटियाँ महकी हवा हैं जानिये तो |
    बेटियाँ चहकी फ़िजा हैं जानिए तो |
    है नहीं कमजोर बिटिया एक भी पल |
    पालिए बेटे सा मन में ठानिये तो ||

     

  • बेटियाँ मन में बसाकर पीर पलतीं |
    बाँधकर वो सोच पर जंजीर पलतीं |
    क्या किया हमने कहीं कुछ तो गलत है |
    मानकर अपनी यही तक़दीर पलतीं ||

     

  • द्वार पर मन के बनी इक अल्पना सी |
    हो गयी मूरत की ज्यों स्थापना सी |
    बेटियाँ रहतीं हैं मन मंदिर में ऐसे |
    भाव पूरित अति मधुर इक कल्पना सी ||

 

  • बेटियाँ मुरझा गयीं अवसाद से |
    हो रहे क्यों आजकल ये हादसे |
    बेटियाँ गम हो गयीं हंसती हुई |
    क्या हुआ हम पर असर फ़रियाद से ||

 

  • द्वार रंगोली सजाती मुस्कुराती बेटियाँ |
    घर सजाने आ गयीं हैं गुनगुनाती बेटियाँ |
    आपके चेहरे से पढ़कर आपकी हर पीर को |
    पीर सारी छीन लेंगी गीत गाती बेटियाँ ||

     

     

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