बूढ़े बरगद की दास्तां
हमारे गांव का अत्यंत बूढ़ा बरगद
जीर्ण-शीर्ण अपनी जगह पर
आज भी खड़ा है
बूढ़े बरगद की छांव मे
खटपट करती रहट के
अवशेष भी नहीं रहे
कतरी पर पैना की फट-फट
ही क्या ---?
ना जाने कहाँ चले गये वे लोग
गाते निर्गुण हांकते रहट
खींचते पूर -घर्रा,चलाते दोन
सींचते जमीन
दोनों हाथों से दूहते जमीं से सोना.......
विकास की आंधी उड़ा ले गई
हल-बैल-हलवाह और सब कुछ
गांव समाज की जमीं पर कब्जा दबंगों का
विकास दबंगों की बपौती हो गई
गांव समाज की जमीन पर कब्जा से
नहीं हुआ दबंगों का विकास तो
पोखरी-तालाब-कुआं सब पाटने
लगे हैं नाक के नीचे
देवस्थान चाहे हो
अम्बेडकरमूर्ति का प्रागंण
नहीं बच रहा कुछ भी
हां ये बात भी कचोटती है
लाल रंग से पूते-ईंट पत्थर भी
घोषित हो जाते सिद्ध धाम
जमीन हड़पने के लिए
फलफूल रहे हाशिये के आदमी के
विरुद्ध दबंगों के विकास .....
बूढ़ा बरगद उदास खड़ा हैं
अपने अस्तित्व से डरा सहमा
कब कोई दबंग चलवा आरा
चिरवा दे चईला
मिट जाये नामों निशान
गांव समाज की जमी की तरह
घोषित हो गई जो दबंगों के हित में
वंचित रह गये दलित भूमिहीन
प्रधान ने भी लगा दिया ठप्पा
अपनी सल्तनत बचाने के लिए.....
वैसे तो गांव में बहुत थी जमीं
गांव समाज की जमीन पर
नहीं आई भूमिहीनों के हिस्से
डकार गये दबंग लोग
कागजों म़े भले ही कुछ अवशेष हो
भूमिहीन शोषितों को कौन है गिनता
गर गिनती है तो वोट के लिए.......
बूढ़ा बरगद इतिहास भूगोल मे झांककर
बेदम हो रहा है
गिनती के दिनों की जिंदगी मे
जिन्दगी यानि आक्सीजन दे रहा है
गांव समाज की जमीन,पोखर तालाब की तरह
बूढ़ा बरगद भी
बन जायेगा एक दिन इतिहास
दबंगों की करतूतें ना बचने देगी
जमीन ना ही सांस
दबंग मिटाने रहे विरासत के निशान
भूत को निहार-निहार
जर्र-जर्र बूढ़ा बरगद हो रहा
हैरान-परेशान.....।
डां नन्द लाल भारती
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