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डाॅ.नन्दलाल भारती
एम.ए. ।समाजषास्त्र। एल.एल.बी. । आनर्स ।
पी.जी.डिप्लोमा-एच.आर.डी. ;च्ळक् पद भ्त्क्द्ध
विद्यावाचस्पति एवं विद्यासागर सम्मानोपाधि
पुस्तक समीक्षा
राश्ट्रकवि डां.बृजेष सिंह और महाराणा प्रताप साहित्य
कविता जीवन के अकुण्ठ सौन्दर्य की दृश्टि होती है। कविता की सृश्टि जरामरणजं भयम् से मुक्ति का उद्घोश करते हुए सत्पथ पर चलने की प्रेरणा देती है। राश्ट्रकवि डां.बृजेष सिंह और महाराणा प्रताप काव्यात्मक साहित्य इसका प्रमाण है। इसी सत्यता और राश्ट्रकवि डां.बृजेष सिंह के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से प्रभावित होकर जितेन्द्रकुमार सिंह‘संजय’ ने राश्ट्रकवि डां.बृजेष सिंह और महाराणा प्रताप साहित्य को पुस्तक के रूप में पाठकों को उपलब्ध कराने का प्रयास किया है।इस पुस्तक को षोधग्रंथ कहा जा सकता है। इस 335 पृश्ठीय पुस्तक भारतीय कवि परम्परा में राश्ट्रकवि की अवधारण और डां.बृजेष सिंह,बिसेन राजवंष की साहित्य- संगीतकला एवं राजनीति -साधना और राश्ट्रकवि डां.बृजेष सिंह,मुक्तककाव्य-परम्परा और मुक्ताकार डां.बृजेष सिंह,महाकवि डां.बृजेष सिंह कृत आहुति महाकाव्य का काव्य षास्त्रीय अनुषीलन,महानायकों की परम्परा में महाराणप्रता का उदात्त चरित और इतिहासकार डां.बृजेष सिंह का प्रदेय और महाराप्रताप-साहित्य की परम्परा में डां.बृजेष सिंह का अवदान कुल छः सोपान है। प्रथम सोपान में लेखक की तुलनात्मक दृश्टि से डां.बृजेष सिंह की काव्य लेखन परम्परा राश्ट्रकवि बंकिमचन्द्र चटर्जी,रवीन्द्रनाथ टैगोर,मैथिलीषरण गुप्त,माखनलाल चतुर्वेदी एवं अन्य राश्ट्रकवियों के समक्ष लगती है। भारतीय संदर्भ में राश्ट्रकवि की अवधारणा आधुनिक है। आजादी की लड़ाई और राश्ट्रकवि की अवधारण का इतिहास भारतीय संदर्भ में एक ही सिक्के के दो पहलू है। वस्तुतः परराश्ट्र की दास्ता ही सही अर्थों में राश्ट्रबोध कराती है। डां.बृजेष सिंह हिन्दी संस्कृत,भोजपुरी और छत्तीसगढ़ी भाशा के ज्ञाता है और पुस्तक के लेखक डां जितेन्द्रकुमारसिंह‘संजय’भाशाविद्।वर्तमान में हिन्दी साहित्य के लिये डां.बृजेष सिंह और आहुति महाकाव्य आवष्यक विशयवस्तु बन गया है।
द्वितीय सोपान में लेखक ने बिसेन राजवंष की वंषावली,साहित्य संगीत कला और राजनीति साधना का उल्लेख किया है जो षोध का विशय है । यह पुस्तक भी षोधार्थियों के लिये षोध का विशय बनने योग्य है। महाकाव्य लेखन की दृश्टि से भारत में महाकाव्य अर्थात प्रबन्धकाव्य की प्रषस्त परम्परा रही है। सम्भवतः जितने महाकाव्य भारत में लिखे गये है दुनिया के अन्य देषों में नही लिखे गये है। आचार्य भामह ने मुक्तककाव्य को अनिबद्धकाव्य अर्थात गाथा या ष्लोक कहा है। इस पुस्तक में डां.बृजेष सिंह को मुक्तक की दोनों परम्पराओं का संवाहक कहा गया है। पहली परम्परा प्रबन्धकाव्य के मध्य में रहते हुए भी अर्थ की दृश्टि से निराकांक्षा होना और दूसरी पम्परा पूर्वापर निपपेक्ष एवं प्रबन्ध से इतर है। डां.बृजेष सिंह का मुक्तक देखिये-
तेरी यादों के बिना मैं यहां रह नहीं सकता।
कोई रूसवा करे तुझको मैं सह नहीं सकता।
जमाना कहता तेरा प्यार मृग मरीचिका
लोग कहते रहें मगर मैं कह नही सकता।
पुस्तक का नाम राश्ट्रकवि डां.बृजेष सिंह और महाराणा प्रताप साहित्य
लेखक जितेन्द्रकुमारसिंह संजय
प्रकाषक प्रभाश्री विष्वभारती प्रकाषन,इलाहाबाद
मूल्य 250/-
पृश्ठ 335
समीक्षक डां.नन्दलाल भारती
