मोहन,सोहन और सुगन्धा तीनों बच्चे नन्दन को घेर कर बैठ गये। सुगन्धा बोला पापा अपने बचपन की कोई कहानी सुनाओ ना । वह बिटिया रानी का आग्रह टाल न सका । वह बोला बेटी चवन्नी सुना है। सुगन्धा बोली हां पापा सुनी तो हूं। चवन्नी की कहानी सुनाता हूं । मोहन,साहेन एक स्वर में बोले तब तो बड़ा मजा आयेगा । नन्दन हंसते हुए बोला लो सुनो कहानी । बेटा चवन्नी का भी अपना अस्तित्व था,चवन्नी और छोटे सिक्के मात्र व्यापार विनिमय की वस्तु नही होते राश्ट्र की पहचान होते है।हमारे बचपन में एक पैसा दो पैसा पांच पैसा और बीस पैसे के सिक्के प्रचलन में थे परन्तु सरकार ने राश्ट्रीय अस्मिता को व्यापर की तराजू पर तौल कर छोटे सिक्को को बन्द कर दिया है।सुना है इन सिक्कों की बनवाई पर लागत ज्यादा आती है। हम जब बच्चे थे तो हमारे लिये बड़ी रकम के समान हुआ करती थी। चवन्नी पाकर बच्चों को जैसे खजाना मिल जाता था।सच भी तो है चवन्नी नही तो एक रूपया नहीं सौ रूपया नही हजार करोड़ तक कि कल्पना कैसी...? एक चवन्नी में इतना खाने का सामान आ जाता था कि बच्चे को डंकार आ जाती थी। आज व्यापारीकरण के दौर में चवन्नी की कोई औकात नही बची है,चवन्नी बाजार से बाहर हो गयी है और एटीएम सौ पांच सौर और हजार-हजार के नोट उगल रहे है। चवन्नी को लेकर बुने मुहावरे आज भी प्रचलन में है,कहते है ना चवन्नी छाप,चवन्नी होगा तेरा बाप और भी बहुत कुछ। अपनत्व को परिचायक भी थी चवन्नी नाना-नानी,दादा-दादी कहते थे जा बेटा या बेटी ये काम कर दे तो चवन्नी दूंगा । बच्चे हंसी-खुषी नाना-नानी,दादा-दादी या किसी अन्य बड़े बूढे़ का कहा काम कर लौटते थे तो नाना-नानी,दादा-दादी बच्चे का माथा चूमते ,ढ़ेर सारा आर्षीवाद देते चवन्नी तो मिलती ही थी। सचमुच चवन्नी सामाजिक परम्परा की अंग थी आज भी है। चवन्नी के उपहार के साथ बच्चों को नाना-नानी,दादा-दादी के बीच रहने और उनसे संस्कार,रीति-रिवाज,नैतिक जिम्मेदारी का एहसास नजदीक से समझने का सौभाग्य मिलता था। चवन्नी संयुक्त परिवार के लिये सोधापन रही है परन्तु आज दुर्दषा की षिकार है,जैसे बुजुर्ग। बच्चे नाना-नानी,दादा-दादी या किसी अन्य बड़े बूढे़ के साथ पलते-बढ़ते थे। मुझे दादाजी और नानाजी के सानिध्य का सुअवसर तो नही मिला क्योकि दोनों कम उम्र में ही स्वर्ग सिधार गये थे। दादी और नानी का आषीष भरपरू मिला था। हमारे बचपन के समय गांव का हर-लड़का लड़की भाई-बहन की तरह होता था। वर्तमान दौर में तो हर रिष्ते में दरार पड़ रही है,बुजुर्ग अनाथ आश्रम की राह पूछ रहे है। संयुक्त परिवार टूट रहा है एकल परिवार चलन में है,बच्चे हिंसक हो रहे है।
सोहन पापा कहानी सुनाओ ना...........
