अवसाद के तिमिर
---------------------
दुख के बादल तो थोड़े दिन के तूफानी धुन्ध के बीच छंट जायेंगे ।
अवसाद के छितराये तिमिर जो मन्दार के उदय होते ही छट जायेंगे ।।
मन के अज्ञात भय को निकाल
मानव औकात पर कर सवाल
अदृश्य जीव का खौफ खा रहा
प्रकृति विरूद्व क्यों तू जा रहा
सोचा कि कूड़ा -कचरा डालेंगे
शांत स्वर गंग के न कह पायेंगे
जान ले गर ये छोटी -छोटी बाते
निराशा के सारे फंद कट जायेंगे ।
दुख के बादल तो थोड़े दिन के तूफानी धुन्ध के बीच छट जायेंगें ।
प्रकृति जितना झोली में डाले
उतना ही हमसे चाह को पाले
वहाँ लाशों से वाहन पटे पड़े
गाजर मूली के ढ़ेर से है लदे
भयावह मंजर दिल दहलाता
अपने चहेतों को गैर बनाता
संयम नियम का करके पालन
इन बलाओं से हम बच जायेगें ।
दुख के बादल तो थोड़े दिन के तूफानी धुन्ध के बीच छट जायेंगें ।
डा मधु त्रिवेदी
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY