पूरे गाँव मे कौतूहल का बाजार इतना गर्म था कि छोटे बच्चों को भी अनमना सा लग रहा था। सुखीराज पलंग पर पड़े पड़े आनंदित हो रहे थे,उन्हें अपार खुशी मिल रही थी, हो भी क्यों न शहर में पले,बढ़े और पढ़े इंजीनियर पोते के ब्याह की बात जो थी।गाँव वालों के लिए शहर की बारात में शामिल होने को लेकर उत्सुकता थी। गांव से शहर बारात जाने की मुख्य वजह थे सुखीराज, जिनका सारा क्रियाकर्म पलंग पर ही हो रहा था।सुखीराज कि खुशी के लिए यह सब कुछ हो रहा था।सुखीराज कि खुशी का ठिकाना न था, वे अपने पैरो पर खड़ा तो नहीं हो सकते थे, पोते की बारात में जाने के अनशन पर थे ।कुछ बुजुर्ग गांव के लोगो एंव मेहमानों के समझाने पर मान तो गए थे, पर बारात में ना जाने का गम उनके माथे पर पढ़ा जा सकता था।
दूल्हे अभिषेक के बाप एक उसूल पसन्द इंसान थे, दहेज को नरपिशाच मानते थे।वे अपनी इकलौती बेटी के ब्याह के लिए बहुत ढनके थे,दहेज़ लोभी उनके सामने इतनी बड़ी मांग रख देते कि उन दरिंदो की मांग घर बेचने पर भी पूरी तरह पूरी होने की संभावना कम थी। कुंटल भर मांस, चिकन,एक कुन्तल मछली,अंग्रेजी ब्रांडेड वाइन, महँगी वाली फोर ह्वीलर,इसके बाद देनिक जीवन मे उपयोग आने वाली हर छोटी बड़ी चीजें। बेटी जितनी उच्च शिक्षित थी उतनी उच्च कीमती दहेज, दहेज की मांग से घबरा कर नरेश बाबू ने बिटिया रानी का अंतरजातीय ब्याह कर दिया और लड़कों के ब्याह में दहेज़ न लेने की कसम ले लिया ।
गांव से सुबह चार बजे ढोल ढमाके के साथ कानपुर शहर के लिये बारात बस और कार से निकल पड़ी। गांव से पांच सौ किलोमीटर दूर था कानपुर।खैर बारात नियत समय पर पहुंच गई। बस को थोड़ी देर हो गए। बहत्तर सीटों वाली लक्जरी बस थी। उपर से ड्राइवर रास्ता भटक गया।नरेश बाबू ने समधी बुद्ध नाथ से कई बार संपर्क साधने की कोशिश किये पर फोन बंद हो जाता ।बस रास्ते मे फंस गई, आखिरकार नरेश बाबू ने फिर मोबाईल फ़ोन लगाया,बस रास्ते में फंस गई है।दुल्हन के बाप बुद्ध नाथ बहुत भद्दे तरीके से बोले मेरे पास बहस का टाइम नहीं। लड़की अभिलाषा के बाप की समधी और बारात के साथ बेरुखी की वजह थी दूल्हे की कार का पहुंच जाना। पांच सौ किलोमीटर दूर से बारात आ रही थी, लड़की के बाप को चाहिए था दो बाल्टी पानी लेकर शहर के मुख्य मार्ग पर दो लड़कों बैठा देना स्वार्थी बुद्ध नाथ ने ऐसा न कर रास्ता तक बताने से मना कर दिया।
राहगीरों एवं गूगल मैप के सहारे बड़ी मुश्किल से बस बारात लेकर शामियाने तक पहुंची थी ।द्वारपूजा हुई बाराती अपनी मर्यादा में रहकर खूब थिरके भी,नरेशबाबू भी पीछे नहीं रहे।
