वो दिन कब आएगा ,
जीवन में ,
आदमियत का दीवाना ,
खिलखिलाएगा ।
बसंत कितने आये गए
दीवाने सच्चे राही ,
मुरझाये रह गए।
बगिया में पतझड़
बारहमासी रहा ,
बसंत जीवन में
दूरी बनाये रहा।
बड़ी उम्मीद से ,
आस लगा बैठे हैं।
आस ना परिहास बन जाए ,
उध्दार की प्रतिज्ञा ,
यौवन पा जाए।
अफ़सोस कुछ लोगो को ,
छिनना आता है ,
दीवाने को फ़र्ज़ पर मरना ,
याद रह जाता है।
दीवाना उसूल पर है पक्का ,
सद्कर्म वाट-बृक्ष का ,
आकार पायेगा ,
हर थाल में सजे रोटी ,
सिर हो छांव ,
सच दीवाना तब ये ,
खिलखिलायेगा
… डॉ नन्द लाल भारती
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