देखो आदमी बदल रहा है ,
आज खुद को छल रहा है,
अपनो से बेगाना हो रहा है ,
मतलब को गले लगा रह है ,
देखो आदमी बदल रहा है …………
औरो के सुख से सुलग रहा है ,
गैर के आंसू पर हस रहा है,
आदमी आदमियत से दूर जा रहा है
देखो आदमी बदल रहा है …………
आदमी आदमी रहा है
आदमी पैसे के पीछे भाग रहा है ,
रिश्ते रौंद रहा है ,
देखो आदमी बदल रहा है …………
इंसान की बस्ती में भय पसर रहा है ,
नाक पर स्वार्थ का सूरज उग रहा है ,
मतलब बस छाती पर मुंग दल रहा है
देखो आदमी बदल रहा है …………
खून का रिश्ता धायल हो गया है
आदमी साजिश रच रहा है
आदमी मुखौटा बदल रहा है
देखो आदमी बदल रहा है …………
दोष खुद का समय के माथे मढ़ रहा है ,
मर्यादा का सौदा कर रहा है ,
स्वार्थ की छुरी तेज कर रहा है ,
देखो आदमी बदल रहा है …………
डॉ नन्द लाल भारती
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