जलपान की व्यवस्था अच्छी थी,लड़की के बाप के दोस्त मि.नवनिगम आगे पीछे दिखे,लड़की के बाप लड़के के बाप से बात करना भी उचित नही समझे।जब तक शादी तय नही हुई थी तब तक जरुत बोलते थे भाई साहब आपका आदेश।ब्याह का दिन पड़ते ही नरेश बाबू विसार दिए गए । हर छोटी बड़ी बात के लिए लड़की,लड़की के माँ बाप अभिषेक से पूछते और अपने मनमाफिक करते, अभिषेक के ऊपर थोप देते।नरेश बाबू स्वंय आगे बढ़कर बात करते तो बुद्ध नाथ कहते अभिषेक जी ने कहा है। लेने देने,क्या खाना बनेगा,क्या पहनना है, सब अभिषेक जी की मर्जी से पता नहीं क्या झूठ था क्या सच।बारात शहर में पहुचते ही मि बुद्ध नाथ द्वारा नरेश बाबू का विरोध साफ साफ झलक रहा था, ना जाने कौन सी जड़ी बूटी खिलाकर अभिषेक को कटप्पा जैसा गुलाम बना कर माँ बाप घर परिवार के अरमानों का कत्ल करने के लिए तैयार कर लिया था।
ब्याह बैठ गया। लड़की वालों की तरफ से कोई औपचारिक बुलावा लड़के के बाप पास नहीं आया।नरेश बाबू के बहनोई, दमाद,मामा पक्ष के लोग हतप्रत थे, यह देखकर कि लड़की वाले लड़के के बाप को नही पूछ रहे है, सब कुछ लड़की वाले अपने तरीके से कर रहे हैं। दूल्हे के बाप को ऐसे लग रहा था जैसे किसी बेगानी शादी में आये हो।नरेश बाबू का छोटा।भाई महेश आश्चर्य चकित था लड़की के बाप के रैवैये से।छोटा बेटा भाई के ब्याह के लिए अपनी परीक्षा दाव पर लगा दिया था, रात में ब्याह निपटाकर सुबह परीक्षा देना था वह भी छः सौ किलोमीटर दूर मालवांचल जाकर, पूरे ब्याह की जिम्मेदारी स्वतंत्र कुमार ने ही तो उठाया था, घर के जितने लोग थे नौकरी के सिलसिले में उतने शहर में थे,उसे भी लड़की के बाप कोई तवज्जों नहीं दे रहे थे,शायद दूल्हे को कटप्पा के रूप में तैयार जो कर लिए थे।
शादी शान्ति पूर्वक बीत जाए इसी उधेड़बुन में नरेश बाबू थे, दहेज से कोई सरोकार तो था नहीं, बतौर दूल्हे का बाप लड़की का बाप कोई तवज्जो नहीं दे रहा था ।
आख़िरकार नरेश बाबू के बेटे का ब्याह था,वे अपने रिश्तेदारों को लेकर ब्याह में बैठ गए।ब्याह बौद्ध पद्धति से हुआ।ब्याह का मंगला चरण पूरा होने से पहले नरेश बाबू के साथ बैठे रिश्तेदारों को खाने के लिए दुल्हन पक्ष द्वारा बुला गया। नरेश बाबू के दमाद ने कहा दूल्हा दुल्हन और दुल्हन पक्ष के साथ खाना खाएंगे।इतने में लड़की के बाप बोले आप लोग चलिए हम लोग आ रहे हैं।
वर पक्ष के लोग खाने की कुर्सियों पर आकर बैठ जिसमे लड़के के बाप भी शामिल थे, पूरा एक घंटा बैठे रहे कोई खाना नही, खाने के नाम पर सूखा सलाद एक प्लेट में पड़ा था, बैरे खाना माँगने पर भी टस से मस नहीं हो रहे, आख़िरकार बिना खाना खाएं उठना पड़ा।नरेश बाबू के बेटी दमाद लू लग गई थी वे दोनों बुरी तरह परेशान थे, छोटे बेटे स्वतंत्र कुमार को ट्रेन पकड़ना था, जो सुबह पेपर देकर आया था, रात में ट्रेन का सफर कर सुबह परीक्षा देना था, आखिरकार वह भूखे चला गया। ट्रेन में खाना होगा ।
उधर ब्याह होने के बाद शूटिंग हुई, फोटोग्राफी हुई,लड़की के माँ बाप एंव कुटुम्ब के लोग डीजे पर थिरके, दूल्हा दुल्हन को खूब नचाया गया। खाने के बहाने वर पक्ष को खदेड़ कर बाहर कर दिया गया था।
उधर बधू पक्ष के लोग थिरक रहे थे, इधर पर पक्ष के खास लोग घंटे भर की प्रतीक्षा के बाद उठ कर चले गए।सम्भवतः लड़की वालों ने खाना पहले ही खा लिया था।
