आज के दौर में पैसों के हथियार की ज़रूरत है
ग़द्दार ख़ुद मर जायेंगे बहिष्कार की ज़रूरत है ।
ज़मीन हमारी,रोटी हमारी ,दाना पानी हमारा है
तय हम करेंगें पहले किसे आहार की ज़रूरत है ।
जब पता है मौक़ा मिलते ही हमको डस लेता है
दूध नहीं ऐसे नागों को रोज़ मार की ज़रुरत है।
कई खंड में बाँटा भारत,असीम कभी सीमायें थीं
छिनी हुयी सीमाओं को नये आकार की ज़रुरत है।
माफ़ी नहीं इन शैतानों को गोली मारो,फाँसी दो
हैवानों को सत्कार नहीं तलवार की ज़रूरत है।
विषवेल उग आईं खेत में धरती माँग रही गुड़ाई
विषवेलों को हसियों की तेज़ धार की ज़रूरत है ।
"दीपक" विनती क्यों करते ,हो जाइये सख़्त ज़रा
इस पार नहीं इन भूतों को उस पार की ज़रूरत है।
* डॉ दीपक शर्मा *
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