पुस्तक में सन्दानितक,कलापक,कुलक,पर्यायप्रबन्ध,कोश,प्रघट्टक एवं विकर्णक की जानकारी दी गयी है,जो सचमुच इस पुस्तक को षोधग्रन्थ निरूपित करता है। चतुर्थ सोपान में डां.बृजेष सिंह कृत आहुति महाकाव्य का काव्यषास्त्रीय अनुषीलन पर दृश्टिपात किया गया है।इस सोपान में छन्द,रस,दोहा,पंचमार,ष्लोक,घनाक्षरी,चवपैया आदि पर विषेश जानकारी दी गयी है जो डां.बृजेष सिंह को छन्दाचार्य,काव्याचार्य निरूपित करता है। सार में का जा सकता है कि रससिद्ध कवीष्वरों में डां.बृजेष सिंह प्रथम पंक्ति का छन्दाचार्य कहा जा सकता है। पंचम सोपान अर्थात महानायकों की परम्परा में महाराणप्रता का उदात्त चरित और इतिहासकार डां.बृजेष सिंह का प्रदेय-जैसाकि डां बृजेषसिंह छन्दाचार्य और राश्ट्रवादी चिन्तक है,इनके साहित्य का मूल उद्देष्य भारतीय अस्मिता की रक्षा है।डां बुजेष सिंह को राश्ट्र की अस्मिात की रक्षा मेवाड़ दर्षन से प्राप्त हुई है।महारण प्रताप का उदात्त चरित डां बृजेषसिंह को भारतीय दृश्टि सम्पन्न इतिहासकार बनाता है।डां.बृजेषसिंह ने महाराणाप्रताप के उज्जल चरित की परिकल्पना इस प्रकार किया है।
राम ने लिया था अवतार इसी भारत में,
रण में टिकेगा कौन अर्जन के सामने ।
सामने सुदर्णन केआयेगी न को षक्ति
हल से सृजन-हल रचा बलधाम ने।
धाम ने दिया है दिव्य गौरवी परम्परा को,
ब्ुाद्ध महावीर को डिगाया नहीं काम ने।
काम ने रचे हैं, छन्द छविमान आहुति के
राणा का चरित्र गढ़ा खुद प्रभु राम ने ।
महाराणा प्रताप की संघर्श कथा उन्हें राश्ट्रनायक बनाती है। महाकाव्यीय परम्परा के मानकों के अनुरूप महाराणा प्रताप राश्टभक्त एवं नायक है। यकीनन महाराणा प्रताप अपने धैर्य,षौर्य,त्याग-बलिदान के कारण भारतीय समाज के बीज लोकदेवता की तरह पूज्य है।तभी तो महाराणाप्रताप के बारे में कहा गया है,
षूरता में, वीरता में,धीरत गंम्भीरता में,
कौन कलिकाल में,प्रताप के समान है।
शश्ठ सोपान-महाराणप्रता साहित्य की परम्परा में राश्ट्रकवि बृजेष सिंह के अवदान पर केन्दित है।इस सोपान में महाराणप्रता के जीवन की प्रमुख घटनाओं का एवं महाराणा प्रता विशयक प्रकाषित साहित्य का जिक्र किया गया है।डां.बृजेषसिंह कृत आहुति महाकाव्य से आठ घना छनद प्रस्तुत है।ये छनद ने केवल महाराणाप्रता के अलौकि कतृत्व को बल्कि प्रभास्वर क्षमता एवं अकुण्ठ को रेखांकित करते है।उदाहरणार्थ-
हाथ लिये भाल निज एकलिंग के दीवान,
मातृभूमि है निहाल पायी ऐसे लाल को।
झुकने दिया नहीं प्रताप ने कभी अजस्त्र
भारतीय भूमि के पुनीत दिव्य भाल को।
भेजा यमलोक द्वार मच गया हाहाकार,
अरिदल कांपा देख रूप वकिराल को।
चण्डिका भवानी रक्त मांगती सयानी भव्य
आहुति प्रताप ने दी षम्भु महाकाल को।
पुस्तक में छःसोपानों में संयोजित महाराणाप्रताप विशयक लेखन कार्य को देखते हुए कहा जा सकता है कि डां.बृजेष सिंह ने भारतीय साहित्य में महाराणा प्रताप काव्य परम्परा को प्रतिश्ठित किया है। यकीनन कहा जा सकता है कि महाराणाप्रता साहित्य की परम्परा में डां.बृजेष सिंह अवदान चिरस्मरणीय रहेगा। यह पुस्तक कवि/साहित्यकारों,पाठकों के लिये ही नहीं इतिहासकारों और षोधार्थियों के लिये के लिये उपयोगी है। यह पुस्तक ज्ञानवर्द्धक,पठनीय और संग्रहणीय है। राश्ट्रकवि डां.बृजेष सिंह और महाराणा प्रताप साहित्य के रचयिता जितेन्द्रकुमारसिंह संजय अपने मन्तव्य में सफल है।वे इस पुस्तक लेखन के लिये बधाई के पात्र है। भारतीय साहित्य में राश्ट्रकवि डां.बृजेष सिंह और इनके द्वारा लिखित ऐतिहासिक महाराणा प्रताप साहित्य का स्वागत होना ही चाहिये।
डां.नन्दलाल भारती
म्उंपस. दसइींतंजपंनजीवत/हउंपसण्बवउ
आजाद दीप, 15-एम-वीणा नगर ,इंदौर ।म.प्र।-452010,
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