Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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अभिमन्यु की मौत

 

सब्र की खेती ,उम्मीदों की बदली
सूखने लगे उम्मीदों के सोते ,
वज्रपात कल का डरा रहा विरान ,
जहर पीकर कैसे जीये कैसे सीये,
भेद-भरे जहां में बड़े दर्द पाए है ,
दर्द में जीना आंसू पीना ,
नसीब बन गया है।
तकलीफों के दंगल में
तालीम से मंगल की उम्मीद थी ,
वह भी छली गयी ,
श्रेष्ठता के दंगल में छल-बल के सहारे ,
अदना क्या अजमाए जोर ,
जीना और आगे बढ़ने का जनून ,
मौन गिर-गिर उठाता कर्म के सहारे।
नहीं मिलता भरे जहां में कोई
आंसू का मोल समझने वाला
पकड़ा राह सधा- श्रम ,सपनों की आशा ,
खडी भौंहे कुचल जाती अभिलाषा ,
ऐसा जहां है प्यारे,
स्वहित में परायी आँखों के सपने जाते है ,
बेमौत मारे।
ईसा,बुध्द और भी पूज्य हुए इंसान ,
कारण वही जो आज है जवान ,
भेदभाव दुःख-दरिद्रता ,जीव दया, मानवहित ,
परपीड़ा से उपजे दर्द को खुद का माना
किये काम महान ,
दुनिया मानती उन्हें भगवान।
वक्त का ढर्रा वही बदल गया इंसान
कमजोर के दमन में देख रहा
सुनहरा स्व-हित आज इंसान
दबंग के हाथो कमजोर के सपनों का क़त्ल
अभिमन्यु के मौत समान
आओ खाए कसम ना बनेगे शैतान
ना बोएगे विष ना कमजोर का हक़ छिनेगे
मानवहित-राष्ट्रहित को समर्पित होगा जीवन
बनकर दिखायेगे परमार्थ में सच्चा इंसान।

 


डॉ नन्द लाल भारती

 

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