Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

छोटे लोग

 

नयनलाल के बी.ए.पास करते ही उसके मांता-पिता की आंखों में चमक आ गयी। उन्हें लगने लगा था कि जीवन का मधुमास जो पतझड़ में बदल गया था,नयनलाल को सरकारी नौकरी मिलते ही घर-मंदिर में मधुमास लौट आयेगा। खैर हर माँ-बाप को अपनी औलाद से ऐसी ही उम्मीद होती है। मां-बाप को अपनी औलाद को लेकर सपने बुनना भी चाहिये परन्तु उनके सपनों का आकसमिक मानवीय सोच की दुर्घटना के शिकार न हो। भारतीय व्यवस्था में ऐसी आकसमिक दुर्घटनायें आम है जो अक्सर हाशिये के लोगों के साथ अक्सर हो ही जाती है। कभी छोटे लोग के नाम पर,कभीं छोटी जाति के नाम पर कभी क्षेत्र के नाम पर कभी प्रान्त के नाम पर किसी और नाम से। ऐसी ही दुर्घटना नयनलाल के साथ हुई नतीजन उसके मां-बाप गुणवन्ती और हरीलाल के सपनों का चकनाचूर होना था। नयनलाल को अभी नौकरी ज्वाइन किये चन्द महीने हुए ही थे। अर्धशासकीय मल्टीनेशनल खेती विकास कम्पनी में आरक्षण की व्यवस्था लागू होने की सुगबुगाहट ‘ाुरू हो गयी। प्रबन्धन ने जाति प्रमाण प्रस्तुत करने की सूचना जारी कर दी थी। जाति प्रमाण के सामने आते ही नयनलाल के कैरिअर की तबाही के “ाणयन्त्र ‘ाुरू हो गये। खैर सामन्तवादी सोच के धनिखाओं ने आरक्षण तो लागू नहीं होने दिया। सरकारी कानून ना जाने कहां खो गये पर छोटे लोग के नाम पर तथाकथित उच्च वर्णिक ब्रांचहेड आर.के.डंकना ने नयनलाल के उपर मुसीबतों के ओले अंवारा बादलों की बरसात के साथ गिराने ‘ाुरू कर दिये थे जाति प्रमाण पत्र देखने के बाद। आर.के.डंकना बात-बात पर नयनलाल को दुरियाना भी ‘ाुरू कर दिये थे।
आर.के.डंकना विजय दुर्धर जो स्टेटहेड थे से कहते हुए सुने गये साहब कम्पनी में छोटे लोग आने लगे है,कम्पनी सरकारी रवैये पर ना चलने लगे।
विजय दुर्धर-अरे क्यों चिन्ता करते हो डंकन किसको छोटा बनाये रखना है किसको बड़ा बनाये रखना है,ये हमें तय करना है और रच गये नयनलाल को छोटे बनाये रखने का “ाणयन्त्र । उसकी सी.आर.मध्यम गति से खराब की जाने लगी थी जो उसे पदोन्नति से दूर रखने के लिये काफी थी छोटा बनाये रखने के लिये छोटे लोग के खिलाफ।नयनलाल का सच भी डंकन साहब को झूठ लगता था,उसकी तकलीफें उन्हें बहाना लगती थी।नयनलाल को मिलने वाली तनख्वाह डंकना साहब को ज्यादा लगती थी।नयनलाल के लिये नौकरी किसी सजा से कम नही लग रही थी। वही दूसरी ओर डंकन साहब के खास धनपति जो नौकरी के ‘ाुरूआती दौर में विक्षिप्त हो गया था। धनपति भले ही पागल सरीखे हो गया था अतिसुन्दर जीवनसंगिनी का साथ भी था।डंकन साहब की जी हजूरी में तनिक भी कोतहाई नहीं बरतता था। मदद के लिये डंकन साहब भी रात-विरात उसके घर पहुंच जाते थे।