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गणतन्त्र दिवस और मास्साब

 

Rainbow News 

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गणतन्त्र दिवस और मास्साब.....

गणतन्त्र दिवस आने के पूर्व मास्साब तैयारी में लग जाते हैं। उनकी यह तैयारी गणतन्त्र दिवस कार्यक्रम में बच्चों, अध्यापकों और उपस्थित नाम मात्र के लोगों के बीच सम्बोधन हेतु व्याख्या और सेलीब्रेशन के साथ 26 जनवरी को उनके द्वारा धारण किये जाने वाले वस्त्र एवं लगाये जाने वाले परफ्यूम को लेकर होती है। हालांकि मास्साब को स्वयं ही नहीं पता है कि इस राष्ट्रीय पर्व का महत्व क्या है। चूँकि वह एक शिक्षण संस्था के जबरिया बड़े सर हैं इसलिए राष्ट्रीय पर्वों पर ध्वजारोहण उपरान्त अपने विद्यालय के मासूम, अनजान छात्र-छात्राओं व अल्पवेतन भोगी शिक्षक-शिक्षिकाओं के समक्ष सेखी बघारने के लिए राष्ट्रीय पर्व के महत्व को लिख व रटकर कंठस्थ करते हैं। इस बार भी गणतन्त्र दिवस आ ही गया। मास्साब से कौन पूछे कि यह क्यों सेलीब्रेट किया जाता है? उन्हें तो एक ही वाक्य कंठस्थ है वह यह कि भाइयों-बहनों, छात्र-छात्राओं, उपस्थित जनों आज ही के दिन 1950 को देश में अपना संविधान लागू हुआ था, इसी वजह से हम गणतन्त्र दिवस मनाते हैं।
पाठकों, अब आपके मन में यह विचार तो कौंधने लगा होगा कि सर जी को ही जब कोई ज्ञान नही है तब उनके विद्यालय के बच्चों का क्या हाल होगा? मास्साब की अज्ञानता का बोध उन्हें स्वयं ही नही है। वह एक विद्यालय के कथित प्रधानाचार्य हैं। उनके साथ काम करने वाले अध्यापक/अध्यापिकाएँ चूँकि वेतनभोगी हैं और सैलरी विद्यालय के बड़े सर जी ही देते हैं ऐसे में ये लोग बड़े सर के एस मैन बने रहते हैं। ठकुर सोहाती किसे नहीं पसन्द है? अन्धे को यदि सूरदास जी कहा जाए तो वह अति प्रसन्न होता है। यह शब्द सुनकर उसे लगता है कि उसकी ज्योतिहीन आँखे सबकुछ देखने लगी हैं। ठीक उसी तरह बड़े सर भी चन्द अधीनस्थों द्वारा की जाने वाली ठकुर सोहाती से पूर्णतया प्रभावित हो गये हैं।
खैर! छोड़िये- गणतन्त्र दिवस 70वाँ हो या 71वाँ..........बड़े सर के लिए यह मायने नहीं रखता जितना कि उक्त दिन-दिवस को विद्यालय में बच्चों में वितरण हेतु कितना किलोग्राम लड्डू कम से कम कीमत में खरीदा जाये। तिरंगा उल्टा हो या सीधा........ कोई फर्क नहीं......जब तक कि कोई उनको यह न बताये कि ऊपर केसरिया, बीच में सफेद चक्र के साथ और नीचे हरा रंग होना चाहिए, तभी यह सीधा माना जाएगा। यह बात उनके भेजे में तभी आयेगी जब कोई त्रिफलाधारी कर्मकाण्डी बतायेगा। बड़े सर को प्रजातन्त्र, लोकतन्त्र, गणतन्त्र और आम जनता में कोई दिलचस्पी नहीं है। देश में विकास के लिए कितनी पंचवर्षीय योजनाएँ चलीं और क्या-क्या हुआ इन सबका ज्ञान अज्ञानी रखते हैं बड़े सर नही। विकास, भ्रष्टाचार और महंगाई ये सब क्या है मास्साब को रंच मात्र भी जानकारी नही। ये महंगाई का रोना तब रोते हैं जब घर/परिवार के लिए सब्जी, भांजी, परचून और दूध आदि लेना होता है। भ्रष्टाचार के बारे में इनका कोई स्पष्ट सोचना नही है। इसे वह एक परम्परा मानते हैं। एक हाथ दो और दूसरे हाथ लो। भ्रष्टाचार का विरोध करना उनकी आदत में नही। विकास- देश में हो, प्रदेश में हो, जिले में हो, गाँव में हो, कस्बे में हो क्या फर्क पड़ता है। विकास है तो होगा ही। विकास को लेकर किसी भी नामवर, नामचीन को अनावश्यक ढंग से कोसना इनकी फितरत नहीं। मास्साब नेता नहीं, अभिनेता नहीं बड़े ही सीधे स्वभाव के ग्रह, नक्षत्रों पर आँख मूंद कर विश्वास करने वाले एक आस्थावान अन्धभक्त प्राणी हैं, जिनका संचालन कतिपय स्वार्थ लोलुप कर्मकाण्डियों द्वारा किया जा रहा है।
