Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बुद्धम शरणं गच्छामि

 
बुद्धम शरणं गच्छामि................ 

दो पल सुख से सोना चाहे पर नींद नही पल को आये
जी मचले  हैं  बेचैनी से  ,रूह न जाने क्यों  अकुलाए  
ज्वाला सी जलती हैं तन मे , उम्मीद  हो रही  हंगामी।
बुद्धम शरणं गच्छामि................ 
  
मन कहता हैं  सब छोड़  दूँ मैं  , पर  कैसे  छुटेगा  ये 
माया है रूप बदल लेती ,लगती दरिया सी तपती रेत
जो पूरी होती एक अभिलाषा,पैदा हो जाती आगामी।
बुद्धम शरणं गच्छामि................ 
  
नयनो मे शूल से चुभते हैं,सपने जो अब तक कुवारें हैं 
कण से भी छोटा ये जीवन,  थामे सागर हाथ हमारे हैं
पागल सी घूमती रहती इस चाहत मे ज़िन्दगी बेनामी।
बुद्धम शरणं गच्छामि................ 
  
ईश्वर हर लो मन से सारी, मोह  माया  जैसी  बीमारी 
लालच को दे दो एक कफ़न,ईर्ष्या को बेबा की साड़ी
मैं चाहूँ  बस  मानव बनना ,माँगू एक कंठी हरिनामी । 
बुद्धम शरणं गच्छामि................

*डॉ दीपक शर्मा *

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