नन्दन-बेटा कहानी ही सुना रहा हूं।
सुगन्धा-सोहन तू बुद्धू है पापा कहानी की भूमिका बना रहे है।
मोहन-समझा उल्लू......देख दीदी कितनी होषियार है। कुछ दीदी से सीख।
नन्दन-मेरे गांव में मंसा और हंसा दोस्त थे। दोनो अक्सर एक साथ रहते थे। कभी-कभी हंसा मंसा के घर खाकर सो जाया भी करता था,उसके मां बाप भी बेफिक्र रहा करते थे। आज यहां देखो बच्चों के तो घर के सामने से खो जाने का खतरा बना रहता है।
सावन का महीना था,कोयलें कूं-कूं कर रही थी,फिजां सुहानी थी मंसा अमरूद के पेड़ झूला डालकर झूल रहा था कि थोड़ी ही देर में हंसा आकर झूला झूलाने लगा। मंसा और हंसा की दोस्ती का जिक्र बस्ती के हर आदमी की जुबान पर हुआ करती थी । मंसा झूला झूलने में खोया हुआ था और हंसा झूलाने में इसी बीच उपवास रखी लड़कियों का तितलियों जैसा झुण्ड कजरी गाते हुए नहाने के लिये तालाब की ओर बढ़ने लगा था।
सुगन्धा-क्या पापा लड़किया तालाब में नहाने जाती थी।
नन्दन-हां,तालाब से नहाकर घर आती थी पूजा पाठ करती थी बड़े-बुजुर्गो से आर्षीवाद लेती थी इसके बाद उपवास खोलती।
मोहन-पापा आगे क्या तितलियों के झुण्ड आने के बाद।
नन्दन- हंसा कजरी सुने में खो गया और मंै झूले में । मंसा कजरी सुनते-सुनते झूलने में। दोनों के लिये समय थम गया हो। इसी बीच मंसा का मां आ गयी और बोली बेटवा परसों नानी के घर जायेगा क्या ..?
हंसा बोला मंसा परसो तो पल्हना का मेला है ।
मसा की सोमवती बोली-पल्हना का मेला तो हर साल देखते हो इस साल नानी के गांव का मेला देख आओा।
हंसा बोला-बहुत अच्छा रहेगा ।
सोमवती- मंसा तुम क्या कह रहे हो ।
अच्छा तो रहेगा मां पर हंसा साथ जाये तब ना ।
हंसा भी जायेगा मेै उसकी मां से बोल दूंगी। वे कभी मना तो की नही है,आज कहां करेगी।
नानी के घर तो बार-बार जाने का मन करता है पर नानी के गांव के उसर से डर लगता है मंसा बोला ।
सोमवती-घबरा कर बोली थी क्यों बेटवा........?
जाड़े में पूरा उसर साबुन का झाग बन जाता है। कुछ देर उसर में चल दो तो एड़ी फटने लगती है। पिछली बार जब जाड़े में गया था देखा नही मां पैर से खून निकलने लगा था ।आजकल रास्ता दो दिखाई नही पड़ रहा होगा। एक पग-पग देख-देख कर राना पड़ेगा । अभी तो चारो ओर पानी भरा होगा रास्ता खोज-खोज कर चलना होगा ।
सोमवतीं बोली-उसी उसर में तो पली बढ़ी हूं। मैं अपनी मां और जन्मभूमि को कैसे विसार सकती हूं। बेटवा मांता और मातृभूमि स्वर्ग से प्यारी होती है।
मां मैंने मना तो नही किया ना मंसा बोला।
मां सोमवती बोली-मैं हंसा की मां को बोलकर आती हूं। तुम स्कूल जाने की तैयारी करो।
ठीक है मां स्कूल जाकर मुंषीजी से दो दिन की छुट्टी के लिये भी तो बोलना पड़ेगा। आज तो बस स्कूल जाना है परसों से दो दिन की छुट्टी है। नानी के घर जाने के लिये तो ढंग का रास्ता भी नहीं है। खेत की मेड़ और पगडण्डी से जाना है। ना जाने नानी के गांव आने-जाने के लिये सड़क कब बनेगी।