डंकन साहब धनपति की हर तरह से मदद करते थे आर्थिक लाभ भी खूब पहुंचाते थे। दफतर के दूसरे लोग डंकन साहब को नालायक लगते थे। डंकन साहब की कृपा धनपति पर खूब बरसती थी।दफतर के बड़े-बडे़ बुद्धिमान धनपति के सामने बौने से हो गये थे। धनपति का प्रमोशन भी धड़ले से हो रहा था ।धनपति के साथ के लोग पन्द्रह साल पिछड़ गये पर विक्षिप्त धनपति सब का कान काट रहा था। ना जाने डंकना साहब को धनपति से कौन लाभ मिल रहा था जिसकी वजह से डंकना साहब दूसरे कर्मचारियों की शिकायत भी करने में तनिक नही हिचकते थे।जब-जब डंकना साहब का स्थानान्तरण हुआ डंकना साहब ने धनपतिकुबेर का भी स्थानान्तरण वही करवाया जहां वे स्थानान्तरित हुए। स्टेटहेड,विजय दुर्धर साहब के तो आर.के.डंकना साहब इतने खास थे कि उनकी इच्छा पूर्ति के लिये चांद भी धरती पर उतार लाये।इसके अलावा डंकना साहब में कोई योग्यता नही थी।मामूली से ग्रजुयेट थे अंग्रेजी तो दूर हिन्दी भी लिखने में इतने हाथ तंग थे कि बड़े अफसर की तरह दस्तख्त कर लेते। विभाग में दनादन तरक्की की चोटी पर चढ़ते जा रहे थे,उनसे वरिष्ठ निम्नवर्णिक ए.ए.ध्यान का तो कैरिअर खत्म हो गया था।वही हाल नयनलाल के साथ ‘ाुरू हो गया खैर नयनलाल तो मामूली से क्लर्क की नौकरी पर लगा था पर वह जानता था कि मामूली क्लर्क पर लगे योग्य लोग उच्च पदों पर जा सकते थे।कईयों को तो जनरल मैनेजर के पद से रिटायर होते भी देखा था। इसी उम्मीद में नयनलाल आंसू से अपने कैरिअर का कैनवास रंगने का भरसक प्रयास कर रहा था। अपने साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ अगर मुंह खुला तो नौकरी जाने का खतरा भी था। स्टेटहेड,विजय दुर्धर साहब नयनलाल के गांव के पास के ही थे इसके बाद भी वे नयनलाल की परछाईं से भी नफरत करते थे। सुनने में आता है कि क्षेत्रवाद भी भ्रष्ट्राचार का कारण बनता है परन्तु स्टेटहेड,विजय दुर्धर लकीर से हटकर फायदा पहुंचाने की बात तो दूर उसको हकों पर तलवार लटकाये रखते थे। स्टेटहेड,विजय दुर्धर के मातहत काम करने वाले अफसर ही नही चपरासी भी नयनलाल को दोयम दर्जे का आदमी ही समझते थे क्योंकि नयनलाल निम्नवर्णिक जो था। स्टेटहेड,विजय दुर्धर के हाथ के नीचे प्रशासन में काम कर रहे एस.एस.चोरावत ने तो हद की कर दिया था।नयनलाल की एल.टी.सी का भुगतान नहीं होने दिया था। पुराना स्कूटर खरीदने के लिये नयनलाल ने आवेदन लगाया था पर दो साल तक लोन पास नही होने दिया था। स्टेटहेड,विजय दुर्धर और आर.के.डंकना साहब की सह पर एस.एस.चोरावत ने तो नयनलाल की पत्नी के मडिकलों बिलों की जांच करवाने के लिये कमेटी तक बैठवा दिया था ।सांच को आंच कहां नयनलाल ने एक-एक खुराक दवाई का हिसाब दिया था । मुंह की खानी तो पड़ी थी पर जली हुई रस्सी की तरह इनकी ऐंठने नही गयी थी।मौंके-बेमौंके नयनलाल का अहित में तथाकथित उच्च मानसिकता वास्तव में दोगली मानसिकता के लोग जुटे रहते थे। आर.के डंकना साहब होंठो पर मुस्कान लिये हर साल मौैन कैंची चलाये जा रहे थे और उपर बैठे स्टेटहेड,विजय दुर्धर अपनी मुहर लगाये जा रहे थे। नयनलाल को दफतर की सरकारी सुविधा भी उनकी आंखों में धंसने लगी थी।कहते छोटे लोागों की सरकारी सुविधाओं की लत लग रही है।
