अद्भुत प्राणी
इंसान भी अद्भुत प्राणी है न,
कई बार फरज की रक्षा में
जहर तक उतार लेता है
घटा घटा.........
उसूल पर कई मरने को भी
तैयार हो जाता है
पल-पल जी कर मरने वाला
नहीं खुश कर पाता
खुद दलदल में खुद को
ढकेल कर भी.....
वह रोता है मन की गहराई में
खुद बिखर जाता है
अपनो को सम्भालने मे
लगता है अपनो को बेइंसाफी हो रही
उनके साथ....
अपने नहीं समझ पाते हैं
अपने को ही खुद के गुमान मे
या दबाव मे किसी के
बेचारा अपनों की सास को
अपनी समझने वाला......
अपने के दिये घाव मे टूटता
सम्भलता सहारे को तरसता
सहारा बनने को तड़पता
उम्मीद के दीये जलाता
जीता है हाफ-हाफ कर
अपनो संगठित करने की
तड़पती उम्मीद मे.......
तड़प तड़प कर भी सींचता रहता हैं
अपनो का भविष्य
खुद कल बर्बाद कर चुका
आज और कल भी कर देता है
सच इंसान अद्भुत प्राणी है
टूट कर नहीं बिखरता अपनो के लिए।
डां नन्द लाल भारती
22/10/2020
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