Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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अरे वाह

 
लघुकथा: अरे वाह ।
शुभ प्रभात पति पररमेश्वर ।
हमारे तो नसीब खुल गए ।शुभप्रभात देवी जी ।भाग्यवान आपके कोकिला स्वर मे डर कैसा ?
चाय लीजिए ।
बताएंगी नहीं ।
क्या बताऊँ  ?
वही जो मौन है पर दस्तक दे रहा है।
पतिदेव के साथ डर कैसा ?
भाग्यवान जो डरा रहा है ।
चाय लीजिए ।
बिना शक्कर की चाय मे मोती भी ।
कौन सा मोती ?
कमलनयन से जो झरे हैं ।
मत पीजिए दूसरी लाती हूँ ।
नहीं नहीं रहने दो । ये दर्द के मोती हजम कर लूंगा ।
क्या कर रहे हो जी ? 
गलत तो नहीं  । हां हंसकर जीना पड़ेगा ।
कैसे ?
चलो  नई शुरुआत करते हैं ।सब भूला देते हैं ।
क्या - क्या ?
सब कुछ....... बेटा-बहू का दिया सुलगता दर्द । बहू के मां-बाप की ठगी भी ।
कैसे भूला देगें आपकी हाड़फोड़ मेहनत, खुली आंखों के सपने और सब ठगी ।जीवन की ऊंची -नीची राहों के दर्द भी ।
देवीजी जरुरी है अब ।और भी तो हैं  खून-पसीने से सींचे अपने लोग,खून के रिश्ते और दोस्त भी हंसकर जीने के लिए ।
अरे वाह कसम से क्या बात है....... हा हा ।
डां नन्द लाल भारती
22/06/2019

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