Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बड़ी बहू

 

 

बसन्त में उदासी क्यों पार्वती ? बड़ी बहू आ गई है,खुश रहा करो।चूल्ह चौके से फुर्सत लो देविका बोली।

यही तो तकलीफ है।बहू ने चैन छिन लिया देविका बहन पार्वती बोली ।

बिना दहेज की शादी, उच्च शिक्षित बहू, नाक में दम बात समझ मे नहीं आयी पार्वती क्या माज़रा है ?

बहू के बाप ने तो बारात गए हमारे खून के रिश्तेदारों को खाना ,नाश्ता के लिए पूछा ही नहीं, दहेज क्या देता।खुद की बेटी के लिए एक चददर मय्यसर नहीं हुआ, खैर विवेक के पापा ने दहेज रहित बेटे का ब्याह करने की शपथ लिए थे पूरा कर दिखाये, पर गलत परिवार से रिश्ता हो गया।बहू छाती पर मूंग दलने लगी है डोली से उतरते ही।ना जाने किस गुनाह की साजिश मिल रही है।

सुना है तुमने बहू को बेटी मान लिया है।

माना तो था देविका बहन पर सब ब्यर्थ गया।

ऐसा कौन सा गुल खिला रही है तुम्हारी बहू पार्वती।

बहू चाहती है बेटा घर परिवार भाई-बहन, माँ-बाप से नाता तोड़ ले।बहू और बहू के मायके वालों तक सीमित रहे।बेटा ऐसा नहीं चाहता।

तुम्हारी बड़ी बहू तुम बूढ़े पति-पत्नी, घर -परिवार की दुश्मन निकली।तुम्हारी उच्च शिक्षित बड़ी बहू से तो हमारी अल्प शिक्षित बहुएं लाख गुना बेहतर है, घर परिवार नात हित सबका ख्याल रखती है, हम बूढा बूढ़ी को समय से सकून की रोटी देती हैं देविका बोली।

बहुत गुमान था बहू पर सब टूट गया, सकून भी छिन गया है, कहते कहते पार्वती रो उठी।

 

 

डॉ नन्दलाल भारती


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