लाख आईं जब रूकावट कब रुकी हैं बेटियाँ |
ज़िन्दगी से कब गिला करतीं मिली हैं बेटियाँ |
रोकने को लाख पत्थर राह में डाले मगर |
एक शीतल धार सी बहती नदी हैं बेटियाँ ||सख्त पहरा है मिला जो बेटियों को |
न्याय बहरा है मिला जो बेटियों को |
पीर पर उनकी नहीं है ध्यान क्योंकर |
ज़ख्म गहरा है मिला जो बेटियों को ||ज़ख्म का हर एक मरहम बेटियाँ |
सोचिये अब हैं कहाँ कम बेटियाँ |
आइये हम सब यहाँ इतना करें |
अब न पायें कोई भी गम बेटियाँ ||
- बंदगी बेटियां , आरती बेटियाँ |
धन कि किंचित नहीं लालची बेटियाँ |
प्यार ही चाहतीं बस विरासत में ये |
प्यार की जौहरी , पारखी बेटियाँ ||
- डर गईं खुद कि बढ़ी परछाइयों से बेटियां |
लड़ रहीं हैं रोज ही तन्हाइयों से बेटियां |
गढ़ गयीं वो शर्म से खामोश लव चेहरा उदास |
बाप की छोटी बड़ी रुसवाइयों से बेटियां ||
- चाहतीं है आपका बस नेह बेटियाँ |
आप पर करतीं कहाँ संदेह बेटियाँ |
मौत के अंतिम क्षणों में दूर देश में |
भूल कब पातीं है अपना गेह बेटियाँ ||
- बेटियाँ गिरजा शिवाला इस सदी में |
त्याग कि हैं पाठशाला इस सदी में |
बन रहीं हैं बेटियाँ फिर आजकल क्यूं |
मौत का निर्मम निवाला इस सदी में ||
- आपके जो शब्द नफरत में सने हैं |
बेटियों के भाव देखो अनमने हैं |
आप अपनी असलियत भी देख लीजे |
बेटियाँ घर को मिलीं ज्यों आइने हैं |
बेटियाँ निश्छल हमेशा ही रहीं हैं |
शुद्ध गंगाजल हमेशा ही रहीं हैं |
कुछ कहो पर बेटियाँ माँ -बाप की तो |
आँख का काजल हमेशा ही रहीं हैं ||
बेटियाँ ज्यों आ रही महकी हवाएँ |
बेटियाँ ज्यों सामने चहकी दिशाएँ |
कैद फिर वो चारदीवारी में क्यों हैं |
पूछतीं हैं बेटियाँ कुछ तो बताएं ||
- आजकल हैं बेकली में बेटियाँ क्यों |
प्यार कि विरूदावली में बेटियाँ क्यों |
भ्रूण हत्या "ओ" दहेजी भेडियों से |
मौत कि अंधी गली में बेटियाँ क्यों ||
- बेटियाँ ज़िन्दगी की नयी भोर हैं |
ओम गुंजार हैं ये नहीं शोर हैं |
बेटियों के लिए सोच ये छोडिये |
बेटियाँ बोझ हैं या कि कमजोर हैं |
- बेटियाँ तो सदा आपके साथ हैं |
आपका गर्व ,ऊँचा उठा माथ हैं |
जानकर के पराई न ठुकराइए |
बेटियाँ आपकी आँख है हाथ है ||
आ गईं घर में हमारे प्यार बनकर |
चाहतीं जीना गले का हार बनकर |
जीत की हक़दार वो खुद ही बनी पर |
जी रहीं क्यों बेटियाँ दुत्कार बनकर ||
प्यार के गीत की लेखनी बेटियाँ |
चाँदनी रात में चाँदनी बेटियाँ |
पास कोई न हो पुत्र भी मित्र भी |
उस अँधेरे में हैं रोशनी बेटियाँ ||
- कर रहीं मन पर लगी हर टीस को स्वीकार भी |
बेटियाँ ही कर सकीं हैं पीर का श्रृंगार भी|
पालिए इनको जतन से भाग्य हैं ये आपका |
