आज पच्चीस अप्रैल है
मालूम है
इसी दिन तो जीवन की तपस्या
कैद हुई थी बहुरुपिए के चक्रव्यूह मे
आज ही के दिन
बहुरुपिये किडनैपर और
उसकी सल्तनत ने
खींच लिए थे शरीर से पराण
तभी से निष्पराण सा हो गया हैं
उम्मीदों के बाजू अभी भारी हैं
जीवन चल रहा है
हौसले की उर्जा पर और
उम्मीदों की उंगली थामें
वो किडनैपर मांद से निकला नहीं
छुपमछुपाई का खेल खेल रहा
खोखले आरोप लगा रहा
सामने आने मे शरमा रहा
काली करतूतें हो जाएगी उजागर
मुंह छिपा विष उगल रहा है
किडनैपर सपने छिनकर सपने सजा रहा
हक छिनने वाले जमीं हो जाएगी बंजर
आसमां छिन जाएगा तुम्हारा
सच्चाई मे है इतनी शक्ति
मिल जाएगा आसमां एक दिन
गुमराह कर छिन लिए सपने
कब तक चढोगे चोरी की सीढिय़ों से आसमान
टूट कर बिखर जाएगा बहुरुपिए
ना बचेगा तुम्हारा निशान
तुमने दगा की खंजर जो सीने में है उतारा
खुदा की कसम
चोर ठग बहुरुपिए वही खंजर
तुम्हारी जहां को सात जन्म तक
करती रहेगी बंजर..........
अपनो को खुदा सद्बुद्धि बख्शना
अपनों की चौखट पर बजती रहे शहनाई
अपनी जहाँ वालों तुम्हें बधाई .......
डां नन्द लाल भारती
25/04/2020
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