चारों ओर सन्नाटा पसर चुका था,सुबह होने को आतुर थी, लड़के के बाप, फूफा, जीजा बहन, पानी पीकर भूख शांत कर चुके थे।अब खाने की कोई इच्छा न थी, था तो अफसोस और पश्चाप।चिड़िया चहचहाने लगी थी। इसी बीच लड़की के बाप के साथ गेस्ट हाउस के लोग नरेश बाबू के पास आये ,आते ही बुद्ध नाथ अंग्रेजी का एक शब्द सॉरी बोले।
नरेश बाबू बोले अच्छा तरीका है, बेइज्जत करो जूते मारो फिर सॉरी बोल दो, खैर वर पक्ष के लोग शरीफ थे मुँह जूठा कर वापस आ गए। हां एक चमत्कार और हुआ था खाने की प्लेटों के नीचे एक एक लिफाफे रखे गए थे संभवतः सभी लिफाफों में एक सौ एक रुपये ,एक सौ एक रुपये रखे गए थे।शायद समधी जी को अपने हाथ से देना खुद के लिए अपमानजनक रहा हो । सभी ने लिफाफे बैरो को दे दिए पर नरेश बाबू ने रख लिए थे।रिंग सरोमनी,तिलक और पूरे ब्याह में मिली रकम अब इक्कीस हजार एक सौ एक रुपया हो चुकी थी ।खैर नरेश बाबू और उनके परिवार के लिए दुल्हन ही दहेज थी।दुःखद बात ये थी कि दूल्हे के परिवार और बराती हाशिये पर समधी ने फेंक दिए थे।वधु पक्ष के लोग जिसमे आधा दर्जन लडकियां शामिल थी, दूल्हा भी बारात के लोगों सगे रिश्तेदारों को ही नहीं अपने बाप और भाईयों तक को नजरअंदाज कर रहा था ,ना जाने लड़की वालों ने कौन सा काला जादू कर दिया।शादी के दिन ही अभिषेक बेगानों जैसा बर्ताव करने लगा,बेटे के आकस्मिक मानसिक बदलाव को देखकर नरेश बाबू हतप्रत थे।दुल्हन पक्ष को अपार खुशी मिल रही थी, शायद इसलिए की नया नवेला दमाद उनकी मर्जी से दो कदम आगे चल रहा था।
नरेशबाबू के लिए यह सब विषपान जैसा तो लग रहा था ।वे कोई हंगामा खड़ा नहीं करना चाह रहे थे जिससे इज्जत पर कोई दाग न लगे,लड़की के बाप थे कि नरेश बाबू की मर्यादा का दाह संस्कार किए जा रहे थे।
नरेश बाबू की आँख से नींद गायब थी सुबह क्या हुई कानपुर के दादा बहादुर हीजड़ो की टोली आ गई, इक्कीस हजार एक सौ एक पर अड़ गए,इतना ही तो ब्याह में मिली रकम थी।नरेशबाबू हीजड़ो के व्यंग बाण से आहत हो रहे थे, लम्बी जदो जहद के बाद पांच हजार एक सौ रुपये में हिजड़े माने हीजड़ो के जाने के बाद नरेशबाबू को तनिक राहत महसूस हुई।
विदाई की तैयारी होने लगी, घंटे भर बाद दुल्हन को कार में बिठा दिया गया।कार गंतव्य की ओर चल पड़ी।बस में बाराती बैठे हुए थे खुशी की बात थी कि सभी बाराती सभ्य और शिक्षित थे, उनके लिये नरेश बाबू की इज्जत उनकी खुद की इज्ज़त थी,तभी तो इतना सब कुछ होने के बाद भी कोई विवाद नही हुआ।नरेशबाबू को अपना फर्ज हमेशा याद रहता था,वे लड़की के बाप को खुद से श्रेष्ठ मानते थे।
नरेशबाबू बस की ओर बढ़ने लगे तभी बारात में आये लड़के आगे बढ़कर आए और बोले बाबू सामान तो रखना बाकी है।
कैसा सामान नरेशबाबू बोले।
दुल्हन का बेड, विस्तर,दूसरे फर्नीचर्स, टीबी,फ्रिज़, वाशिंग मशीन ये सब सामान लड़के एक स्वर में बोले।
बच्चों बस में बैठो घर चलो, कुछ नही चाहिए था, नही लिया।दुल्हन ही दहेज़ है।
