Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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अभिलाषा

 

खुद को कर कुर्बान,
अपनी जहां को
आज़ादी की देकर सौगात
वे शहीद हो गए
कर्ज के भार अपनी जहां वाले
दबे के दबे रह गए …………
आज़ादी का उदघोष चहुंओर
अपना संविधान
लागू हुआ पुरजोर ....
पर नियति की खोट
आज़ादी के मायने बदल गए
ना पूरी हुई असली
आज़ादी की आस
ना हुआ संविधान
राष्ट्र ग्रन्थ ख़ास ख़ास …………
कहते है ,
कर्म से नर नारायण होता
अपनी जहां में आदमी
जातिवाद,भेदभाव से
दबा कुचला रह गया रोता …………
अरे लोकतंत्र के पहरेदारो
अपनी जहा के शोषितो की,
सुधि लो
शोषितो कि समतावादी
सुखद कल की
तुमसे है आशा
अब तो कर दो पूरी
असली आज़ादी की अभिलाषा…………

 

 


डॉ नन्द लाल भारती

 

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