हत्या, अपहरण, बलात्कार, खून-खराबा जैसे बढ़ते आपराधिक मामलों के बारे में इनको संज्ञाशून्य सा देखा जा सकता है। पॉलिटिक्स और बिजनेस का नाम इन्होंने भले ही सुना हो, लेकिन ये कैसे किए जाते हैं इसकी जानकारी इन्हें नहीं। सुख-सुविधा, सम्पन्नता, ऐशो-आराम की सोच से मास्साब हजारों किलोमीटर दूर पहुँच चुके हैं। उनका सिद्धान्त है- आपन भला भला जगमाहीं.......और वह इस पर अडिग भी रहते हैं। इतना कहकर सुलेमान ने कहा भई कलमघसीट यार थोड़ा रूको, रेस्ट लेने दो, रिलैक्स होने के बाद रिपब्लिक डे और मास्साब के बारे में आगे बताऊँगा। इतना कहकर वह उठा और ग्राउण्ड पर जवान की तरह कदमताल करते हुए राम भरोसे चाय वाले के यहाँ पहुँच गया। फिर कुछ देर तक खामोशी थी। वह 10-15 मिनट बाद वापस आया और मेरे सामने टूटे स्टूल पर पूर्व की भाँति बैठ गया। मेरा लिखने का मूड बन गया था, इसलिए निगाहें उठाकर उसकी तरफ देखा। उसने कहा अच्छा चलो लिख डालो। नोटबन्दी, जी.एस.टी., आतंकी हमले, सर्जिकल स्ट्राइक, सी.ए.ए., एन.आर.सी., धारा-370........आदि महत्वपूर्ण घटनाएँ जिनका जिक्र सेलीब्रिटीज द्वारा गणतन्त्र दिवस पर बखूबी किया जायेगा, उसके बावत बड़े सर मास्साब को कत्तई जानकारी नहीं। वह तो बेचारे आई.ए.एस., आई.पी.एस और पी.सी.एस. में ही अन्तर नहीं जानते। कम्बल वितरण कब होता है? इसकी जानकारी उन्हें नही है। वह तो इतना जानते हैं कि जब कम्बल बंटे तो सर्दी का मौसम, अग्निकाण्ड हो तो गर्मी और बाढ़ आये तो बरसात का मौसम होता है। सरकारी इमदाद के लिए मारामारी करना अपेक्षाकृत उन्हें कुछ कम पसन्द है। दादी माँ, बूढ़ा बाप, स्वयं की माँ, स्वयं के बच्चे अभावग्रस्त रहें उनकी सेहत पर कोई फर्क नहीं। बड़े सर जी इस बड़े डेमोक्रेसी के सबसे महान व्यक्तियों में शुमार कहे जा सकते हैं। उन्हें अपने पद और कथित प्रतिष्ठा पर बड़ा गर्व है। वह लाभ के लिए आतुर तो हैं लेकिन हानि क्यों हुई इसके बारे में आत्मलोचन कम ही करते हैं।
कर्मकाण्डियों ने उनके दिमाग में यह डाल दिया है कि ईश्वर एक है, ग्रह नौ हैं, 12 राशियाँ हैं, 27 नक्षत्र हैं बस इन्हीं की पूजा करो, समस्त कष्टों का निवारण इसी से सम्भव है। इसी लिए उन्होंने ब्रम्हाण्ड के महाउपदेश- ‘‘कर्माणेवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन्’’ को ताक पर रख दिया है। मल्लब यह कि जितना महराज जी बतायेंगे, उतना ही बड़े सर करेंगे। कलमघसीट एक बात और आज तक मास्साब को कभी किसी ने कार्य प्रयोजन समारोहों में नहीं बुलाया है और न ही इन्होंने कहीं कोई गम्भीर विषयक सम्बोधन ही दिया है। ये बेचारे एम.एल.ए., एम.पी., मन्त्री, प्रधानमंत्री, प्रेसीडेन्ट में क्या अन्तर होता है इसकी भी जानकारी नहीं रखते। भारतीय गणतन्त्र में जनप्रतिनिधियों और जनता का क्या योगदान होता है इन्हें इससे भी कोई लेना देना नही है। भारतीय गणतन्त्र में साक्षरता का प्रतिशत क्या है यह इनकी प्रॉब्लम नही है। जनसंख्या वृद्धि या फिर देश की घटती जीडीपी इनके लिए कोई मायने नही रखता। देश विकास कर रहा है करने दो। कंकरीटों के जंगल बढ़ रहे हैं, हरे-भरे बाग-बगीचों, जंगलों का सफाया हो रहा है, देश के अवाम के लिए संचालित सरकारी योजनाओं में लूट मची है, भ्रष्टाचार चरम पर है। जातिवाद, सम्प्रदायवाद............