Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बलिदान

 

 

यादें तुमसे जुडी रहेगी
तुमने भले ही कर दिया है
बेपरदा कतरा कतरा
नहीं कर पाओगे अलग
मां बाप के लहू
नहीं उतार पाओगे कर्ज
कई जन्म तक......
कैसे निष्ठुर हो गए
माँ की तपस्या को बेआबरू
कर दिये
पिता के बलिदान को
लज्जित कर दिये........
कौन सी मजबूरियां थी
कौन गुनाह कर दिया
तुम्हारे जन्मदाताओं ने
सर्वस्व तो निछावर कर दिया था
तुम्हारे कल के लिए
तुम्हारी खुशी के लिए........
जादूगर की बेटी कि मांग
क्या भर दिये
खून के रिश्ते त्याग दिये
सोचना फुर्सत मे जरा
माँ बाप जब त्याग दिये होते
तो क्या होता तुम्हारा.......
मां बाप को तनिक सकून
दे ना सके
दर्द का प्रहार क्यों ??????
बूढे मां बाप की जान लेने के लिये
घरवाली और उसके जादूगर
मां बाप की खुशी के लिए.....
याद रखो बरखूरदार
बूढे मां बाप ही सही
जब त्याग देगें
नहीं ढूढ पाओगे अपनी धरती
अपना आसमान......
बहुत हुआ ना बनो और कातिल
मां ताकती रहती है राह रोज रोज
गमगीन हो गई है
खुद को कोसती है
कहती है
नौ महीना की तपस्या और
छाती के दूध मे खोट कैसी
ये कैसी सजा.....
बूढा
पिता बावरा हो गया है
तलाशते तलाशते लाठी
ना करो मां बाप के बलिदान को
और बेआबरू.......
ना करो देरी लौट आओ
आशियाने मे
बूढे मां बाप आज भी कर रहे है
बेसब्री से इन्तजार......

 

 


डॉ नन्दलाल भारती

 

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