उठो वंचितो,शोषितो मज़दूरो ,
कब तक जीवन का सार
गंवाओगे
कब तक ढोओगे
रिसते जख्म का बोझ
कब तक व्यर्थ आंसू बहाओगे ,
तुम रो आब जान गए हो ,
सपने मार दिए गए है ,
तुम्हारे साज़िश रचकर ,
तुम्हारे पसीने ने
संभावनाओ ने सींचे रखा है
ललचाई आँखों से
राह ताकना छोड़ दो
अब तो तनकर,
अधिकार की मांग कर दो……
बंद नहीं खुली आँखों से देखो सपने
कब तक बंद किये रहोगे
आँख भय से
बंद आँखों के टूट जाते है सपने ,
तुम यह भी जानते हो
बंद आँखों का टूट जाता है सपना ,
याद है आंधियो से
टिकोरे का गिरना ,
शोषित हो
अब सबल कर दो मानग प्रबल
सो खोया वापस तुम पा सकते हो
अब तो तनकर,
अधिकार की मांग कर दो……
बेदखल हुए तो क्या है तो अपना
मांग पर अटल हो जाओ ,
देखो रोकता है राह कौन ,
अधिकार की जंग शहीद हुए तो
अमर हुए अपनों के काम आये ,
बहुत पीए गम,
सम्मान का मौंका मत गवाओ
अब तो तनकर,
अधिकार की मांग कर दो……
गुजरे दुःख के दिन पर शोक,
मनाने से क्या होगा
भय भूख में जीने वालो ,
कर दो ब्यौछार जीवन को
वक्त आ गाय हिसाब माँगने
सम्मान से जीने का
अधिकार मत मरने दो
अब तो तनकर,
अधिकार की मांग कर दो……
गम के आंसू में जीए
अनगिनत बार
चूल्हे से नहीं उठा धुंआ
अत्याचार की उम्र बढ़ाने वालो
दर्द का जहर पीने वालो
हर पल चौखट पर
तुम्हारी गरजता पतझड़
उत्पीड़न,जुल्म,शोषण के
विरान में तपने वालो
अब तो तनकर,
अधिकार की मांग कर दो……
लूटा गया हक़ तुम्हारा
जानता जहान सारा ,
फिजां में हक़ की हगंध अभी बाकी है ,
अत्याचार की तूफ़ानो ने किया
तुम्हारा मर्दन
अत्याचार शोषण के दलदल से
बाहर आओ
लूटा हुआ हक़
वापस लेने की हिम्मत कर लो
बदले वक्त में समानता का नारा
बुलंद कर दो
अब तो तनकर,
अधिकार की मांग कर दो……
नफ़रत का बीज बोने वालो ने
दर्द के सिवाय और क्या दिया है ?
अंगूठा कटाने,धुल झोंकने के
सिवाय किया क्या है ?
चेतो खुली आँख से सपने देखो
बहुत ढोया अत्याचार का बोझ
संविधान की छांव ऊपर उठ जाओ ,
विषमता का कर बहिष्कार ,
मानवीय समानता का हक़ ले लो ,
अब तो तनकर,
अधिकार की मांग कर दो……
डॉ नन्द लाल भारती
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