इतने में जय नारायन बोले सब जोडकर कर नगद नरायन ले लिए होंगे। आजकल तो अभिषेक जैसे लड़को की बोली लगती है।
चुप करो जय बाबू घर चलो नरेश बाबू बोले।
जय नरायन बाबू बोले बड़े लोगों की बडी बातें,सब ऑनलाइन पहुंच जाएगा। लड़कों बस में बैठ जाओ।
बस अपने गंतव्य की ओर दौड़ पड़ी,दूर का सफर था।नरेशबाबू को न रात में खाना नसीब हुआ और न सुबह नाश्ता।वे तो अपने ही बेटे की शादी में बेगाने हो गए थे,नाश्ते की प्रतीक्षा करते रहे ,आखिर में गेस्ट हाउस में पता किये तो पता चला नाश्ता खत्म हो गया है।नरेशबाबू चुपचाप बैठे थे फिर जय बाबू बोले क्यों चिन्ता कर रहे हो ऑन लाईन में सामान सुरक्षित घर पहुंच जाता है।
कोई सामान नहीं है तो चिन्ता कैसी ? नरेशबाबू बोले।
क्या यार इतनी दूर बेटे का ब्याह किये वह भी भिखारी के घर जो अपनी बेटी को एक बिस्तर भी नहीं दिया।दिखावा तो ऐसे कर रहा था जैसे कानपुर का राजा हो।आखिरकार,नरेशबाबू को कान में रुई डालनी पड़ी। दुल्हन और बारात सूरज डूबने से पहले गांव पहुंच आयी।दुल्हन आते ही दुल्हन देखने आने वाली महिलाओं की भीड़ उमड़ पड़ी।किसी महिला ने दुल्हन से पूछा पापा ने क्या क्या दिया, कुछ तो दिखाई नहीं पड़ रहा।
अभिलाषा बेधड़क बोली पाप सब कुछ देगें।
कब दूसरी महिला बोली।
पापा कह रहे थे जब सेटल्ड हो जाएंगे तब।
नाशमिटो ये तो घर जोड़ने के पहले तोड़ने की बात कर दी।
एक अन्य महिला बोली भाग्यश्री को अब आराम मिल जाएगा, बेचारी पेट के घाव से परेशान रहती है, दोनों जून बहू के हाथों बनी रोटी मिल जाएगी।
इतने में अभिलाषा बोली मैं सास ससुर के लिये रोटी बनाने नहीं आयी हूँ, अपने पति को रोटी बनाकर दूंगी,सास ससुर को क्यों दूंगी।
यही संस्कार दिया दुल्हनिया तुम्हारे माँ बाप ने एक महिला बोली।
क्या गलत है अभिलाषा बोली।
सभी महिलाएं अपना अपना माथा कूटती हुई तुरन्त उठ खड़ी हो गई।
अचेत सा नरेशबाबू को अलग थलग पड़ा हुआ देखकर भाग्यश्री भाग कर नरेशबाबू के पास पहुंचकर पूछी अभिषेक के पापा तबियत तो ठीक है?
हाँ ठीक है, घर मे पहली बहू आयी है, खुशी मनाओ, उदास क्यों पड़े हो ?
पगली सारी खुशी पर ओले पड़ गए।अरमानों का कत्ल हो गया, जीते जी मर गया।कैसे और कौन सी खुशी मनाएं, गलत परिवार की लड़की आ गयी, भगवान जीवन भर की तपस्या को भंग होने से बचाना। घर मे बहू नहीं आयी है, हमारा बेटा विदा हो गया है भाग्यश्री।
बहू तन से सुंदर भले ही पर उसके मन मे खोट है, बहू को देखने आई महिलाओं को ऐसा आभास हुआ है,इस सबसे बढ़कर उसके बाप ने घर तोड़ने के मंत्र से कान फूंक कर भेजा है।तमन्ना थी कि नैतिक दायित्व बोध और संस्कारवान बहू मिले घर परिवार को साथ लेकर चले।यह तो आते अलग चूल्हा रोपने की तैयारी से आयी है आंखों में आँसू लिए भाग्यश्री बोली।
हाँ भाग्यवान यही तो जानलेवा दर्द है, बहू ऐसी मिली कि बेटा विदा हो गया।हम दोंनो फिर हो गए एकदम अकेले।
डॉ नन्दलाल भारती
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