खुशी के साथ गम के अंवारा बादल क्यों भाईजान ?
पुरानी यादें हैं भाई रसूल ।
ये कैसी यादें जो खु्शी का दमन कर रही हैं।
अपनों से जुड़े किस्से है ।
साझा करने लायक नही हैं क्या देवचन्द भाई ?
ये ऐसा मिश्रित दर्द है कि ना साझा करने से बढ़ेगा ना घटेगा ।
ऐसी क्या बात है भाईजान ?
बात बीस साल पुरानी है।छोटे भाई की पत्नी रीतिका गांव से इलाज के लिये आयी थी।आदित्य तीन साल का रहा होगा।किराये का मकान था,वह घर के बाहर अन्दर कही भी लघुषंका या दीर्घषंका कर देता था।एक दिन मैं खाने बैठा ही था कि वह दीवाल के सहारे लघुषंका कर दिया । मैंने प्यार से ही थप्पड़ मार दिया बस क्या वह चिल्ला पड़ा। रीतिका ने ढिढोरा पीट दिया कि आदित्य के बड़े पापा ने ऐसा थप्पड़ मारा की आदित्य गिर पड़ा घण्टों रोता रहा।आदित्य के पापा ने कभी दूब से नही मारा। उसी आदित्य की परवरिष मेरी पत्नी और मैने अपने पास रखकर षहर मेंा किया। आज आदित्य मैनेजर है,दूसरी कम्पनी दोगुना पैकेज देने को तैयार है,कितनी बड़ी खुषी की बात है,दिल में मलाल रखता तो आदित्य का भविश्य ऐसा तो नहीं होता परन्तु रीतिका का ढिढोरा आज भी उतना ही दर्द देता है रसूल भाई।
अपनों के दिये दर्द का विश पीकर भी भाईजान जो आपने परिवार के भले के लिये इतिहास रचा है,सबके बस की बात नहीं, काश सभी जैसे कर पाते रसूल बोला।
डां नन्दलाल भारती
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