अरे अमानुष दोस्त बनकर
खंजर उतारना ये गुनाह तुम्हारा
विश्वास का बलात्कार नहीं तो
और क्या ......?
इस गुनाह की सजा वक्त मुकर्रर करेगा
तुमने कैद किये सपने रिश्ते के जाल मे
ये तुम्हारी बहेलियागिरी और कब तक ....?
लग जायेगी ज्वाला तुम्हारी जहां मे
बिखर जायेंगे सारे सपने तुम्हारे
रिसते दर्द का असर तो होगा अमानुष
तेरी उम्मीदों का दीया ना रोशन होगा
वक्त तो दण्ड देगा कब तक खैर....?
अमानुष आदमियत की छाती मे
उतारे तुम्हारे खंजर का दर्द
तेरे होने का सबूत भी वक्त मिटा देगा
रिश्ते की आड़़ मे सपने
कैद करने वाले अमानुष मिट जायेगा
मिट जायेगा..... हर ख्वाब तेरा ।
डां नन्द लाल भारती
29 /01/2020
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