बेटवा सड़क तो सरकार बनवाती है। सरकार को हम गरीबों और गांव की फिक्र बस चुनाव के समय सताती है,इसके बाद पांच साल के लिये कान में तेल डाल लेते है,आंख कान बन्द कर अपनी आने वाली पीढियों के लिये धन जुटाने में जुट जाते है,इस धन के लिये उन्हे कुछ भी करना पड़े कर लेते है सोमवती बोली।
मंसा-ठीक है मां मैं और हंसा परसो कल जल्दी नानी के घर को निकल पडं़ेगे।पल्हना के मेला के एक दिन बाद नानी के गांव के पास खजुरी का मेला लगेगा ना मां। सामबलि मामा आये थे तो बता रहे थे मेला देखने के लिये एक चवन्नी भी तो दिये थे।
सोमवती-जा नानी मेला देखने के लिये चार चवन्नी देगी।
सुबह मंसा और हंसा खेवसीपुर के लिये निकल पड़े। सड़क का रास्ता तो था नही,गाड़ी मोटर चलने का सवाल नही था। चार कोस की दूरी थी,रास्ता का कोई नामोनिषान न था ।बीच में बेसो नदी पड़ती थी बस वहीं डर था। आसपास के गांव वाले नदी तैर कर पार करते थे। मंसा और हंसा अपने गांव की सीमा पार किये ही थे कि भोजापुरा के कोढ़ी बाबा मंसा को दिखाई पड़ गये।
मंसा बोला-देखो कोढ़ी बाबा आ रहे है। इतने में हवा के वेग जैसे वे दोनो के सामने हाजिर हो गये। कोढ़ीबाबा बोले मंसा बेटा कहा जा रहे हो। तुम्हारी मां की तबियत अब ठीक है,तुम्हारे बाबू दुखीराम कहां है,कई दिन हो गया खेत की ओर आये नही।
मंसा-बाबा मां ठीक है,पिताजी धान की निराई गुड़ाई कर रहे है,मैं नानी के से मिलने जा रहा हूं । नानी की तबियत खराब है।
कोढ़ीबाबा-कोई प्रेत बाधा है। अपनी नानी से कह देना घर में लोहबान जलाया करेगी। आराम मिल जायेगा।
मंसा-नही ठीक होगा तो मुर्गा चढ़ाना पड़ेगा क्या ?
कोढी-बाबा वो तो ओझा बतायेगा, झाड़फूंक करने के बाद।नानी से बोल देना सिर के नीचे हंसुआ रखकर सोयेगी और घर में लोहबान जलायेगी।
हंसा-बाबा हम जाये।
कोढ़ी बाबा-अरे अकेले कैसे जाओगे नदी में पानी बढ़ गया है। चलो नदी पार करवा देता है। कोढ़ी बाबा हंसा मंसा को नदी पार करवाकर अपनी कुटिया की ओर लौट पड़े।
तब हंसा बोला यार तुम्हें मुर्गे की बात कहां से याद आ गयी।
मंसा-मेरी मां को मोलही पोखरी का भूत पकड़ लिया था तो उसके उतारने के लिये कोढ़ीबाबा एक मुर्गा ,पूजता का सामान दो रूपया आ चार आना यानि चवन्नी यानि सवा दो रूपया लिये थे। बाते करते करते दोनांे जिगनी कुम्हारों की बस्ती पहुंच गये। चलता हुआ चाक देखकर मंसा के पैर रूक गये,हंसा बोला यार दोपहर होने वाली है,तुम मिट्टी से बर्तन बनाना सीखोगे तो अधीरात हो जावेगी।
अरे यार क्यों जल्दी मचा रहे हो..............
हंसा-सूरज भगवान ढल चुके है अभी आधे रास्ते भी नहीं पहुंचे।
पहंुच जायेगे कहते हुए मंसा उठा और दौड़ लगा दिया हंसा भी उसके पीछे दौड़ पड़ा,कुछ देर दोनो दौड़ लगाते रहे।हंसा बोला यार मैं थक गया।धीरे-धीरे चलो दौड़ना बन्द करो।
थोड़ी देर सुस्तायेगे आगे चलकर मंसा बोला।
कहां और कितना दौड़ाओगे खाना चप गया हंसा बोला ।
मंसा-नानी के घर चल रहे हो,पेट में भूख जरूरी है।नानी का प्यार नही देखा है क्या ?
जीत गया मेरे बाप अभी कितनी देर और दौड़ना पड़ेगा हंसा बोला ।
सामने स्कूल तक........
रास्ता बदल कर चलोगे क्या......?