चम्बल संभाग की गर्मी आग में आलू भुनने जैसा होती है,ऐसी गर्मी में सरकारी दफतर का रो-रोकर चलने वाला पंखा भी नयनलाल की सीट से आर.के डंकना ने अपने तथाकथित रिश्तेदार के घर शिफट करवा दिये थे। नयनलाल की नाक से टपकता से उठा पसीना नख तक बहता रहता था ऐसी परिस्थिति में काम थोपने का सिलसिला भी । एक कहावत है अगर बांस कर्मचारी को सुनते है तो कर्मचारी भी पूरी ईमानदारी बरतते है। यहां तो नयनलाल काम के प्रति समर्पित था पर दुख में था।बांस ही नहीं दफतर के दूसरे लोग भी छोटे लोग कहकर उपहास करते,ईमानदारी के साथ किये गये काम के बदले दण्ड मिलता बेचारे निरापद नयनलाल को।एक कहावत दबी जबान सुनने को और आती है बांस आफिस का तनाव दूर कर सकते है।सच भी है काम की अधिकता से कर्मचारियोंमें होने वाले तनाव को बांस अपने सौम्य और भावनात्मक व्यवहार से काफी हद तक कम कर सकते है। इससे काम भी समय पर पूरा होजाता है। बांस भी परिवार के मुखिया की तरह अपनत्व की सौम्यता भी दिखा सकते है।कर्मचारियों के लिये काम बोझ नही लगता।काम के निपटान के लिये कर्मचारियों को अलग से समय की जरूरत भी नहीं पड़ती।समय लेने का तात्पर्य यह होता है कि कर्मचारी बीमार होने की लम्बी छुट्टी लेकर घर बैठ जाते हैं जिससे कम्पनी के काम में बाधायें आती है। काम समय से पूरा नही होता है।यदि कर्मचारी स्वस्थ होता है और बांस परिवार के मुखिया की तरह सौम्यता के साथ काम लेता है तो कर्मचारी काम सही ढंग से करता है और काम समय से र्पू अथवा समय पर पूरा हो जाता है।बांस बिना किसी भेदभाव के कर्मचवारी के साथ पेश आता है तो कर्मचारी मे कम से कम छुट्टियांे पर जाते है। लेकिन यह तभी सम्भव है जब बांस कर्मचारी की मनोदश समझे उसके हितो का ध्यान रखे और मानवता के प्रति ईमानदारी बरतते हुए बिना किसी जातीय भेदभाव के हर कर्मचारी से प्यार से काम ले।नयनलाल पूरी ईमानदारी,कर्तव्यनिष्ठा के साथ काम करता था परन्तु उसके साथ सभी अधिकारियों-वी.पी.दुर्धर,देवेन्द्र दुर्धर,अवध दुर्धर,आर.पी.दुर्धर,कनक नाथ दुर्धर,जगजीत दुर्धर,देवकी और डंकना ने दोयम दर्जे का आदमी मानकर अन्याय ही किया। नयनलाल काम के बोझ से हमेश दबा रहता था,उसके जीवन का मधुमास इन अफसरों ने पतझड़ बना दिया,उसके खुली आंखों के सपने मारते रहे छोटे लोग कहकर।नयनलाल,उच्च शिक्षित और कर्तव्यनिष्ठ होने के बाद भी दण्डित किया जा रहा था। उसे अपरोक्ष रूप आत्महत्या करने तक को हत्तोत्साहित किया जाने लगा था। उसके आगे बढ़ने के रास्ते बन्द किये जाने का “ाणयन्त्र जारी था सिर्फ जातीय अयोग्यता की आड़ में।