Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

अन्र्तद्वन्द

 

मनोहर के जीवन के षरूआती दिन काफी कश्टप्रद बिते थे। मां-बाप भूमिहीन मजदूर थे।परिवार बड़ा था। कमाने वाले सिर्फ मनोहर के बाप धनीराम मांता लक्ष्मीनादेवी। मनोहर के मांता बाप नाम से तो इतने धनी थे कि लगता था कि धन के देवी-देवता धनीराम और लक्ष्मीनादेवी के तहखाने में पालथी मारे बैठो हो पर था एकदम उल्टा। धनीराम का परिवार दाने-दाने के लिये मोहताज था। धनीराम और लक्ष्मीनादेवी जमीदारों के महल से खेत तक पसीना बहाते थे चूल्हा गरम करने के लिये। महीने में कई ऐसे मौके आते थे जब पानी पी-पीकर परिवार को रात गुजारनी पड़ जाती थी।भूख से त्रस्त छःबच्चों के पेट भरने के लिये कभी-कभी बटाई पर बोयी अधपकी फसल काटकर परिवार का पेट भरने के लिये खेत मालिक के सामने गिड़गिड़ाना भी पड़ता था। एक बार की बाढ आयी हुई थी,घर में खाने को अन्न का दाना नही थी। लक्ष्मीना कमर तक पानी से होकर धान के खेत तक पहुंची थी। अधपके धान के खेत से धान काटी और बड़ी मुष्किल से सिर पर रखी बाढ़ के पानी के तेज बहाव को पारकर पगडण्डी पर पहुंची ही थी कि गांव के मुर्दाखोर जमींदार सूरजबाबू की नजर लक्ष्मीना पर पड़ गयी। सूरजबाबू बंधुआ मजदूर को ललकारते हुए बोले अरे घुरहुवा दौड़ देख चोरनी खेत से धान काटकर ले जा रही है।घुरहू घेरकर लक्ष्मीना को पकडकर जमींदार के सामने हाजिर कर दिया।
जमीदार-क्यों लक्ष्मीना तुम चोरनी कब से बन गयी।
लक्ष्मीना आव ना देखी ना ताव वह बेखौफ बोली बाबू चोर तो जमींदार हो सकते है मजदूर नहीं।
जमीदार की जबान तालु में चिपक गयी पर बेषर्म बोला धान अपने बाप के खेत से काटकर ले जा रही हो।
लक्ष्मीना-हां मेरे बाप का ही समझ लो अधिया पर रोपी हूं, और खेत मालिक को बता कर काटी हूं बच्चों और मवेषियों का पेट भरने के लिये।
घुरहू बोला -लक्ष्मीना नाराज क्यों होती है जमीदारबाबू समझे है कि उनके खेत से काटकर ले जा रही है।
लक्ष्मीना-जमीदार बाबूओं की तो दी हुई है अपनी और अपने समाज की बदनसीबी वरना कभी हमारा समाज के लोग इस देष के राजा महाराजा थे। छलियों ने छल से सब लूट लिया अब खुद राजा बन बैठे है ईमानदारों को चोर ठहरा रहे है,उन्हें लाज भी नहीं आती।इतना सुनते ही जमीदार सूरजबाबू को जैसे करैत ने डंस लिये वे बोले धान का बोझ उठा और जल्दी दफा हो जा।लक्ष्मीना धान का बोझ उठाई और फिर अपने घर ही आकर सांस ली
