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"छोटा सा गुलाब"
छोटा ही सही गुल-आब हूँ ..
तेरे गुलशन का रुहाब हूँ l
तेरा कल भी था और आज हूँ ..
तेरे अन्तर्मन के जज़्बात हूँ ..
छोटा ही सही गुल-आब हूँ l
तू कह ना सके, तो कहता भी हूँ
तेरी बुजदिली पर हँसता भी हूँ
कभी सजाते, कभी मसल देते,
पर तेरी फितरत में फँसता भी हूँ
मैं ही तेरा बदला अंदाज़ हूँ ...
छोटा ही सही गुल-आब हूँ ।
तेरे गुलशन का रुहाब हूँ ।
है ईश्वर का सत्कार मुझे
तेरे पाहुन का आभार मुझे
गर करे अकारण मुझपे सितम,
तेरे चुनने का प्रतिकार मुझे
तेरी नजरों में छुपा इक राज़ हूँ ...
छोटा ही सही गुल-आब हूँ ।
तेरे गुलशन का रुहाब हूँ ।
कभी रंग बदलकर देखे तू
कभी क़िताबों में सहेजे तू
फ़िर भी तेरे साथ हूँ खड़ा,
चाहे प्यार से ले या फेंके तू
तेरे भावनाओं का आभास हूँ...
छोटा ही सही गुल-आब हूँ ।
तेरे गुलशन का रूहाब हूँ ।
लेखिका- डॉ ज्योति स्वामी ‘रोशनी‘
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