आसमान पर मोहब्बत की खेती
कुछ मनचले कहते हैं
बवरा गया हूँ मैं
क्योंकि आसमान पर
मोहब्बत की खेती
करना चाहता हूँ.....
मैं ऐसा ही हूँ
क्योंकि मैं सपने देखता हूँ
वह भी खुली आंखों से
लोग कुछ हैं जो
सपनों को सच नहीं मानते
हां सपने सच होते हैं
त्याग भी होता है कुछ.....
कर्म की इम्तहां पास
करनी होती है
यही तो किया भागीरथ ने
हम ईमानदारी से कर्म तो
कर सकते हैं
आसमान पर मोहब्बत की
खेती कर सकते हैं......
देवियों और सजनो
जरा सोचो
गर आसमान पर
मोहब्बत की खेती हो गई
तो क्या होगा ?
बरसात के साथ मोहब्बत
दुनिया कैसी होगी .....?
स्वच्छ जल की तरह
निर्मल मोहब्बत का बहाव
साफ होगा
स्वच्छ वातावरण
नफरत का कोई वजूद....?
कोई धर्म की दीवार
जातिवाद की सलाखें
कुछ नहीं होगी
आदमियत की बीन भरपूर
ना कोई सीमा ना कोई पहरा
बस आदमियत का बसन्त
मोहब्बत की खुशबू
कितनी सुन्दर होगी हमारी
दुनिया
जरा सोचो देवियों और सजनों
मैं सचमुच बवरा गया हूँ
क्या...?
हम अपने दिल के
आसमान पर मोहब्बत की
खेती कर ही सकते हैं
देर किस बात की
आओ शुरू कर दे
आसमान पर
मोहब्बत की खेती.......
डां नन्द लाल भारती
22/07/2021
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