लक्ष्मीना से सारा वाक्या बीमार धनीराम से कह सुनायी। इस खौफनाक हादसे की दास्तान सुनकार छोटे मनोहर की आंखों से आंसू बह निकले थे। लाख मुसीबतों में रहने के बाद भी लक्ष्मीना और धनीराम ने बच्चों को स्कूल भेजने में कभी चूक नही किये।सभी बच्चे तो उच्ची षिक्षा नहीं ले पाये पर मनोहर भूखे -प्यासे भी स्कूल जाता रहा।वजीफा ने उसको आगे पढ़ने में खूब मददगार साबित हुआ।अन्ततः मनोहर बी़ए पास कर लिया यह खबर जमीदार के छाती को ऐसे दर्दे दी जैसे छाती पर फन फैलाकर बैठा सांप। कहते है ना पैसे की मां पहाड़ चढ जाती है वही हुआ जमींदार बाबू का अजब बिना बारहवी पासं किये एकदम बीए पास कर लिया और उसे बड़े ओहदे की नौकरी भी जुआड़बाजी से मिल गयी । बचपन से ही मुसीबतों और अभावों का सामना करते हुए पले-बढ़े और बी.ए. तक पढ़े मनोहर को बरसों तक षहर-षहर में धक्का खाने और जातिवाद का जहर पीने के बाद मामूली बाबू की नौकरी कोपकृश कम्पनी मिल तो गयी पर यहां भी वही षोशण,उत्पीड़न, धक्का और जातिवाद का जहर क्योंकि विभाग जमींदार जाति विषेश की मुट्ठी में था। आजाद देष के कोपकृश कम्पनी में भी वर्ण व्यवस्था खूब फल फूल रही थी । अर्धषासकीय कोपकृश कम्पनी के आंचलिक कार्यालय में मनोहर जैसे पढ़े लिखे कमर्चारी के साथ भी वर्णिक व्यवस्था के मोहजाल में फंसे अफसर मनोहर के साथ अछूतों जैसा ही व्यवहार करते थे। स्वजातियों को चहुंतरफा को अवैध कमाई करने तक छूट थी परजाति खासकर मनोहर के साथ जो वैसा ही सलूक होता था जैसे गांव के जमींदार खेत में काम करने वाले मजदूरों के साथ करते थे। अर्धषासकीय कोपकृश कम्पनी के चपरासी से लेकर सर्वश्रेश्ठ प्रबन्धन तक सभी वंचित वर्ग के खिलाफ थे। दुर्भाग्यवष सदियों से वंचित वर्ग के मनोहर की नौकरी इसी कम्पनी में लग गयी। कोपकृश कम्पनी वंचित वर्ग कोई कर्मचारी नही था। कोपकृश कम्पनी का प्रबन्धन जमींदारीप्रथा से ओतप्रोत था।कुछ ही महीनों के बाद मनोहर को असुरक्षा के तूफानों का सामना करना पड़ने लगा।कम्पनी में जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली कहावत अक्षरषः साबित हो रही थी। कोपकृश कम्पनी के उच्च षिक्षित उच्च पदाधिकारी भी मनोहर को अछूत ही समझते और वैसा ही दुव्र्यवहार करते थे। मनोहर के सामने कई संकट थे,गांव में बूढ़े मां-बाप भाई बहन,खुद के बच्चे और भविश्य भी। इन्हीं अन्र्तद्वन्द के बीच मनोहर असमय बूढ़ा हुए जा रहा था। कम्पनी के कर्मचारी ही नहीं उच्च अधिकारी भी स्वजाजीयों के उत्थान और मनोहर जैसे परजाति जाति के पतन के लिये बिच्छू जैसे डंक मारने को तैयार रहते थे। सामन्तवादी सोच इतनी जवान थी कि वे तथाकथित छोटी जाति को के उच्चषिक्षित,योग्य और अनुभवी कर्मचारी को चूहे के आकार से उपर नही उठने देना चाहते थे।कई बार सुनने में आ जाता था ये छोटे लोग कम्पनी में घुस तो आये है पर तरक्की मूस मोटैइहै लोढ़ा होईहै जैसी कर पायेगा मतलब चूहा कितना भी भारी हो जाये पर लोढा से भारी तो नही हो सकता। मनोहर वर्तमान और भविश्य के अन्र्तद्वन्द में डूबा हुआ था,इसी बीच दरवाजे पर किसी के आने की आहट ने उसके अन्र्तद्वन्द को झकझोर दिया। तनिक भर में ठक-ठक की आवाज के साथ अरे मनोहर भाई घर में हो क्या ?
