स्लम बस्ती
बस्ती एक संपूर्ण दुनिया होती है
इसमें अट्टाल कोठियाँ भले ही न हों
मुरली और राधा के लिए यहीं घर हैं
जिन्हें कोठीवाले झुग्गी कहते हैं
और गाड़ीवाले इसके प्लास्टिक छप्परों पर मूतते है
बस्ती में सुबह होती है,
शाम भी होती है
कामकाजी लोग शाम को यहीं वापस लौटते हैं
चौरस्ते पर बेंच पर बैठ चाय सुड़कते हैं
औरतें घूरते हैं
अमिताभ और सचिन पर चर्चाएं गरमाते हैं
कुल्हड़ में कच्ची शराब पीते है
और याराना में माँ-बहन की गालियाँ बाँचते हैं
लोग समझते हैं कि बस्ती में क्या होता होगा
वहाँ सिर्फ़ गाली-गलौज़
चोरी-छिनैती, झपट्टामारी
अवैध विवाहेतर लुकाछिपी
बलात्कार, गुंडागर्दी होती होगी
पर, बस्ती में मंदिर भी है
जिसका पुजारी नेम-धर्म से पूजा-अर्चना करता है
और छैल-छबीली औरतों के हाथ मसल-मसल
उनके भाग बाँचता है,
मस्ज़िद भी है वहाँ
जहाँ मौलवी
नमाजियों की फ़ौज़ के बीच खड़ा होकर
सामुदायिक अस्तित्त्व का बोध कराता है
बस्ती एक पूरा समाज है
नियमों-सिद्धांतों से संबद्ध
रीति-रिवाज़ों से वचनबद्ध
दांडिक विधानों से आबद्ध।
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