सीमा के उस पार कथाओं के सन्दर्भ में प्रान्त प्रान्त की कहानियां
पचासों हिन्दी, सिन्धी,अग्रेज़ी पुस्तकों की रचियता बहु्भाषी साहित्यकारा व विदुषी लेख़िका सुश्री देवी नागरानी साहित्य जगत में ध्रुव तारे सी ओज लिये एक सुन्हरा नाम है जो कई लिटररी उपलब्धियों के लिये भारत ही नहीं विश्व भर में एक सशक्त हस्ताक्षर है। हिन्दी, अंग्रेजी ,मराठी तथा तेलुगु उर्दू आदि भाषा में सश्क्त, कवि, लेखक, कहानीकार, गजलकार, अनुवादक देवी नागरानी ( न्यु जर्सी-अमेरिका) द्वारा अनुवादित कहानी संग्रह “प्रांत-प्रांत की कहानियां” इनका दूसरा संग्रह है, जो देश की सीमाए पार कर कहानियों का एक ऐसा बाग हैं जो अलग अलग फ़्लेवर के फ़ुलों के सौन्दर्य से सजा हुआ है। इससे पहले आपका एक संग्रह भी इसी विषय याने सीमा पार सामग्री पर आधारित प्रकाशित हो चुका है। अभी हाल ही में उनकी अनुवादित कहानी संग्रह ‘प्रान्त प्रान्त की कहानियां’ विश्व भर में काफ़ी चर्चित रहा है। इस संग्रह में कुल मिलाकर 18 कहानियाँ संग्रहित हैं. प्रांत-प्रांत की कहानियों में मेक्सिकन, पश्तु, बराहवी, ईरानी, ताशकंद, बलूच, रुस, ब्रिटेन आदि के प्रसिद्ध कहानीकारों द्वारा रचित कहानियाँ, सभी उम्र के पाठकों के जेहन को झकझोर कर ही अपनी इतिश्री प्राप्त करती हैं। इन कथाओं ने सीमा पार लम्बा सफ़र तय किया है। हर रंग और हर नक्श का जामा पहन कर अपनी ख़ामोशी, वेदना, मार्मकिता, संघर्ष, ख़ुशी- गम, व सुख़-दुख़ की हर कथा ने अपनी संवेदनाएं व्यक्त की है। उम्र के इस पड़ाव पर इतने हठ के साथ देवी जी का यह सृजन वाकई अचरज में डालता है। इसके लिये तो इन्हे सरकार की तरफ़ से कोई सर्वोत्त्कृष्ट पदक/सम्मान/ चक्र से नवाज़ा जाना चाहिये।
वैसे अनुवाद करना कोई सरल व सह्ज विधा नहीं है। जहां मूल लेख़न में लेख़क स्वतन्त्र होकर अपनी विचारधारा को बिना विराम दिये एक फ़्लो के साथ लिख़ता चला जाता है वहां अनुवाद एक टेड़ी ख़ीर है। इसमें एक एक शब्द को उसी की तरह अर्थपूर्ण बनाकर लिख़ना वास्तव में मूल लेख़न से भी कठिन होता है। इस तरह अनुवाद करने में माहिर देवी जी सच में बधाई की पात्रा हैं जिन्हे मैं अपना गुरू प्रेरणा स्त्रोत मानकर अपना कलम चलाती रही हूँ। उन्होंने इन कहानियों को बड़े अक्षरों की कारीगरी और कठिन मेहनत करते हुए, हिंदी में अनुवादित कर हम सब तक पहुँचाया. वे शायद ऐसा न कर पातीं तो हम निश्चित ही सरहद के पार रची जा रही कहानियों से कदापि अवगत नहीं हो पाते. निश्चित ही उनका यह कार्य अमर कृतित्व रहेगा। ऐसे कृतित्व साहित्य के रिक्त स्थान को भरते है।
मैं श्री गोवर्धन यादव की बात से सह्मत हूँ, और जैसा उनका मानना है कि अनुवाद प्रक्रिया “परकाया प्रवेश” जैसा कठिन और दुष्घर्ष कर्म है. जितनी ऊर्जा लेखक को इसमें खपानी पड़ती है, उससे कहीं ज्यादा परिश्रम अनुवादक को करना होता है और यह तभी संभव हो पाता है जब अनुवादक का दूसरी भाषा पर समान रूप से अधिकार हो. ऎसा होने पर ही कहानी की आत्मा बची रहती है। इसकी अनुभूति मुझे देवी नगरानी जी की अग्रेज़ी के काव्य संग्रह “द जरनी” को सिन्धी व हिन्दी में अनुवाद करने के समय हुई। अब जब उनकी ‘प्रान्त प्रान्त की कहानियाँ’ पर एक रिव्यू लिख़ने की ज़िम्मेवारी सौंपी गयी तो ऐसा लगा शायद उनकी मज़बूत कलम को मैं वह सिरमोर न प्रदान कर पांऊ जिसकी वो हकदार है। इतने महान लेख़को को एक आयाम प्रदान करना मेरी हैसीयत से बड़े हस्ताक्षर है। फ़िर भी अपनी लेख़नी को न्याय प्रदान करने की मंशा से अनुदित कहानियों के विषय में अपनी कलम को चलाने का भरसक प्रयास कर रही हूँ।
