बदनाम ना कर
किस्मत को क्यों बदनाम करता है
गुनाह क्यों ना कबूल कर लेता है
सदियां बीत गई पर अभी गुनाह करता है
कितना चालाक है, गुमान करता है
कभी छाती फुलाता है, कभी पोथी दिखाता
सच कितना छलिया है
आदमी को आदमी नहीं रहने दिया
छूत-अछूत मे कायनात को बाट दिया
अपने छल को परमात्मा के माथे
गुनाहों को अपने नसीब बना दिया
वाह रहे धर्म के खिलाड़ियों
आदमी को अछूत बताकर
आदमियत की छाती में खंजर उतार दिया
कर लो अब गुनाह कबूल तू
आदमी को आदमी मान ले तू
जातीय गुमान हवा छाती मे भरकर
कर्मवीर की योग्यता का चीरहरण ना कर
आदमी को गरीब मानकर
बेइज्जत ना कर तू
ना आदमियत को ना किस्मत को
बदनाम कर तू.......
डां नन्द लाल भारती
30/10/2020
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