लघुकथा : अपनेपन की मौज
और भाई मोहन अब तो मजे में तिलकदेव बोले ?
भाई तिलकदेव जी पहले भी मजे मे था आज भी हूँ भला मजे मै क्यों न रहूं, औलादें अपने-अपने पांव पर खड़ी हैं........ जीवन मे मजा ही मजा है।
मैं इस मजे की बात नहीं कर रहा तुम्हारे नये साहब की बात कर रहा हूँ तिलकदेव जोर लगाकर बोले।
नये साहब ठीक है, अपनी तो आदत है विभाग के प्रति वफादारी काम के प्रति ईमानदारी। काम सब को प्यारा होता है चाम नहीं मोहन बोला।
तुम्हारे पुराने साहब को न तुम्हारा काम पसंद था न चाम।
काम आंकने का उन साहब का पैमाना अलग था मोहन बोला ।
तुम्हारा पुराना साहब तुम्हारे काम को तवज्जो नहीं देता था क्योंकि वह तुम्हारी जाति से नफरत करता था।
भाई साहब उनकी करनी उनके साथ मेरी मेरे मोहन बोला।
तुम्हारे डायरेक्ट बास तो तुम्हारी बिरादरी के हैं, कुछ रुतबा तो बढ़ा ही होगा तिलकदेव बोला।
मुझे तो ये मालूम नहीं था आज आपसे मालूम।रही रुतबे की बात तो कोई खास फर्क नहीं। पहले वाले साहब नरपिशाच प्रवृति के थे अब नरप्रवति के इतना फर्क तो है मोहन बोला।
मतलब अब अपमान नहीं होता । हर काम में गलती नहीं निकाली जाती तिलकदेव बोला ।
काम मे कमी तो नहीं निकाली,गाहे -बगाहे प्रशंसा भी मिलती है लेकिन.....
लेकिन क्या मतलब मोहन तिलकदेव बोला ।
पुराने उच्च वर्णिक साहब जातीय ईगो और पद के रुतबे का नंगा प्रदर्शन करते थे,नये साहब उच्चवर्णिको को खुश करने के लिए करते हैं मोहन बोला ।
कुछ अपने लोग भी उपर पहुंचकर उध्दार के बजाय अपनों को दर्द देते हैं जबकि अदना अपनेपन की मौज मे दर्द विस भी पी लेता है।
नन्द लाल भारती
23/04/2022
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