सबसे पहले सिंधी कहानी-खून-भगवान अटलानी- का ज़िक्र करूंगी जो काफ़ी मार्मिक कथा के ताने-बाने में बुनी हुई है। यह एक एक ऐसे डाक्टर की कथा है जो ख़ुद त्रासद अभावों मे उलझा होता है, एक ऐसे ही अभावग्रिस्त गरीब रोगी के इलाज के लिए घर से तो निकला है. पर फ़ीस भी मिलेगी या नहीं, इसी ओह्पोह में वह –दुख़ी परेशान होता रहता है. उधर उस मरीज का परिवार भीषण तंगी में कराहता रहता है. यहाँ तक की वह डाक्टर से इलाज कराने की स्थिति में भी नहीं है और न ही उसके पास दवा-दारु के लिए पैसे ही हैं. डाक्टर को तो इंजेक्शन लगाना ही पड़ता है. वह जानता है कि इसकी फ़ीस भी नहीं मिलेगी और इंजेक्शन के पैसे भी उसे अपनी जेब से भरने पड़ेंगे. पैसों के अभाव में बालक पहले ही सीरयस दशा में जी रहा होता है और अन्त में उसकी करुणिक मौत हो जाती है. घर का बूढा चलने फ़िरने से लाचार सा किसी तरह मुड़ा हुआ पुराना गन्दा सा एक पांच रुपये का और एक दो रुपये का नोट लाकर डाक्टर को देते हुए कहता है-‘बस इतने ही पैसे है उसके पास फ़ीस देने के लिए.’ अटलानी जी की इस मार्मिक और कारुणिक कहानी को पढ़कर सच में आँखे नीर से भर आती है. अटलानी जी ने इस कहानी को कुछ इस तरह उकेरा है कि वह पाठक को अपने बहाव में बहाकर ले जाती है और रोने के लिए विवश कर देती है. यही कहानी की सर्वोत्कृष्टा है. देवी नागरानी ने सिन्धी भावुक साहित्यकारा होने के नाते उन्हीं भावों को वैसे ही तराश कर अपनी अनुदित कथा की सर्वोपरिता सिद्ध की है।
ऊर्दू कहानी- दोषी-में कलम के धनी कहानीकार,पत्रकार खुशवंतसिंह. ने अपने चर्चित उपन्यास “ट्रेन टू पाकिस्तान” उपन्यास की तरह इसमें भी प्रेम का त्रिकोण का संगम का ख़ूब बख़ान किया है। वास्तव में इश्के महोब्बतों की बाते इस पत्रकार ने बहुत ही संजीद्गी से की है। हालांकि कई वाक्य बेमानी भी डाले है जिन्हे तूल देने की ज़रूरत नहीं थी। पर अनुवादक को इसे हू-बहू वैसा उतारना पड़ता है।
एक और उर्दू कहानी गरीबी पर कटाक्ष करती है जिसमें कहानी का क्लाईमेक्स अलग तरह का मसाला परोसता है। कहानी- घर जलाकर- में उर्दू के जाने माने लेखक इबने कंवल ने एक बालक की सहज मनोवृत्तियों को तराशा है। ह्मेशा से सम्पऩ्न लोग गरीबो पर अत्याचार करते आये है। उनकी झोपड़ियों को जलाने की वारदातें होती रहती हैं। लाख़ दो लाख़ देकर उनकी चीख़ो को शान्त किया जाता है। उनके साथ समाज की सहानभूति और मदद के हाथ बढ्ने लगते है। नये नये कपड़े और हल्वा पूड़ी ख़ाने को मिल जाते है। कुछ समय सब कुछ ऐसा ही चलता है। पर धीरे धीरे समृद्धि के निशान गरीब बस्ती से मिटाने लगते है और तंगहाली बस्ती में पुनः दस्तक देनी शुरू हो जाती है। ऐसे में बच्चे बडों से कई कई सवाल पूछ्ते है। इसी तर्ज का एक सवाल तज्जू अपनी माँ से पूछ्ता है “मां अब कब घर में आग लगेगी?“ याने फ़िर उसे कब नये कपड़े और पकवान मिलेंगे? कथा के ऐसे उपचार एक गहरी चि्न्तत सोच में डालते है।
