चिंता की चिता हुए ,
अस्तित्व संवारने में ,
जुट गया हूँ ,
बाधाएं भी निर्मित कर ,
दी जाती है ,
थकने लगा हूँ,
बार-बार के प्रहार से,
मैं डरता नहीं हार से ,
क्योंकि,
बनी रहती हैं
सम्भावनाये जीत की ।
अंतर्मन में उपजे
सदविचारो में ,
अस्तित्व तलाशने लगा हूँ ,
मेरी दौलत की गठरी में हैं ,
कुलीनता,कर्त्तव्य निष्ठां,आदमियत ,
बहुजन सुखाय के ज्वलंत विचार।
जानता हूँ
पीछे मुड़कर देखता हूँ ,
विश्वाश पक्का हो जाता है
कि
मैं स्थाई नहीं परन्तु
स्वार्थी भी नहीं हूँ ।
मैं दसूलत संचय के लिए नहीं ,
अस्तित्व के लिए संघर्षरत हूँ।
टूटा नहीं है ,
मेरा विश्वास हादशों से ,
निखरी नहीं है ,
मेरी आस जानता हूँ
संभावनाओ के पर नहीं टूटे है ,
भले ही
दौलत की तुला पर निर्बल हूँ ।
कलम का सिपाही हूँ ,
बिखरी आस को जोड़ने में लगा हूँ ,
चिंता की चिता पर ,
सुलगते हुए भी
कलम पर धार दे रहा हूँ ।
अभी तक टूटा नहीं हूँ मैं,
दिल की गहराई में पड़े है
ज्वलंत साद विचारो के
ज्वालामुखी
जो
अस्तित्व को ,
जिन्दा रखने के लिए काफी है ।।।
डॉ नन्द लाल भारती
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