मंसा बार-बार नदी पार कर क्यों भींगे । थोड़ा ज्यादा समय लगेगा पर भीगेगे तो नही कहते कहते मंसा दौडे जा रहा था। कुछ देर में वही जिगनी स्कूल के सामने पहुंच गया और मोची बाबा की दुकान के सामने पड़े साफ पत्थर पर बैठ गया।
कभी मिटर्टी के बर्तन बनाना सीखते हो कभी जूता बनाना,क्या-क्या सीखोगे हंसा बोला ।
ये ग्रामीण कलाये-मिट्टी के बर्तन,काश्ठकला,चर्मकलायें जीवनयापन के सदाबहार तरीके है,सीखने में क्या बुराई है मंसा बोला ।
बेटा चर्मकला को जीवन यापन का जरिया नही बनाना मोची बाबा बोले।
मंसा-क्यो बाबा।
चर्मकलाकार होने के कारण तो हम अछूत है,कुत्ते का जूठन लोग खा लेगे मेरा छुआ पानी नही पीते है।बेटा मेरी बस्ती के कुयें का पानी भी अपवित्र माना ज्यादा है मोची बाबा बोले।
मंसा आंख मलते हुए उठा और चल पड़ा। हंसा उसके पीछे-पीछे। सूरज डूबने के पहले दोनों नानी के घर खेवसीपुर पहुंचने में कामयाब हो गये।
सुरेन्द बड़े मामा का लड़का बस्ती से दूत दक्षिण दिषा में कुयें के पास मंसा हंसा को सुस्तता देखकर दादी को आवाज देते हुए दौड़ पड़ा-दादी मंसा और हंसा भइया आ रहे हैं।सुरेन्द्र की आवाज सुनकर मंसा की मामी,मामा,नानी और आस पड़ोस के लोग एकटक मंसा की राह ताकने लगे।सुरेन्द्र मंसा और हंसा को देखकर बहुत खुष हुआ। सुरेन्द्र बोला भइया परसों मेला है।साथ मेला देखने चलेंगे। वह मंसा का हाथ पकड़कर बतियाते हुए घर आ गया।मंसा और हंसा नानी मामी,मामा और उपस्थित बड़े बजुर्गो का पांव छूये।मंसा की कटघर वाली मामी मंसा को चूमते हुए बोली अब बबुआ बड़े हो गये।नानी,मामा-मामी की खबर लेने आ गये।
सामबलि मामा बोले-भांजा अभी इतना बड़ा नहीं हुआ है, तुम बुजुुर्ग बना रही हो। इस साल तीसरी जमात में तो गया है।
मामी मंसा-और हंसा को अंगना मे ले गयी। मामा ने खटिया डाल दिया।मंसा,हंसा,सुरेन्द्र,मामा खटिया पर बैठ गये नाना मंचिया पर बैठ कर मंसा से हालचाल पूछने लगी।इतने में मामी थरिया में पानी भर लायी और मंसा का पैर जर्बदस्ती थरिया में रखकर धोने लगी।इसके बाद हंसा का पांव भी धोकर बोली बबुआ कुछ आराम मिला।वह खुद बोली नन्हें-नन्हें बच्चे चार कोस पैदल चलकर थक गये है। सामबलि माम बोले भांजो को कुछ खिलाओ भूखे भी होगे।
नानी उठी कुरूई में गुड़ दाना लेकर आयी और बोली लो बेटवा खाकर पानी पी लो।मामी बोली रस बना दूं बबुआ ।
नहीं मामी रस नही-मंसा बोला ।
मामी बोली क्यों पेट खराब हो जायेगा बबुआ उसर का गुड़ पानी दोनों ठण्डा होता है इसलिये।
सामबलि मामा-मछली भात भांजा खायेगा कि तुम्हारा रस षाम को पीयेगा।
नानी मंसा,हंसा से बतियाने में जुट गयी। कुछ देर बाद मामी हुक्की गुड़गुड़ाते हुये आयी हुक्की थमाते हुए बोली अम्मा आज तो तम्बाकू की याद नही रही मंसा,हंसा से बतियाने में ।
नानी-कितने महीनों के बाद नाती देखने को मिला है, हुक्की कैसे याद रहेगी। ला चढ़ा लायी है तो पी लेती हूं। नानी हुक्की पीते-पीते बतियाती रही। मामी खाना बनाने में जुट गयी। मंसा,हंसा मामी के हाथ की बनी मछली खाये,सबसे बाद में मामी ने खाना खाकर काम निपटाना कर मंसा से बोली चलो बबुआ हमारे पास सो जाओ।