‘प्रांत-प्रांत की कहानियों’ में सबसे पहले देवी जी ने मेक्सिकन नोबेल प्राइज विजेता “गर्शिया मरकुएज” की कहानी –ओरेलियो एस्कोबार का चुनाव किया है. यह कहानी एक ऐसे डाक्टर की है जो झोलाछाप दांत का डाक्टर है, लेकिन दांत निकालने उसे महारत भी हासिल है. कस्बे का मेयर यह सब जानता है, अगर वह चाहता तो उसे शहर से बाहर भी करवा सकता था, लेकिन उसकी कारीगरी को देखते हुए, वह अपना दांत निकलवाने के लिए झोलाछाप इसी डाक्टर के पास आता है. दांत निकल जाने के बाद मेयर बड़े तंज के साथ कहता है-“ बिल भिजवा देना”. जिस तन्ज़ के साथ मेयर कहता है, लगभग उसी तन्ज़ वाले अंदाज में वह भी जवाब देता है- “किसके नाम...तुम्हारे या फ़िर कमेटी के नाम”. इस कहानी का शिल्प व तंज एक समाज में व्याप्त घटना का प्रतीक हैं। समाज की सच्चाई और भ्रष्टाचार की उमदा कहानी गर्शिया मरकुएज” ने प्रस्तुत की है, जिसे देवी जी ने भी सुन्दर अभिव्यक्ति के साथ अनुवाद किया है।
ईरानी कहानी- बिल्ली का खून- फ़रीदा राजी- की पशुओं, द्वारा भी प्रेम की वही कहानी कही गयी है जो इन्सानो के स्वभाव में गुण विद्यमान होते हैं. प्रेम करना, प्रेम पाने के लिए जत्न करना, वियोग की अग्नि में झुलसना, मन के और शरीर के उत्पातों को सहना और अन्त में प्रेम न पाने पर अपना अन्त करना आदि सामग्री परोसती है। यह कहानी एक बिल्ली को लेकर लिखी गई है, एक बिल्ले को वह प्राणों से ज़्यादा चाहने लगती है. “पर सारे मर्द इको होन्दे” की तरज़ पर बिल्ला उसे छोड़कर चला जाता है। उसे रोकने बिल्ली का भरपूर प्रयास करती है। पर उसके कान जूं तक नही रेंगती। अन्दर ही अन्दर बिल्ली घुटती मरती झुलसती रहती है और एक दिन मर जाती है। विरह की व्याथायें इन्सानों पर तो बहुत लिख़ी गयी है पर पशु प्रेमी फ़रीदा राजी ने अपनी बारीक निगाहों से अपनी बिल्ली की व्यथा को अपने अहसासों का जामा पहनाया है। देवी जी ने इस कहानी का चुनाव करके इस फ़्लेवर को भी संग्रह में सम्मलित किया है।
पश्तु कहानी-आबे हयात- कथाकार-नसीब अलहाद सीमाव- में आदमी के अमर होने की बाते कही गयी है। पर जाना तो सबको इस जहान से है। पर यदि आदमी “आबे हयात” का पान कर ले, तो वह अमर हो जाता है. भारत में भी इस मान्यता के सबूत मिलते हैं कि कोई अमृत का पान कर ले, तो वह अमर हो जाता है. माँ-बेटे के बीच इसी ओह-पोह को लेकर कहानी में बेटा फ़ौज में भरती हो जाता है और युद्ध में शहीद भी हो जाता है. शहीद होकर वह अमरता प्राप्त कर लेता है. वैसे सही भी है कि “शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशान होगा।“ ये निशान ही हमारी ऊर्जा व प्रेरणा का स्त्रोत है। यदि कोई कार्य लगन मेहनत व् ईमानदारी से किया जाय तो मकसद में ज़रूर सफ़ल होता है।
बराहवी कहानी- आखिरी नजर- वाहिद जहीर- की कथा में अंधी बीबी और जवान होती बेटी लाली की कहानी है. बेटी जब जवान होती है तो माता पिता के लिये बड़ी ज़िमेवारी होती है कि वह अपनी बेटियों को गलत रास्ते पर चलने से बचाए और उसे सही मार्गदर्शन दे। इसमें चूंकि बीबी अन्धी है तो पूरी ज़िमेवारी बाप के कन्धो पर होती है। बीच बीच में कुछ जिमेवारी के पुट उसके मामा पर भी दर्शाए गये है। शबदो व लहज़ों की कारीगरी के कारण कथा मोहित करती है।
