Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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चाहता हूँ कभी मेरी भी आंखे

 

चाहता हूँ कभी मेरी भी आंखे
बरस पडे़ खुशी के आंसू
तमन्ना जीवित है, संघर्षों
मरते सपनों के बोझ ढोने के बाद भी.....
राहों मे कई कांटे हैं
जहरीले अमानुष भी
कर देते हैं सपने विरान
बढ जाता है मरते सपनों का बोझ
बरस पडते हैं दर्द के आंसू....................
शामिल हैं जातीय जहर
मुर्दाखोर किस्म के लोग
बो रहे आज भी विष बीज
कर रहे आदमियत का कत्ल
दे रहे असमर्थ को भर भर आ़सू.....
हार नहीं मान रहा
खुशी के आंसुओं की इन्तजार मे
बो रहा उम्मीदो के बीज
बनेगे दिन एक खुशियों के वृक्ष
दे देगें दिल पर दस्तक
बसंत के सदाबाहर मौसम
कर्मयोगी की आंखो से
बरस पडे़ खुशी के आंसू........?

 

 

डॉ नन्दलाल भारती

 

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