मंसा बोला नही मामी हम,सुरेन्द्र और हंसा सब नानी के पास सोयेगा,नाना कहानी सुनायेगी।क्यों नानी।
नानी बोली तुम्हारी मतारी जैसी तो मुझे कहानी कहने नही आता फिर भी सुना दूंगी।नानी देर रात तक गा-गाकर कहानी साुनती रही।कभी मंसा हुंकारी भरता तो कभी हंसा,कभी मारते हुए सुरेन्द्र भी हुंकारी भर लेता।सुबह मामी रोटी चोखा बनायी खरमेटाव यानि नाष्ता करवाई। दोपहर के खाने के बाद मामी बोली अम्मा दाना भूंजा लाती।मंसा और हंसा गरम गरम खाते षाम को। कुछ देर में मामी लाई यानि परमल का चावल,चना,चोन्हरी यानि मक्का की पोटली बनाकर दी। नानी भरसांय/भड़भूजा के यहां दाना भूजाने जाने लगी तो सुरेन्द्र बोला आजी/दादी हम और भईया भी चले। दोनों भईया घूम आयेगे कल तो मेला देखने जाना है। नानी तीनों को लेकर दाना भूजाने चली गयी। नानी कहाइन/दाना भूजने वाली से बोली नन्हुआ की मां देखे मेरे नाती आये है मेरा दाना पहले भूज दे। कहाइन बोली तुम्हारे नाती हमारे नाती है पर जो नम्बर लगाकर बैठी है,वे नाराज होगी,मेरी ग्राहकी टूट जायेगी।
नानी बोली उनकी चिन्ता ना इन सब के तो मेरे नाती मेहमान है,मेहमान भगवान होते है।मेरे नम्बर पर है मेरा दाना भूजना पर जोन्हरी। मक्का भूज दे मेरे नाती गरम-गरम खाते रहेगे,बाकी बाद में भूंज देना।नानी की बात कोहाइन ने मान लिया।नानी को दाना भूजाकर आने में देर हो गयी। नानी के आते ही मामी बोली अम्मा जहां जाती हो वहीं की होकररह जाती हो,भांजे बेचारे भूखे होगे।
नानी बोली भरसांय गयी थी मंसा हंसा और सुरेन्द्र भी साथ गये थे,गरमागरम दाना खाये है।
खानी भी बन गया है हाथ पांव धोलो खाना खाकर जल्दी सो जाते है। कल मेला देखने जाना है मामी बोली।
मेला की तैयारी तो महीने से कर रही है आज भांजो को तुम कहानी सुना देना।मामी बोली भांजो के लिये तो एक रात क्या कई रात कहानी सुना सकती हूं। दो कहानी सुनाकर मामी बोली मंसा बबुआ मुझे नींद आ रही है।
म्ंासा बोला मामी सो जाओ नानी तो है ना।
मामी उठते है घर के काम में जुट गयी। सामबलि मामा गाय-बैल का चारा काटने में जुट गये। सब काम निपटाकर दोपहर में मेला देखने जाने की तैयारी में जुट गये। सुरेन्द्र, मंसा और हंसा के साथ मस्त था।
दोपहर के बाद सामबलि मामा-मामी, सुरेन्द्र,मंसा और हंसा मेला देखने घर से निकलने के पहले सब नानी के पांव छुये,नानी ने आर्धीवाद की गठरी खोल दी थी। मामी को सुदासुहागन और दूधो नहाओ पूतो फलो का आर्षीवाद दी थी और मेले देखने के लिये पैसे भी।मंसा और हंसा को एक-एक रूपया का कागज का नोट और एक-एक चवन्नी । सब नानी से आर्षीवाद औमेला देखने के लिये पैसा लेकर हंसी-खुषी मेला देखने चल पड़े। पूरी बस्ती के बच्चे बड़े-बुजुर्ग झुण्ड बनाकर जा रहे थे औरतो का झुण्ड मेलहीगीत,लचारी,ठुमरी गीत गाते हुए मेले की ओर बढ़ रहा था।मेले में पहुंचकर मामा ने जुआठ खरीदा,मामी चैका बेलना खरीदने के बाद चूड़िया पहनी,सुरेन्द्र,मंसा और हंसा चरखी जिसमें लकड़ी के घोडे बने हुए थे उस पर बैठकर झूले।