अरे मनोहर भाई की आवाज जैसे उसको बचपन में ढ़केल दी हो। अरे ये तो धर्मराज की आवाज है,वह विह्वल सा दरवाजे की ओर बढ़ा।
गीता अरे कहा जा रहे हो कमीज तो पहन लेते।
मनोहर कमीज पहनूं की बचपन के साथी से मिलूं।
गीता-वाह आप भी जागते हुए सपने देखते रहते हो। गांव से जोजन कोस दूर बचपन का साथी कहां से आ गया कोई। कोई तो है जो मेरे बचपन के सहपाठी धर्मराज की तरह आवाज दिया है,कहते हुए मनोहर दरवाजा खोलकर बाहर की ओर लपका।सचमुच धर्मराज को पाकर मनोहर के आंसू बह निकले और धर्मराज को भी।
गीता बचपन के दो दोस्तों की भावुकता और आतुरता को देखकर भावविभोर हो गयी उसीक भी पलके गीली हो चुकी थी। वह पल्लू से आंख रंगड़ते हुए बोली कुलदीप के पापा नाष्ता में क्या लोगे ।
मनोहर-पोहा बना लो जलेबी कुलदीप से मंगा लो।उसके पहले चाय मिल जाये तो आनन्द आ जायें।
धर्मराज-भाभी के हाथ की चाय पीकर असीम आनन्द आयेगा।
गीता पानी चाय और बिस्कुट सब साथ लाकर रख दी।
मनोहर भागवान इतनी जल्दी क्या थी।
बचपन के दोस्तों के असीम स्नेह प्रदर्षन के दर्षन से भला मैं वंचित कैसे रह सकती हूं।
ठीक है बैठिये मनोहर बोला।
गीता-आपकी बातें सुनते हुए पोहा बनाने की तैयारी भी कर लेती हूं।
मनोहर-देवीजी प्याज आंखों में लगेगी।
धर्मराज-यार भाभी कितना अच्छा इन्तजाम कर रही है।
मनोहर-कैसा इन्तजाम ?
धर्मराज-कह दूं आंसू छिपाने का।
मनोहर-वो धर्मराज तुम तो बहुत दूर की सोच रहे हो। पढ़ने में भले ही कमजोर थे पर अब होषियार हो गये हो।
धर्मराज-मनोहरबाबू बम्बई की डा्रइवरी की देन है। सिर पर बोझ पड़ता है तो सब सीखना पड़ता है।
मनोहर-कब से अैक्सी लाइन में हो ?
धर्मराज-सातवीं कक्षा पास और आठवीं फेल होते ही।
मनोहर-बम्बई के मजे हुए टैक्सी ड्राइवर हो गये होगे?
धर्मराज-क्यों नहीं।कई षिश्य है, पर अब टैक्सी चलाना छोड दिया हूं।
मनोहर-क्यों ?
धर्मराज-दर्जन भर टैक्सियां है,उनकी देखभाल के लिये तो कोई चाहिये।दफतर में बैठता हूं। सभी धर्म,सभी जाति के भाई लोग ड्राइवर है,वही चलाते है।उनका भी घर चलता है अपना भी।
मनोहर-बधाई हो धर्मराज,तुम सेठ हो गये,तुम्हारी वजह से कई लोगों के घर चल रहे है।
धर्मराज-कई डा्रइवरों के तो बच्चे इंजीनियर तक बन गये है। मेरी टैक्सी चलाकर,खैर छोड़ो तुम तो अपने गांव के ही नहीं गांव के आसपास के कई गांवों में सबसे अधिक पढ़े लिखे हो।हमारी तो हार्दिक तमन्ना तो है कि तुम उतने ही बड़े अफसर होगे।
मनोहर-हो सकता था यार पर जातिवाद का घुन मेरा भविश्य खा गया। दस साला पहले वरिश्ठ अधिकारी हो गया होता अगर मेरे साथ विभाग में न्याय हुआ होता तो सामन्तवादी सेवारत् उच्च अधिकारी ही नहीं सेवानिवृत अधिकरियों जैसे देवेन्द्र प्रताप,विजय प्रताप,अवध प्रताप आदमियत विरोधी के गुट हिटलरो ने खूबा विरोध किया,नौकरी ज्वाइन करने के बाद से ही ये लोग मेरी जड़ खोदने में लग गये थे सिर्फ इसलिये की अछूत का बेटा सामन्तवादी कम्पनी में कैसे अधिकारी बन जायेगा। भाई धर्मराज तरक्की का आदेष निरस्त हो गया। आज के इस जमाने में भी कोपकृश कम्पनी का प्रबन्धन जमींदारी व्यवस्था को तवजो देता है,यहां सारे कानून कायदे ताक पर रख दिये गये हैं। षोशित का हक लीलने को तैयार रहता है।मैं भी हार नही माना,पत्थर दिलों पर दूब जमाने का प्रयास करता रहा पर भविश्य चैपट हो गया यार इतने में गीता पोहा जलेबी सेन्टर टेबल पर रखते हुए बोली लो लीजिये इंदौरी पोहा जलेबी और समोसा का नाष्ता हाजिर है।
मनोहर-देवी प्रतिबन्ध ना लगाओ नाष्ता करते हुए बात तो जार रह सकता है।
गीता-क्यों नही हजूर?
