कत्लूबाबा पोथी का भ्रम दिखाकर धनासेठ ही नहीं पूजनीय भी हो गये थे।दबे कुचलों को वे लहलहाती फसल समझते थे।जैसे ही स्कूल के दरवाजे खुले कत्लूबाबा और उन जैसों की पोथी के रहस्य से पर्दा उठने लगा अन्ततः कत्लूबाबा और उन जैसों की लहलहाती फसल पर ओले पड़ गये। पोथी का भ्रम दूर निकल गया। कत्लूबाबा के बेसहूर परन्तु शिक्षित लड़के गोपाल ने अच्छी नौकरी हथिया लिया। वह न तो नौकरी में फर्ज के प्रति वफादार था ना विभाग के वह विभाग को दोनो हाथों से दूहने की जुआड़ में ही रहता था उसकी इसी हरकत से उसे दबी जबान टीए बिल चोर भी कहते थे। अन्ततः समरथ नहीं दोष को चरितार्थ करते हुए उच्च पद तक को प्राप्त कर लिया। किसी कार्य बस नरेन्द्रभाई जो अन्य प्रान्त में स्थानान्तरित हो गये थे विरेन्द्रभाई को फोन लगाये चलितवार्ता की घण्टी बजते ही वह चिढ़ कर पूछे कौन बेवकूफ है बेमौके फोन कर रहा है।
विरेन्द्रभाई उच्चशिक्षित थे परन्तु गोपाल के अधीनस्थ थे। विरेन्द्रभाई बोले नरेन्द्रजी।
बाहर खदेड़ दिेये जाने के बाद भी यहां क्यों फोन कर रहा है तुरन्त बन्द करो गोपाल ने आदेश दिया और फोन का गला दब गया ।आधे घण्टे के बाद विरेन्द्रभाई ने फोन कर बताया यार बात नही हो पायी थी।
नरेन्द्रभाई ने पूछा आपके साथ कौन था।
गोपाल विरेन्द्रभाई बोले ।
नरेन्द्रभाई के मुंह से एकदम निकल गया टीए बिल चोर बहुत फर्जी टीए बिल बनाता था पकड़ा भी गया बहुत बार मेरे सामने रोया भी है।
वही था नरेन्द्रभाई विरेन्द्रभाई बोले।
धोखेबाज भ्रष्ट्राचारी अपराधी कितना ‘ाातिर क्यो ना हो कानून के लम्बे हाथ पहुंच जाते है अन्ततः वही हुआ।
डां नन्दलाल भारती
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