खूब मजे से मेला देखे खूब जूसहिया पकौड़ी,जलेबी और दूसरी देषी मिठाईयां खाये। ये तीनों मेले मे मजे कर रहे थे मामा बेचारे दौड़-दौड कर खोज रहे थे। मामी चैका-बेलना,पौनी और नदवा यानि माटी का बर्तन जिसमें दूध गरम किया जाता है, जुआठ और दूसरी सामान लेकर इन सब का इन्तजार कर ही थी।इनको खोजने मे मामा का काफी मषक्त करनी पड़ी थी।खैर मिल गये,मामा मंसा का हाथ पकड़ मामी के पास ले गये और तीनों को मिठाई खिलाये। इसके बाद पूरा गांव एक साथ मेला देखकर घर की ओर निकल पड़ा। मामी नानी को एक सामान बतायी,इसके बाद मंसा चिलम रख दिया ।
मामी चिलम देखकर भौचक्की रह गयी। वह बोली मुझे तो याद ही नही रहा की अम्मा की चिलम फूट गयी है। चार दिन से अम्मा फूटी चिलम में तम्बाकू पी रही है।
सामबलि मामा बोले-मंसा से सीखो।
मामी-मंसा को गले लगा ली।
नानी-बोली बेटा चिलम तो बाद में तेरा मामा ला देता। तुमको मेला देखने के लिये पैसा दी थी चिलम खरीदने के लिये नही।
मंसा-नाना अभी पैसा बचा है। एक चवन्नी में तो चार चिलमें आ गयी है। एक चवन्नी अभी भी मेरे पास है।मंसा की बातें सुनकर नानी की आंखें भर आयी।मामी बोली खुषी के मौके पर आंसू क्यों।
नानी-बोली पगली ये खुषी के आसू है नाती चिलम खरीदकर जो लाया है।
सब देखे मांदे थे जो जहां गिरा वही सो गया नाना और मामी जगाा-जगाकर खाना खिलायी। सुबह मंसा और हंसा नानी के घर से विदा लेकर षाम ढलते अपने गांव आ गये।मंसा पवनी गांव की दुकान से चवन्नी का गट्टा अपने भाई बहनों के लिये लिया ।घर पहुंचते ही मां सोमवती को गट्टे की पुडिया दिया,मां ने सभी छहो भाई-बहनों बराबर बांट दी। इसके बाद मंसा मां के हाथ पर एक चवन्नी रख दिया।
मां बोली ये कैसी चवन्नी बेटा।
सगुन समझो मां।
मोहन,सोहन और सुगन्धा तीनों बच्चे एक साथ बोले चार आने में इतनी मिठाई की छः लोगों में बंट गयी।चार चिलम आ जाती थी।
नन्दन-हां बेटा चवन्नी का मूल्य हुआ करता था। हम दस किमी की बस की यात्रा चार में कर लेते थे।चवन्नी महज पच्चीस पैसे का सिक्का नही हुआ करती थी,सगुन थी संस्कार थी आस्था थी। हर लेन-देन षुभ कर्म में चवन्नी का विषेश महत्व हुआ करता था।तब के सवा रूपया का सुख आज सवा सौ नही दे सकता। चवन्नी के बिना पूजाकर्म
पूरा नही होता था। चवन्नी सामाजिक सरोकार का अभिन्न अंग थी पर सरकार ने चवन्नी को व्यापार के तराजू पर तौलकर घाटे का सौदा मान लिया और चवन्नी बाजार से बाहर हो गयी।
सुगन्धा-एक पैसा दो पैसा पांच पैसा दस पैसा बीस पैसा और चवन्नी बाजार में होती तो इतनी महंगाई ना होती।
मोहन-भ्रश्ट्राचार भी नही इतना होता।
सोहन-वो कैसा भईया
मोहन-सोचो पांच सौ का एक नोट एक-एक के सौ नोटो से मिलकर बना है ना।
सोहन-रहने दो समझ गया।
मोहन-क्या.......?
सोहन-बडे नोट भ्रश्ट्राचार को बढ़ावा दे रहे है।
बड़ी बिटिया सुगन्धा बोली ठीक समझा मेरे भाई। काष छोटे नोट और चवन्नी चलन में आ जाती। सरकार फिर से चवन्नी के सामाजिक,धार्मिक और सगुन के पहलूओं पर विचार कर लेती।
नन्दन- हां बेटा तब सामाजिक,धार्मिक,पारम्परिक और सगुन के मौकों पर चवन्नी के न होने का दर्द ना सालता।
डां.नन्दलाल भारती
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY