बहुत छोटी है कमज़ोर यार याददाश्त हमारी
भूल जाने की बहुत जल्दी है हमको बीमारी
पन्ने तारीख़ के आता नहीं हमको पलटना
कहो क्या याद है अब भी हादसा-ऐ-निठारी।
किस्सा तंदूर वाला आज बीती बात हो गई
सिनेमा वाला वाकिया तो गुजरी रात हो गई
जेसिका कांड में भी सीधी सीधी मात हो गई
हमारी चुप्पी से खुश क़ातिल जात हो गई ।
कटारा हादसा एक हादसा ही बनके रह गया
क़त्ल प्रियदर्शनी का जुर्म ही बनकर रह गया
हमला संसद पर एक हमला बनकर रह गया
गीतिका कांड सियासी खेल ही बनके रह गया।
चलो कुछ और वाकियात आज करते तरोताज़ा
कहो क्या याद है अब तुम्हे गुनाहे- वज़ीर राजा
चारे के जुर्म का किसने भला भोगा खामियाजा
कानून से कह रहे मुज़रिम अबे भाग ले जा जा ।
ऐसे ही हम ये सब कल ज़िस्मखोरी भूल जायेंगे
सरकारी फाइलों में हादसे सब कहीं धूल खायेंगे
मुझे शक़ है कभी मुज़रिम सज़ाएं माकूल पायेंगे
प्रभू! मेरे वतन में इंसाफ़ क्या मक़तूल पायेंगे ।
रौशनी उम्मीद की अहले- वतन ये बुझने न पाये
निजामी चाल के आगे कसम अब डिगने न पाये
शिकारी जाल में चिरिया कोई अब फसने न पाये
आवामी खौफ से मुजरिम कोई भी बचने न पाये।
@ डॉ दीपक शर्मा
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