आओ बात करें।
आओ कुछ बात करें
कुछ दूर तो साथ चले
प्रियवर
आओ कुछ बात करें
घट रहे हैं पल-पल
मन मे कोई मलाल ना रहे
आओ साथ चले,
रात गई बात नहीं बनी
तुम कुछ भूल जाओ
कुछ हम प्रियवर
नई भोर है
संगीत नया उठता है
भले ही परिन्दों की राग हो
तुमको भी भाता है
कोई मधुर स्वर में जब गाता है
भोर हो चुकी है
देखो प्रियवर
गांव की चौखट पर
सूर्य बिछने को आतुर हैं
आओ कुछ बात करें
मन की गांठे खोलो
समय फिर कहा लौटेगा
आओ कुछ दूर साथ चले
घट जायेगी दूरियां
बिछ जायेगी स्नेह की चादरें
ये दूरियां बर्दास्त नहीं होती
ना ये कषैली बंदिशें
आओ प्रियवर,
साथ चले ,मन की बात करें
पिघल जाये गांठें
मिल जाये आदमियत को जहां
आदमी को समान क्षितिज
प्रियवर आओ हाथ बढ़ाओ
नहीं बर्दाश्त होती ये
आदमी के बीच की दूरियां
मिटा दे अब सारी दूरियां
आओ बात करें
कुछ दूर ही नहीं
कायनात के आखिरी दिन तक
साथ चले..... कुछ बात करें ।
क्या धर्मी क्या गैरधर्मी
क्या जाति क्या परजाति
आओ तज दें सब बंदिशें
ढहा दें नफरत की हर दीवारें
आओ प्रियवर साथ चले
आओ बात करें........
नन्द लाल भारती
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