जानने को तो सभी जानते हैं
दुनिया मे सभी अकेले हैं
हां मोहब्बत तो होती है
आदमी से आदमी की......
मोहब्बतें ही तो हैं
दर्द के दरिया मे भी
जीने की उम्मीद जगाती है
आदमी मोह मे तो लूटा देता है
भर भर अजुरी गाढी कमाई.......
मोहब्बतें बेमौत जब मार दी जाती हैं
बहुत दर्द होता है बाबू
उजियारा मे अंधेरा दिखता है
दिन मे तारे दिखाई देने लगते हैं
जिन्दा इंसान मरा महसूस करता है
खून पसीने की कमाई से सृजित
अंश अपना दगा जब देता है बाबू.....
क्यों अंश पर कुर्बान होते हैं लोग
शायद इसीलिए कि
होगा जीवन सुरक्षित
लाठी होगी मजबूत और मजबूत
कंधे पर अंश के अपने जाएगा
टूट रहे हैं ख्वाब
अंश ही असमय देने लगे हैं मौत.....
ये कैसा वक्त चल रहा हैं
खून से श्रृगारित कत्ल करने लगा है
बेवक्त बेमौत मारने लगा है
कल के लिए जिसके, कल-आज
हुआ पतझर
रेत-रेत देना लगा है मौत
जीवन भी लगने लगा है मौत
हार नहीं उम्मीद रखना होगा
खुद के जनाजे तक का
बन्दोबस्त करना होगा ।
डॉ नन्दलाल भारती
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