जन साधारण विषयों को छूती बराहवी कहानी-बारिश की दुआ. आरिफ़ जिया. रचित है जिसमें बच्ची जेबू और उसकी माँ को बरसात का डर सताता है. डर इस बात का कि यदि बरसात हुई तो उसकी झोपड़ी गिर जाएगी, सामान ख़राब होकर बर्बाद हो जाएगा और जीवन जीना हराम हो जाएगा. वह नन्हीं बच्ची अल्लाह से बारिश न होने की दुआ मांगती है कि न बारिश हो और न उनकी कुटिया डूबे। वहीं दूसरी तरफ़ गर्मी की तपिश से तंग लोग बारिश होने की और सिर्फ़ बारिश की दुआ मांगते है.। अंततः बरसात नहीं होती है । जेबू की अल्लाह सुन लेते है और वह बहुत खुश होती है। बार बार बरसात के अहसासो से डरी जेबू की मार्मिक कहानी दिल को छूने वाली कथा समाज की दुर्द्शा की ओर इंगित करती है।
इस संग्रह में ताशकंद के जगदीश की कहानी-गोश्त का टुकड़ा है. गरीबी- और अभावों में जीवन जीते एक ऐसे बंदे की कहानी है जो अपने कुल खानदान की इज्जत बचाने के लिए मात्र एक गोश्त का एक टुकड़ा या मांस का लोथरा भर रह जाता है. समाज में चारों ओर ऐसी कई कथाए बिख़री हुई हैं।
पंजाबी लेखक-बलवंत सिंह की कहानी-कर्नलसिंह, सिख जाट की कहानी जिसकी असली पहचान उसकी लाठी और घोड़ी होती है. चोरी हो चुकी घोड़ी की तलाश पर घूमती रोचक व गुदगुदाने वाली कहानी है । कोमेडी के पुट परोसती कहानी मूड को हल्का करने के लिए काफ़ी है।
मराठी-की .मोकाशी की कहानी- मुझ पर कहानी लिखो- एक लड़की की जिन्दगी में उम्र के विभन्न परिस्थितियों में विभन्न बदलाव आते हैं, उनको समेटती हुई लिखी गई कहानी है.
वास्तव में सब कहानियों की विस्तार में समीक्षा संभव नहीं है इसलिए उन कथाओं का ज़िक्र कर अपनी बात पूरी करती हूँ। ये चन्द कहानियां है जो देवी जी के संग्रह में सम्मिलित की गयी है। जैसे ब्रिटिश-हेनरी ग्राहम ग्रीन की कहानी-उल्लाहना-दो बूढों के जीवन के हालात और उनकी स्वछन्द इच्छाओं को उजागर करती हुई कहानी है, तथा कश्मीर-की हमरा खलीफ़ की कहानी-उमदा नसीहत, अंग्रेजी--अरुणा जेठवानी की-कहानी “कोख”, पंजाबी -रेणू बहल की कहानी- द्रोपदी जाग उठी, बलूच-लेखिका- डा.नइमत गुलची की कहानी-क्या यही जिन्दगी है, रुसी-मेक्सिम गोर्की की कहानी-महबूब, ऊर्दू-..दीपक बुदकी की कहानी-सराबों का सफ़र, पश्तु- अली दोस्त क्लूच की कहानी-तारीक राहें, आदि है।
आज के सोशल मीडिया युग में जहां पढो और भूल जाओ की तर्ज़ पर ज़माना चल रहा है ऐसे में लिख़ना और अनुवाद करना वाकई काबिले तारीफ़ है। अमेरिका में बैठे बैठे लिख़ना फ़िर भारत में प्रकाशन के लिए भेजना, कम्प्यूटर द्वारा लिखकर ही वह यहाँ और वहां के बीच एक सेतु बांध पाई है. मैं उन्हे सैल्यूट करती हूँ और अपनी शुभकामानाए देकर उनके इस सग्ंह को अधिक से अधिक लोगो तक पहुंचने की हार्दिक इच्छा रख़ती हूं।
डा ध्रुव तनवानी
पूर्व विभागाध्यक्ष समाजशास्त्र ,RWC
विज़िटिंग फ़ैकल्टी ,बी-आई-टी रांची
2/75, Morabadi Ranchi 834008
email- tanvanid@yahoo.co.in phone 7991105487
कहानी संग्रह:प्रान्त प्रान्त की कहानियाँ, अनुवादक-देवी नागरानी, वर्ष: २०१८, कीमत:रु. ४००, पन्ने, १५०, प्रकाशक: भारत श्री प्रकाशन, 16/119 पटेल गली, सूरजमल पार्क साइड, विश्वास नगर, शाहदरा, दिल्ली-110032
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