मगर बिन चाँदनी जंचता नहीं है
गगन में मेघ घिरते हो भले ही
कभी भी दूर वो भगता नही है
निशा चाहे सघन औ स्याह काली
मगर मावस कभी घटता नहीं है
घना तम जब पसरता शून्य नभ में
मगर ध्वनि नाद से डरता नहीं है
हमेशा इश्क रचाऊँ चाँद अपने
मगर दिल आपका जुड़ता नहीं है
नयन से चाँदनी आँसू गिराये विरह में
चाँद कब घुलता नहीं है
कहूँ मैं आपसे जब चाँद तो
क्यों सदा इस चाँदनी रमता नहीं है
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