लघुकथा: अजनबी
कर्मदास के मां-बाप गरीबी का जीवन बसर करते हुए भी अपने बच्चों की परवरिश अपनी हैसियत के अनुसार बेहतर तरीक़े से कर रहे थे। कर्मदास पढाई को अपने परिवार का उध्दारक मान कर लाख तकलीफें सहकर भी पढाई कर रहा था,खेतीबारी के कामों में भी मां-बाप का सहारा बनता ।
छोटा भाई मोहन भी कम न था । दोनों भाई आपस मे बड़े प्रेम से रहते थे।माता -पिता का त्याग कर्मदास का श्रम और संघर्ष काम आया ।लम्बी बेरोजगारी के बाद बी.ए. पास कर्मदास को क्लर्क की नौकरी मिल गई।
कर्मदास ने ईमानदारी से अपने दायित्वों का निर्वहन किया । मोहन पढाई मे पिछड़ गया और गांव मे सिमट कर पत्नी सुषमा के साथ पारिवारिक जीवन का सुख भोगने लगा । घर परिवार और मोहन के के बच्चों की जिम्मेदारी कर्मदास और सुलोचना कंधे पर आ गई। कर्मदास अपनी हैसियत के अनुसार घर परिवार को संवार कर रख दिया। गांव के लोगों के लिए कर्मदास और सुलोचना आदर्श थे,मोहन और सुषमा के लिए देवतुल्य।
कर्मदास की पत्नी के सहयोग और त्याग से मोहन के बच्चे भी अच्छे पढ लिख गए। मोहन के बेटे लालचंद को कर्मदास की पत्नी ने चार साल की उम्र से अपने पास शहर मे रखकर पढाई-लिखाई । कर्मदास और उसकी पत्नी के त्याग से लालचंद पढ़लिखकर साहब बन गया।बड़ी धूमधाम से लालचंद का ब्याह भी किया पर पढी-लिखी बहू ने ससुर मोहन और सास सुषमा के कान में ऐसा विष घोल दिया कि कर्मदास और सुलोचना दूध मे गिरी मक्खी हो गए।
समय के बदलाव की महिमा देखो कर्मदास और सुलोचना जो कभी नैया के होनहार खेवइया थे वही अब मोहन और सुषमा के लिए अजनबी होकर रह गए थे ।
कर्मदास और उसकी पत्नी सुलोचना परमात्मा से प्रार्थना करते,दुआएं देते हुए कहते हे परमात्मा जाने-अनजाने कोई गुनाह हो गया हो तो हमें माफ करना । घर परिवार के सदस्यों को सुख-शांति और सद्बुध्दि देना भले ही हम पारिवारिक झमेले मे फंसे रहकर अकेले रह गए। हमारी नैया के खेवइया तो तुम ही हो परमात्मा ।
डां नन्द लाल भारती
14/11/2021
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY