यह न तो रेल एक्सीडेंट था न रोड, न किसी मंत्री ने न किसी महामंत्री ने इस्तीफा दिया था परंतु जमीन से आसमान तक क्रुन्दन था ।असल में यह एक कौवे का एक्सीडेंट था जो नव वर्ष के प्रथम प्रभात में एक पांव गँवा चुका था। नाले में पड़ा तड़प रहा था ।कौवा बिरादरी के लोग जमीन आकाश एक किये हुए थे पर लाचार थे ।हमने हिम्मत कर कौवे को नाले में से निकाल कर सुरक्षित स्थान पर रख दिया । पूरी कौवा बिरादरी और जोर जोर से चिल्लाने लगी जैसे धन्यवाद कर रहे हो फिर एकदम सन्नाटा पसर गया जैसे एक पांव गवा चुके कौवे से हाल पूछ रहे हो।बदलते वक्त में परिंदे कितने समझदार हो गए है और इसके उलटे हम।काश हम भी समझदार होते मुसीबत घायल या एक्सीडेंट के शिकार आदमी के काम आते ?
डॉ नन्द लाल भारती
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