नयनलाल को हमेश तनाव में रखा जाता था ताकि वह हत्तोत्साहित होकर नौरी छोड़ दे या दुनिया ।ढेर सारी खूबियों के बाद भी नयनलाल को दण्ड मिल रहा था।नयनलाल संस्थाहित में बड़ी ईमानदारी से काम तो कर रहा था पर उसे दफतर में घुटन महसूस हो रही थी। घुटन में काम करते हुए उसे कई बीमारियों ने घेर लिया था। विभाग में किसी का कभी नयनलाल को सहयोग नही मिला परन्तु छोटे लोग के नाम पर उसकी योग्यता का बलात्कार कर्मपूजा का चीरहरण जरूर किया गया।नयनलाल की भावनाओं को समझना तो दूर उसकी मेहनत की कमाई पर गिद्ध नजरे टिकी रहती थी।काम नयनलाल करता था,अतिरिक्त प्रतिपूर्ति ओवर टाइम धनपतिकुबेर और ऐसे दूसरे लोगों के हिस्से चला जाता था। धनपतिकुबेर को तो तनख्वाह से अधिक दूसरी कमाई का लाभ मिल जाता था।यह सब डंकना साहब की कृपादृष्टि का प्रतिफल था। हाँ नयनलाल पर तो हमेशा कोपदृष्टि बनी रहती थी बस छोटे लोग के नाम पर।
डंकना साहब ने नयनलाल के साथ पशुता तक का व्यवहार कर डाला,पहले उसकी सीट पर चल रहे मरियल पंखे को उठवा लिये,फिर उसे खुले नन्हें से बरामदे में टाइपराइटर देकर बहरिया दिया जहां झुजसा देने वाली लू में वह झुलसने को विवश था। गर्मी की प्रचण्डता को देखकर दफतर के लिये सरकारी खर्चे पर कुलर लगाने का बजट स्वीकृत हुआ पर नयनलाल के लिये आया कुलर आर.के.डंकना साहब अपनेे घर उठवा ले गये ।धनपतिकुबेर के मुंह से जरूर सुनने को मिला था कि छोटे लोगों को सरकारी सुविधा की लत लग जायेगी तो काम कौन करेगा। कहावत सुनने में आती है कम्पनी के नुकसान को कम करने और लाभ को बढाने में बांस अहम् भूमिका निभाता है वी.पी.दुर्धर,देवेन्द्र दुर्धर,अवध दुर्धर,आर.पी.दुर्धर,कनक नाथ दुर्धर,जगजीत दुर्धर,देवकी और आर.के डंकना जैसे अफसर संस्था,मानवसमाज,देश और नवयुवकों के लिये खतरा साबित होते है। भ्रष्ट्राचार के जनक साबित होते है। ऐसे लोगों को क्या कहा जा सकता है जातीयता को योग्यता मानकर ‘ौक्षणिक का बलात्कार करते है सिर्फ छोटे लोग के नाम पर। इस तरह के लोग ठीक वैसे ही लगते है जैसे वामन जो चक्रवर्ती सम्राट बलि से छलकर उनका सर्वस्व ठग लिया था। जातीय भेदभाव के नाम पर चेहरा बदलकर हाशिये के आदमी अथवा छोटे लोगों की नसीब कैद करने वाले लोग आदमी के वेष में नरपिशाच लगते है आज के विज्ञान के युग में भी।नयनलाल का भविष्य भेद के भंवर में फंसा हिचकोले खा रहा था इसी बीच उसे महात्मा ज्योतिराव फुले द्वारा लिखित किताब गुलामी, मराठी का हिन्दी भाषान्तर पढ़ने को मिल गयी।यह पुस्तक पढ़ ही रहा था कि डाँ.रमा पांचाल द्वारा सम्पादित पुस्तक सिन्धु संस्कृति के निर्मताओं के वंशज महाराजा बली हाथ लग गयी।इन पुस्तकों का पढ़कर नयनलाल को वैदिककाल से वर्तमान के “ाणयन्तकारियों और उनके पात्रों के विषय में जानने और समझने का अवसर मिला। इन पुस्तकों से उसे ज्ञात हुआ कि वह सिन्धु सभ्यता के वंशावली से हैं,सच भी यही हैं। देश की आाबादी के अस्सी प्रतिशत लोग जिन्हें ‘ाोषित वंचित आदिवासी के नाम से जाना जाता है जो लोग विकास की लय आजाद देश में नही पकड़ पाये है,षणयन्त्र के शिकार हैं, असल में वे लोग छोटे लोग नहीं है। छोटे लोग तो वे है जो लोग खुद का बड़ा घोषित कर,शोषित-वंचित समुदाय का हक हड़प रहे है। ऐसा ही तो आधुनिक वैज्ञानिक युग में जहां दूरियों की सीमायें टूट चुकी है परन्तु जातीय भेद की दूरियांें पर आंच तक नही आयी है जिसकी वजह से नयनलाल और उस जैसे अनगिनत लोगों को आंसू से रोटी गीला करना पड़ रहा था।नयनलाल उकदम आश्वस्त हो चुका था कि वह और उसके लोग छोटे लोग नहीं हो सकते।
नयनलाल के व्यवहार में आयी परिवर्तन से विभाग में जैसे खलबली मच गयी।उसको रोकेने के अपरोक्ष रूप से खूब प्रयास होने लगे थे। सी.आर. तो पहले से ‘ानै-शनै खराब की जा रही थी,उसके भविष्य पर कालिख तो पोत दी गयी थी।इसके बाद भी कई बार पदोन्नति के मौके भी आये वह कई अग्नि परीक्षायें भी पास कर लिया लेकिन परिणाम उसके पक्ष में कभी नहीं आया।वह हत्तोत्साहित होने की वजाय और उत्साहित होता चला गया जिसका परिणाम यह हुआ कि सभ्य समाज के बीच उसकी पहचान उभर कर आ गयी। सेवा में उसके जीवन के पच्चीस मधुमास पतझड़ में बदल चुके थे पर उसके मन में कल से आस थी जो कुसुमित रहती थी। अरसे बाद उसे डी.पी.सी में बुलाया गया पर इस बार भी परिणाम में कोई बदलाव नही हुआ होता भी कैसे ययह तो महज खानापूर्ति थी,उसकी योग्यता पर एकबार फिर अयोग्यता की मुहर लग गयी।नयनलाल ने कमरकस लिया और बोर्ड आफ डायरेक्टर को लिखित में अन्याय के खिलाफ अर्जी लगा दिया। खैर इस अर्जी से भी नयनलाल को कोई तरक्की नही मिली मिलती भी कैसे सी.आर.जो खराब कर दी गयी थी तरक्की से दूर रखने के लिये।
अचनाक आर.के डंकना साहब के विदेश अध्ययन की मंजूरी विभाग से मिल गयी। उस डंकना साहब को जो लिखने-पढ़ने से काफी दूर थे पर ग्रेजुयेट थे।विदेश में जाकर क्या समझेगे,क्या बोलेगे।इस समस्या का समाधान डंकना साहब के एक भक्त उदय के मस्तिष्क में उपज गयी। खैर उस वक्त गजनी पिक्चर बनी तो नही थी ‘ाायद ऐसा कुछ उन्होंने किसी विदेशी पिक्चर में देखा हो। गजनी के तर्ज पर जैसे नायक फोटो खींचकर कोडिंग कर लेता है।ठीक वैसे ही आर.के.डंकना साहब के प्रतिदिन के उपयोग हेतु डायलाग और लेक्चर की मैनुस्क्रिपट तैयार की गयी थी।इस मैनुस्क्रिपट रचना में नयनलाल भी सहभागी था।मैनुस्क्र्रिपट तैयार करने में सप्ताह भर लगे थे पर यह आयडिया कामयाब भी रही। डंकना साहब दिल्ली प्रस्थान करने से नयनलाल से बोले-तुम्हारा कोई काम तो नही है मुख्यालय में कोई काम हो तो बताओ दो दिन दिल्ली में रूकना है,तुम्हारा काम करवा दूंगा।