धर्मराज-मनोहर बाबू अपनी नौकरी के बार में कुछ कह रहे थे।
गीता- भाई साहब जो है उसी में खुष रहने की जरूरत है।फिक्र की वजह से इनकी काया बीमारियों का अड्डा बन चुकी है।दुनिया जान चुकी है- कोपकृश कम्पनी में छोटी जाति के लोगों का भविश्य सुरक्षित नही है। वैसे तो इस सामन्तवादी कम्पनी में षोशित वर्ग के लोगों को नौकरी नही मिल सकती अगर मिल भी गयी तो आप तरक्की नही पा सकते । इन्हीं को देख लीजिये देष भर की तो बात नही कर सकती प्रदेष में बड़ा से बड़ा अफसर इनसे अधिक पढ़ा लिखा नहीं होगा पर तरक्की से वंचित है,छोटी जाति का होने के कारण ।कई बार तो नौकरी से निकालने के अभियान भी चलाये सामन्तवाद के समर्थकों ने।
मनोहर-गीता सही कह रही है,धर्मराज।
धर्मराज-बाप रे ये जातिवाद का अन्र्तद्वन्द भारत की आत्मा को कब तक डं़सता रहेगा।
मनोहर-जातीय अन्र्तद्वन्द ही तो है सारी मुष्किलों की जड़। मामूली से लोग कमजोर तबके के आदमी की मर्यादा का पोस्टमार्टम कर देते है।मामूली से पढ़़े लिखे उच्चवर्णिक लोगों के उपनाम के साथ साहब लगाया जाता है।षोशित वर्ग का आदमी को तो साहब कहने में जैसे सांप सूघ जाता है।मस्सलन देखो मेरे साथ काम करने वालों को सिंह साहब,षर्मा साहब,पाण्डेय साहब ऐसे सम्बोधित किया जाता है।मुझे मनोहर बहुत किसी ने सम्मान के साथ संबोधित कर दिया तो मनोहरजी कह दिया।कई लोग पब्लिसिटी लेने के लिये भी करते है,कहते है देखो मनोहरजी छोटी कौम के है,हम इन्हें मनोहरजी कह कर बुलाते है।धर्मराज मैं और विभागों की तो नहीं कह सकता मेरे साथ तो दोयम दर्जे का ही व्यवहार अब तक हुआ हैं। हर उच्च अधिकारी घाव ही दिया है।या जातीय रिसते घाव को खुरचा है।
धर्मराज-मनोहरबाबू पढाई में कितने साल लगाये।
मनोहर-पच्चीस साल।
धर्मराज-मैं तो आठवी फेल होते ही बम्बई चला गया।कुछ दिन गाड़ी पर काम किया।काम करते करते ड्राइवरी सीख गया,अब दर्जन से अधिक उंची जाति वाले मेरे यहा काम कर रहे है।सेठसाहब बोलते है।मैने भी मेहनत किया अंगे्रजी हिन्दी लिख पढ सकता हूं,पत्राचार करता हूं जबकि स्कूल में नहीं आता था तुमसे नकल कर लेता था। रही जाति का बात तो ऐसा नही कि कोई नहीं जानता,सभी जानते है कि मैं आजमगढ का हूं और रविदास समाज से हूं। इतने भाईचारा के साथ काम करते है कि दूसरे टैक्सी के मालिक समझते है कि हम सब खून के रिष्तेदार है।यार तुम्हारे विभाग का उच्चवर्णिक पढ़ा लिखा समाज तो भेड़िया जैसा व्यवहार करता है।
मनोहर-मलाल तो मुझे भी है। इस बात का मलाल नही है कि मैं मामूली सा अफसर ही बन पाया जनरल मैनेजर नही बन सका सारी योग्यता होने के बाद भी। मलाल तो इस बात का है कि मुझे जातीय अन्र्तद्वन्द ने दोयम दर्जे का बना दिया। मेरी योग्यता और प्रतिभा को सम्मान नही मिलता।जातीय नफरत का षिकार बार-बार होना पड़ता है।
धर्मराज-दोस्त भले ही मैं सेठसाहब हूं,तुम्हारे सामने मैं कुछ भी नहीं हूं। तुम्हारी योग्यता औा प्रतिभा के सामने नतमस्तक हूं। मुझे याद है स्कूल में तुमने चैलेंज कर दिया था पंडितजी से।
मनोहर-किस चैलेंज की बात कर रहे हो।
धर्मराज-गढहापार वाले पंडितजी जो हिन्दी और गणित के मास्टर थे।