टूटकर करतीं हैं पल पल आपसे ये प्यार भी ||
बेटियाँ अधरों पे मानो इक दुआ हैं ।
आपकी बैचेनियों की इक दवा हैं ।
दे रहा स्पर्श इनका इक सुकूँ सा ।
बेटियाँ बहती हुई शीतल हवा हैं ।।
- आपकी ताकत बड़ी है बेटियों से |
आपकी हिम्मत बड़ी है बेटियों से |
एक दिन पर आप भी यह कह उठेंगे |
कौन सी दौलत बड़ी है बेटियों से ||
दर्द में हुंकार बनकर आ गयीं है बेटियाँ |
धार में तलवार बनकर आ गयीं हैं बेटियाँ |
जुल्म से लड़ने की खातिर था बदलना ही उन्हें |
देखिये ललकार बनकर आ गयीं हैं बेटियाँ ||
बेटियाँ जब मुस्कुराएँ पितृ गर्वित हों |
बेटियाँ जब गुनगुनाएं देव हर्षित हों |
जिस किसी घर में जन्म लेले अगर बेटी |
चुक गए सदियों से उसके पुण्य अर्जित हों ||
है अगर बेटी तो घर में संतुलन है |
क्योकि वो प्रभु से मिला सुन्दर सृजन है |
प्रेम की उसने कहाँ दी है परीक्षा |
प्रेम के रस में पगी वो आदतन है ||
एक कोमल लता आपकी बेटियाँ |
कब रहीं है सता आपकी बेटियाँ |
अंश ये आपकी वंश ये आपकी |
आपका हैं पता आपकी बेटियाँ ||
बेटियाँ गर हों तो सपने पूर्ण होते |
बेटियाँ गर हों तो अपने पूर्ण होते |
बेटियाँ माला हैं तुलसी की समझिये |
साथ इनके मन्त्र जपने पूर्ण होते ||
खुशबुएँ उपवन सरीखी बेटियाँ है |
द्वार पर वंदन सरीखी बेटियाँ हैं |
क्रूरता कोई न इनके साथ हो अब |
भाल पर चन्दन सरीखी बेटियाँ है ||
बेटियाँ हैं सदा गुनगुनी धूप सी |
धीर गंभीर सी माँ की प्रतिरूप सी |
दूर मुझसे गई पर दिखाई यूँ दे |
नैन मेरे बसी ,लाडली ,रूपसी ||
बेटियाँ आतीं हैं इक पहचान लेकर |
प्यार सबका पा रहीं सम्मान देकर |
आन पर या शान पर जो बात आए |
ये बचातीं हैं घराने जान देकर ||
आपके निर्बल क्षणों में शक्तिदायक बेटियाँ हैं |
आप कुछ भी सोचिये ,हर पल सहायक बेटियाँ है |
पुत्र के मानिंद करना ,आप उन पर अब भरोसा |
वक़्त के साँचे में ढलकर ,आज लायक बेटियाँ हैं ||
बेटियों ने भाइयों को प्यार भेजा सौ दफा |
भ्रात आया इक दफा आभार भेजा सौ दफा |
याद जब भी आ गया बचपन तो भाई के लिए |
हर दुआ में इक सुखी संसार भेजा सौ दफा ||
बेटियाँ चहकें जो घर में तो ये घर चहके |
प्यार जब अपना उडेलें तो ये घर महके |
लाडली जबसे गई है हो विदा घर से |
घर वही अब चांदनी में आग सा दहके ||
बेटियाँ कब भूलतीं हैं मायके का घर |
सालता रहता है उनको दूरियों का डर |
हैं जहां माँ बाप ,भाई ओर यादें हैं |
याद रहता है उन्हें ताजिंदगी ये दर |
बेटियों कि आँख में बसता नगर इक |
ओर बसता है नगर के बीच घर इक |
हैं इसी घर के लिए वो जान देतीं |
इसलिए जीती हैं ,जीवन भर सफ़र इक ||
डॉ अजय जनमेजय
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