नयनलाल-नहीं।
डंकना साहब-माथा ठोंकते हुए बोले तुम्हारी पदोन्नति का मामला तो है क्यों नहीं कोई काम।
नयनलाल-मेरा काम नही हो सकता।
डंकना-मैं जा रहा हूं,प्रशासन हेड से बात करूंगा।
नयनलाल-म नही मन बोला अभी तक तो कब्र खोदते रहे एकदम से मेरे कैरिअर की चिन्ता कैसे होने लगी।
डंकना साहब-कुछ बोले ।
नयनलाल-नहीं साहब ।
धनपतिकुबेर-साहब आबे बढ़कर तुम्हारा काम करवाने को कह रहे है।तुम कह रहे हो नहीं होगा।
डंकना साहब-तुमने अपनी पदोन्नति के विषय में जितने पता्रचार किया हो सब पत्रों की एक-एक प्रति दे दो। तुम्हारी पदोन्नति जरूर होगा।तुम्हारे इतना योग्य प्रदेश में तो कोई नही है।
नयनलाल को ना जाने क्यों दाल में काला क्या पूरी दाल काली लगने लगी थी।वह बोला हड़ताल आज है सभी दुकानें बन्द है। फोटोकापी नही हो पायेगी। बाद में जब जायेगे तो दे दूंगा।
डंकना साहब-अभी दे दो। मैं वही करवाकर दे दूंगा,तुम्हारे नाम से कोरिअर करवा दूंगा।
आखिरकार नयनलाल को सारा रिकार्ड देना पड़ गया । दो महीने की विदेश यात्रा के बाद डंकना साहब स्वदेश लौटे थे और उनके दफतर आते ही नयनलाल दस्तावेज के बारे में जानकारी चाहा तो फटेमुंह डंकना साहब का जबाब था यार तुम्हारे दस्तावेज तो हेडआफिस में दे दिया था जबकि सारे रिकार्ड डंकना साहब नष्ट कर दिये थे। प्रमोशन तो दूर रिकार्ड भी खत्म हो गये एक छोटे आदमी को आगे बढ’े ने रोकने की बद्नियति एवं साजिश के तहत् छोटे लोग मानकर।
नयनलाल बुदबुदाया छोटे लोग का भला कौन चाहेगा?
नयनलाल को पददलित बनाये रखने में तथाकथित उंचे दोगली मानसिकता के लोग कामयाब रहे। नयनलाल ऐसी राह पर चल चुका था जहां से उसे न पीछे देखना सम्भव था और ना लौटना मुमकिन था। वह मानता था कि वह संघर्षरत् जीवन व्यतीत कर रहा है लेकिन वह अपनी जिद पर अडिग था। वह कहता जब तक मेरा अस्तित्व है प्रयास जारी रखूंगा। एक उसका अथक प्रयास कामयाब हुआ उसके किये गये परहित के कामों की सर्वत्र सराहना हुई। कलम के सिपाही को पी.एच.डी.की उपाधि प्रदान कर विश्वविद्यालय ने सम्मानित किया पर विभाग में तरक्की नही हुई । नयनलाल के कद की उंचाई देखकर वी.पी.दुर्धर,देवेन्द्र दुर्धर,अवध दुर्धर,आर.पी.दुर्धर,कनक नाथ दुर्धर,रणवीर दुर्धर,देवकी और डंकना इतने बौने हो गये थे कि नयनलाल से आंख मिलाने में नीचेें गड़ जाते थे। कमेरी दुनिया का आदमी छोटा नही हो सकता क्योंकि सृजन और विकास का आधार तो वही होता है ऐसे फरिश्ते छोटे लोग कैसे हो सकते है। नरपिशाच छोटे लोग तो वे होते है जो ‘ाोषित-वंचित,कमेरी दुनिया के लोगों के खून पीते हंै।

 

 

 

डां.नन्दलाल भारती

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