मनोहर-समझा जो मेरा नम्बर काट किये थे पच्चास में से सिर्फ सत्तरह नम्बर पासिंग मार्क दिये थे। मैं प्रिसीपल साहब के पास कापी लेकर गया था । मेरा नम्बर बढ तो गया था पर गणित विशय से ऐसा डर बैठ गया था कि आज तक नहीं खत्म हुआ।
धर्मराज-हिन्दी मे तो तुम गढहापार वाले पंडितजी के बाप हो गये हो।
मनोहर-ऐसा ना कहो यार।
धर्मराज-द्रोणाचार्य ने एकलव्य का अंगूठा कटवा लिया,ऐसे गुरूओं से क्या देष और समाज का भला होगा।ऐसे लोग तो राश्ट्र और मानव समाज के लिये कलंक होते है। दोस्त जितना तुमने पढाई को तवज्जो दिया उतना तो अपने गांव में कोई नही दिया। उसके एवज में तुम्हें कुछ भी नहीं मिला, षायद कम्पनी की पालिसी पर सामन्तवादी विचारधारा हावी नही होती तो यकीनन तुम जनरल मैनेजर होते।
मनोहर-हां.....धर्मराज सम्भव क्या नही है परन्तु कैद नसीब का मालिक जो ठहरा।
धर्मराज-कैसी बात कर रहे हो यार ?
मनोहर-सेठजी हम और हमारे लोग कैद नसीब के मालिक ही तो है। कभी सोचा है कि हमारे लोग ही क्यों गरीब ,अषिक्षित,भूमिहीन है,और हमारे जैसे पढ़े-लिखों को उच्चवर्णिक लोगों की भौहे क्यो तन जाती है।
धर्मराज-अरे हां इस बारे में तो कभी सोचा ही नहीं। मैं तो यही समझ रहा था कि गरीबी-अमीरी उंच-नीच सब विधि का विधान है।
मनोहर-नही भाई आदमी की साजिष है।यह उसी वर्ग की साजिष है जिस वर्ग ने जम्बूदीप के चक्रवर्ती सम्राट बाली का छल से हथिया कर बंदी बना लिया।मौर्य वंष के सम्राट ब्रहमदत की छल से हत्या कर जर्बदस्ती षासक बन बैठा क्या ऐसा वर्ग मूलनिवासीभारतवंषियों को तरक्की करने देगा। नही ना भाई। उसी वगर््ा की घिनौनी सोच का परिणाम है। ऐसी ही साजिषों के तहत् मूलनिवासीभारतवंषियों के धर्म-धन दौलत,जमीन पर कब्जा होता रहा और धीरे-धीरे अछूत,आदिवासी और पिछडे होकर रह गये है। आज आज अस्सी प्रतिषत भारत अछूत,आदिवासी और पिछड़े के नाम से जाना जाता है।
धर्मराज-समझ गया दोस्त तुम्हारी पीड़ा। ऐसी ही साजिष तुम्हारे साथ कर रहे है सामन्तवादी विचारधारा के अफसर।
मनोहर-हां मनोहर मैं अपने विभाग में अकेला सामन्तवादी व्यवस्था के अन्र्तद्वन्द का षिकार हूं,मेरी तरक्की के सारे रास्ते बन्द हो चुके है,यह सत्य भी है क्योंकि में अकेला हूं परन्तु देष में अकेला नही।
धर्मराज-सचमुच देष को सामन्तवाद ने बहुत नुकषान पहुंचाया है। सामन्तवाद का नरपिषाच देष को नहीं डंसा होता तो हमारा देष दुनिया का सबसे विकसित देष होता पर हाय रे जातिवाद,क्षेत्रवाद,सामन्तवाद सब तहस नही कर रखा है,आदमी को अछूत,आदिवासी और पिछडे वर्ग में बांट रखा है ऐसे बंटवारो से देष और मूल भारतीय समाज का भला कैसे होगा।चैखट-चैखट,दफतर-दफतर घिनौने बंटवारे की अग्नि आज भी सुलग रही है।हमारे गांवों की हाल तो और खराब है।वही लोग तो षहरों में बसते है । षहरों के लोगों की मानसिकता में बदलाव हुआ है पर कुछ लोग आज भी पुराने रूढ़िवादियों की तरह ही दुव्र्यवहार करते है।ऐसे लोग ही कमजोर तबके की तरक्की के रास्ते बन्द करते है।सम्भवतः ऐसे सामन्तवादी विचारधारा के लोगों के बीच तुम नौकरी कर रहे हो।
मनोहर-हां धर्मराज ठीक समझे। हमारे विभाग में स्व-जातीय बांस अपने अधीनस्थ कर्मचारियों और अफसरों को सरकारी मषीनरी का खुलेआम दुरूपयोग करने को प्रोत्साहित करते है।भरपूर आर्थिक लाभ पहुंचाते है। हर सम्भव फायदा उपलब्ध करवाते है,वही उन्हीं सामन्तवादी अफसरों द्वारा हमारे जैसे कर्मचारी/ अफसर के साथ जैसे पुलिस वाली थर्ड डिग्री अपनाया जाता है।गुलाम समझाा जाता है,कहा जाता है अरे वो मिस्टर अपने समाज वालों को देखों कहा है। ऐसे तल्ख समझों में मानों गालियां दी जा रही हो।
धर्मराज-आधुनिक युग में पढ़े लिखे लोगों का ऐसा अन्र्तद्वन्द समाज के अच्छा संकेत तो नही । दुख की बात है, देष के संविधान बदलने की बात इस देष में होती है, जिस संविधान से देष चलता है, देष से, दुनिया जुड़ती है,दुनिया में पहचान बनती है। समता,सद्भावना और विष्वबन्धुत्व के सद्भाव में अभिवृद्धि होती है,उस संविधान को बदलने की बात होती है परन्तु उस धार्मिक संविधान को बदलने की बात नहीं होती जिसमें लिखा है, षूद्र गंवार ढोल पषु नारी,ये ताड़ना के अधिकारी। ये कैसी बिडम्बना है। आजकल आरक्षण को लेकर चर्चा का बाजार गर्म है। आरक्षण विरोधियों को सोचना चाहिये, आरक्षण कोई खैरात नही है,आरक्षण अधिकार है। आरक्षण गरीबी हटाने का कोई का्रर्यक्रम भी नही है। आरक्षण का अर्थ उनका प्रतिनिधित्व है, जो इस देष के मूलनिवासी है। उन सभी को अपना-आपना प्रतिनिधित्व करने का अधिकार है। संवैधानिक आरक्षण खत्म करने सेे पहले सनातनी अर्थात वर्णिक आरक्षण खत्म करना होगा। इसके लिये जाति व्यवस्था के समर्थकांे को ही आगे आना होगा। जनतान्त्रिक विचार धारा का मूलमन्त्र है-राश्ट्रीय एकता,स्वधर्मी समानता,बहुधर्मी सद्भावना,जीओ और समानता के साथ जीने दो। यही जनतन्त्र का उद्देष्य है और संविधान की स्वीकृति भी इसके बाद भी जातीय अनर््द्वन्द समाज और देष को खोखला किये जा रहा है।
मनोहर-जातीय अन्र्तद्वन्द को खत्म करने के लिये सामाजिक समताक्रान्ति की,जनतातिन्त्रक सोच विकसित करने की जरूरत है। बहुजन हिताय बहुजन सुखाय के अधूरे सपने को पूरा करने के लिये दृढ़ संकल्पित होने की की जरूरत यही संकल्प जनतन्त्र की रक्षा कर सकता है। आज का युवा सक्षम है। युगनिर्माता बाबा साहेब अम्बेडकर ने कहा है,जाति व्यवस्था ने जाति की पवित्रता नही बनायी बल्कि समाज को टुकड़ो में बांट कर लोगों का मनोबल गिराया है,जातिविहीन समाज की स्थापना के बिना राजनैतिक आजादी व्यर्थ है। जाति-पांति के रहते न समाज संगठित हो सकता है और न उसमें राश्ट्र्रीयता की भावना पूर्णतः विकसित हो सकता है। वर्तमान स्वार्थनीति को देखते हुए लगने लगा है कि देष में सामन्तवाद और वंषवाद जनतन्त्र्र पर भीतरघात कर रहे हंै। यही कारण है कि आजादी के सरसठ साल के बाद भारतीय व्यवस्था में चैथे दर्जे के आदमी के आर्थिक और सामाजिक स्तर में कुछ विषेश सुधार नही हुआ है। आज भी जातिवाद का नरपिषाच मौके-बेमौके डंसता रहता है जातिवाद का नरपिषाच ही अन्र्तद्वन्द को बढ़ावा दे रहा है।यही अन्र्तद्वन्द हक,अधिकार,योग्यता को चट कर रहा है।
धर्मराज-देष और भारतीय समाज के पिछड़ेपन का कारण जातीय अन्र्तद्वन्द ही तो है। विजयदषमी यानि दषहरा के दिन रावण दहन भी तो जातीय अन्र्तद्वन्द का ही कारण है।
मनोहर-सच कह रहे दषहरा भी अन्र्तद्वन्द का पुख्ता परिणाम है।जानते हो धर्मराज विजयदषमी क्या है? विजयदषमी के दिन विजय किसकी हुई थी ?
धर्मराज-क्या राम की ?
मनोहर-नहीं । विजयदषमी का सही नाम है अषोक विजयादषमी,जो सम्राट के कलिंग युद्ध विजयी होने के दसवें दिन मनाये जाने के कारण अषोक विजयादषमी कहलाती है।जिस दिन सम्राट अषोक ने बौद्ध धम्म की दीक्षा ली थी असल में इसे ही विजयादषमी कहते हैं।भाई षर्मराज बात रही दषहरे की तो तुमको बता दू कि चन्द्रगुप्त मौर्य साम्राज्य के अन्तिम षासक ब्रहमदत मौर्य तक कुल दस सम्राट हुए।अन्तिम सम्राट ब्रहमदत मौर्य को उनके विष्वासघाती ब्राहमण सेनापति पुश्पमित्रषंुग ने छल से हत्या कर दिया और षंुगवंष की स्थापना कर लिया । मौर्यवंष के दस सम्राटों का पुतला बनाकर दहन कर उत्सव मनाया , संयोगवष वह दिन अषोक विजयादषमी का ही दिन था। देष को खण्डित करने वाले और मूलभारतीय समाज के दुष्मनों ने पुश्पमित्रषंुग को राजाराम की उपाधि दे दिया । तब अषोक विजयादषमी की जगह विजयादषमी का उत्सव हो गया।
धर्मराज-विजयादषमी के पीछे बड़ी साजिष है जो कही नही कही जातीय अन्र्तद्वन्द की द्योतक है।इस अन्र्तद्वन्द को समाप्त करने के लिये जातीय अन्र्तद्वन्द के पोशकों को आगे आना होगा। उपेक्षित समाज को षिक्षित करो संघर्श करो और विकास करो के मूलमन्त्र को आत्मससत् कराना होगा।
मनोहर-हां धर्मराज इसके साथ ही आर्थिक सम्वृद्धि के लिये व्यापार की ओर कदम बढाना होगा,तुम्हारी तरह। बदते युग में सरकारी नौकर और आरक्षण से उपेक्षित समाज की दषा और दिषा बदलने वाली नही हैं। उपेक्षित समाज के सम्पन्न लोगों को उद्योग स्थापित कर रोजगार उपलब्ध कराने की प्रतिज्ञा लेकर उपेक्षित समाज और देष को सबल बनाने का प्रयास करना चाहिये।
धर्मराज-लाख टके की बात कह रहे हो।इस मुद्दे उपेक्षित समाज के आर्थिक रूप से सम्पन्न लोगों उद्योग-धन्धों के क्षेत्र में उतरना चाहिये। इससे उपेक्षित समाज षिक्षित होगा और सम्पन्न भी।सफल मुलाकात रही भईया मनोहर अब इजाजत दो।
मनोहर-इतनी रात में।
धर्मराज-छः घण्टे की यात्रा तो है बम्बई की। अपनी गाड़ी दो ड्राइवर लेकर आया हूं। मेरी फिक्र ना करो यार हम तो सड़क पर चलने वाले लोग हैं।
मनोहर-इतनी जल्दी क्या है।
धर्मराज-जातीय अन्र्तद्वन्द के खिलाफ संग्राम।

 

 

 

डां.नन्दलाल भारती

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