Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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चुभन

 

मेरी तकदीर का सुमन,
ना खिला ,
कर्म के दामन घाव,
मिला,
ये तुमने क्या कर दिया ,
भरी महफ़िल में एक और,
नया घाव दे दिया।
हम इतने बदनाम,
ना थे कभी
पसीने से प्यास बुझाने की
आदत है मेरी ,
आज भी कायम हूँ ,
सीने में है घाव ,
दी हुई तेरी।
मैं घाव के बदले घाव,
नहीं देता ,
नफ़रत बोना मुझे
आता नहीं ,
चला था सुमन की आस में
अब तो ,
चुभन में भी मुस्करा लेता .............

 


डॉ नन्द लाल भारती

 

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