अनेको वाद प्रचलन में हैं मास्साब के ठेंगे से। मिलावट, घूसखोरी, कमीशनखोरी यह क्या होता है? जंगलराज, हत्या, लूट, बलात्कार की घटनाओं में वृद्धि इन सबके बावत निठल्ले सोचते हैं। सेल्फी का जमाना चल रहा है, चलने दो। इण्डिया जो भारत है, डिजिटलाइज कर दिया गया है। हर छोटा-बड़ा काम ऑन लाइन होने लगा है मास्साब ऑनलाइन सेन्टर पर अधिकांश समय देने लगे हैं। रोटी, कपड़ा और मकान की व्यवस्था इनकी चिन्ता से परे है। अमीर क्या होता है, शायद इन्होंने सुना ही होगा, स्वयं अमीर बनकर आनन्द लेने में दिलचस्पी नहीं। मोटी चमड़ी, मोटी सोच..........लाहौल विलाकुवत.........अमां कलमघसीट अब तो इन्टरनेट का जमाना है। खाने को नहीं दाने, अम्मा चलीं भुनाने वाली कहावत चरितार्थ हो रही है। लल्लू, पंजू जैसे लोगों की सन्तानों के हाथों में हजारों रूपयों के महंगे स्मार्टफोन देखे जा सकते हैं..........मास्साब के ठेंगे से। देश ने बहुत तरक्की कर दिया है इन सत्तर वर्षों में........कितना और करेगा यह तुम्हारे जैसे मंुशी ही अपनी पंजिका में लिखें, मास्साब से क्या मतलब। हैप्पी बर्थडे सेलीब्रेट करना अंग्रेजी परम्परा है इससे गुलामी व अंग्रेजों की दासता परिलंिक्षत होती है। मास्साब स्वाधीन राष्ट्र के पढ़े-लिखे सर्टीफिकेट होल्डर नागरिक हैं ये सब बातें उन्हें बकवास लगती है। यह बात दूसरी है कि मास्साब लोगों के मरने-जीने पर उनके घर जाकर चहकारी व शोक संवेदना व्यक्त करने के साथ-साथ शुभकामनाएँ भी देते हैं। तेरहवीं का भोज व दावत-ए-वलीमा इनसे नहीं छूटता। ये लोगों के मरणोपरान्त शवयात्रा में बड़े जोश-ओ-खरोश से शामिल होते हैं। इनका यह तरीका देखकर लगता है कि सच्चे मायने में भारतीय संस्कृति में पले-बढ़े इन्सान हैं। इतना कहकर सुलेमान ने कहा और कुछ........? तो कहना पड़ा यार- क्लाइमेक्स पर आओ- गणतन्त्र दिवस पर लोगों को शुभकामनाएँ दो। प्रेम से बोलो 26 जनवरी जिन्दाबाद, जिन्दाबाद। वन्दे मातरम् व भारत माता की जय का उद्घोष करो। विजयी विश्व तिरंगा प्यारा को कर्णप्रिय लहजे में गाओ। कलमघसीट अपनी लेखनी के माध्यम से तुम ऐसा कुछ लिखो कि लोगों को पढ़कर उन्हें 70 वर्षों में हुए विकास कार्यो की सजी-सजाई झांकी देखने को मिले। एक ही दिन की बात है.......सब कुछ पूर्ववत चलने लगेगा। भ्रष्टाचार और महंगाई के बारे में ज्यादा सोचने की आवश्यकता नहीं है। विकास भी होगा और हो रहा है। इन सब चीजों पर ज्यादा वैचारिक नसीहत देने की जरूरत नही है। देश की छोटी पंचायत, बड़ी पंचायत, जननेता, जनप्रतिनिधि के बारे में कुछ भी लिखने-पढ़ने की आवश्यकता नही। सत्ता सुख, भ्रष्टाचार में संलिप्तता, सरकारी पैसों का दुरूपयोग, महंगाई की विकरालता इन सबको छोड़ो यार। साउण्ड प्रूफ बन्द ए.सी. गाड़ियों चलते हैं सुख-सुविधा व सत्ताभोगी। आगे-पीछे सुरक्षा में लगा फोर्स। अवाम की इंकलाबी आवाजें नक्कारखाने में जैसे बोल रही हों तूती। सुपरिचित लेखिका रीता विश्वकर्मा ने बीते वर्षों देश के गणतन्त्र अवसर पर लिखे हुए एक लेख में यह जिक्र किया था कि ‘‘जाके पाँव न फटी बिवाई, सो का जाने पीर पराई.......उनके अनुसार ऐसे परिदृश्य को ही शायद रामराज कहते हैं और इस तरह के शासन में राम नाम की लूट है लूट सको तो लूट............अन्त में 71वें गणतन्त्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ- भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी

डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी
वरिष्ठ नागरिक/पत्रकार/स्तम्भकार
अकबरपुर, अम्बेडकरनगर (उ.प्र.)
मो.नं. 9125977768



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