दिन भर प्रचण्ड गर्मी का प्रकोप था । ज्ञानप्रकाष के सिर पर छत से लटका पंखा कराह कराह कर जैसे आग उगल रहा था। दोपहर ढलने के बाद की हवा तनिक राहत दे रही थी पर देखते देखते यही हवा आंधी का बिगडै़ल रूप धर ली । आंधी बन्द होने के बाद हवा में तनिक ठण्ड का एहसास होने लगा । इसी वक्त कनि.अधिकारी,धरमेष सहा.अधिकारी,प्रताप के कान में महिला मण्डल की सेवा करके आता हूं पापाजी के उठावने में जाना है। कहकर झटके से विभागाध्यक्ष के केबिन में गये । केबिन से बाहर निकलकर सरकारी कार में बैठकर फुर्र से उड़ गये । सहा.अधिकारी,प्रताप के कान में बड़ी सावधानीपूर्वक कही बात कान से बाहर निकल चुका थी । यह बात दफतर में काम करने वाले कर्मचारीे ज्ञानप्रकाष को जैसे अछूत की तरह दूर झटक दी । ज्ञानप्रकाष दफतर से मिली चिन्ता की गठरी चाहकर भी नही छोड़ पाता । चिन्ता उसके साथ चली जाती । दफ्तर में मुर्दाखोरो से मिली ठेंस उसे चैन से जीने नही देती । ज्ञान प्रकाष चिन्तन की मुद्रा में बैठा हुआ था घर के बाहर ओटले पर। राह चलते नरायन की निगाह ज्ञानप्रकाष पर पड़ी उसके पांव ठिठक गये । वह बगल में बैठ गया । ज्ञानप्रकाष बेखबर था ।नरायन उसके कान में बोला क्या बात है प्रकाषबाबू ध्यान मग्न बैठे घर के बाहर । आने जाने वाले तुमको निहारते हुए चले जा रहे है पर तुम सबसे बेखबर हो । भाई मुझे ही पांच मिनट तुम्हारे पास बैठे हो गया है ।
ज्ञानप्रकाष-क्यो घाव पर खार डाल रहे हो नरायन बाबू ।
नरायन-तुम्हारी आखों में जमंे आसू पढ रहा हूं ।भला मैं तुमको घाव कैसे दे सकता हूं ।
ज्ञानप्रकाष-लोग घाव कर पीछे मुड़कर देखते नही । हां छेाटा कहकर छींटाकसी कर जाते है । दुखते हुए घाव को खरेाच कर मुट्ठी भर आग डाल जाते है ।
नरायन-लगता है कोई दिल दुखाने वाली बात है ।
ज्ञानप्रकाष-छोटे आदमी के दिल पर सभी चोट देते है । बाते भी आदमी के पद,दौलत और जातीय निम्नता और श्रेश्ठता को देखकर कही जाती है । ये इण्डिया है । यहां बहुत सी बातों का फर्क पड़ता है ।
नरायन-भईया मेरे भेज में बात नही बैठ रही है । साफ साफ कहो ना ।
ज्ञानप्रकाष-गरीब की खुषी तो मरणासन्न पर पड़े आदमी जैसी होती है । मुसीबत भी परिहास का कारण बन जाती है । घमण्डी लोग दौलत और पद के मद में रौद जाते हैं ।
नरायन-बात अब भेजे में घुसने लगी है ।
ज्ञानप्रकाष-यही बीमारी तो डंस रही है ।
नरायन-किस बारे में इतने दुखी हो असली बात बताओ । प्याज जितना छिलोगे। छिलका निकलेगा ।
ज्ञानप्रकाष-क्या क्या बताउूं । मै तो ऐसे बबूल की छंाव का कैदी हो गया हूं कि हर पल मुझे चुभन ही मिलती है । सामाजिक परिवेश बहुत दूशित हो गया है । हर जगह बंटवारे की बात ।
नरायन-मुद्दे की बात तो बताओ ।
ज्ञानप्रकाष -राजकुमार साहब के पिताजी मर गये जिन्हे पापाजी कहते थे ।
नरायन-सभी मरेगे । वे तो नाती पोते सभी का सुख भोग चुके थे ।
ज्ञानप्रकाष-बात उनकी नही है ।बात हमारे दफतर के अफसरों और कमचारियों की है ।
नरायन-क्या बात है । बताओ तब ना मालूम चले कि तुम्हारे दिल को कौन सी चुभती यादें चैन नही लेने दे रही है ।
ज्ञानप्राकष- राजकुमार साहब के पिताजी कइ्र दिनों से अस्पताल में थे । दफतर के सभी लोग बारी-बारी से सरकारी वाहन से देखने जाते थे । मेरे लिये मनहायी थी । मैं छुट्टी के बाद अपने साइकिल से जाता था पापाजी को देखने ।
नरायन-यह तो भेदभाव वाली बात हुई ।
ज्ञानप्रकाष-सच्चाई तो यही है । हर बात में मेरे साथ भेदभाव होता है । श्रेश्ठता के पांव तले मुझ अदने को दबाने बार-बार प्रयत्न होता है ।
नरायन-तुम्हारे जैसे लोगों के साथ हर जगह समस्या है । कम्पनियों में तो अधिकतर ऐसी बाते होती है । तुम्हारी कम्पनी तो वैसे ही सामन्तवाद की उर्जा से संचालित है । मैं गलत तो नही कह रहा ?
ज्ञानप्रकाष-ठीक कह रहे हो अधिकारी ही नहीं ड्राइवर, सबसे छोटा रईस चपरासी भी मुझसे वरिश्ठ बनता है । जाति के नाम पर जहर उगलता रहता है । चपरासी की दी हुई चुभती यादें चैन नही लेने देती ।सोचता हूं हमारी जाति में इतनी कौन सी खराबी है कि सभी नफरत करते है । कहने को तो सभी कहते है कि कर्म महान बनाता है पर ये दोगलापन किस लिये ।
नरायन-यह तो अन्याय है ।सरेआम भेदभाव है ।
ज्ञानप्रकाष-हमारे साथ हमेषा भेदभाव होता है । राजकुमार साहब के पापाजी के उठावना क दिन दफतर के सभी लोग और उनका परिवार दफतर की कार से गये आये पर मेरी ओर किसी ने उलट कर नही देखा जबकि उठावना दिन में ही नही आफिस टाइम में था । मेरे साथ अछूतो जैसा बरताव किया गया । सभी का परिवार उठावने में कार से गये । मेरे और मेरी घरवाली के कार में जाने से दफतर की कार अपवित्र हो जाती क्या ? नरायन बाबू मैं रोज अपमान की दरिया में मर कर नौकरी कर रहा हूं । सच बताउूं तो नौकरी करने का मन नही होता ।
नरायन- तुम्हारी कम्पनी के उपर सामन्तवाद का अंिधयारा छाया हुआ लगता है । यही अंिधयारी तुम्हारी जड़ में मट्ठा डाल रहा है ।
ज्ञानप्रकाष-मेरे साथ बहुुत दुखद चुभती यादे जुड़ी है क्याा क्या बयान करूं । एक बार पूरे दफतर के लोग परिवार साहित पिकनिक पर जा रहे थे । सभी कार से गये । बड़े साहब ने मुझसे भी बोला तुम सपरिवार तैयार रहना कार तुमको भी स्अेषन तक छोड देगी पर कार नही आयी । बड़ी मुष्किल से स्टेषन पहुंचा ट्रेन को हरी झण्डी हो गयी था । आते समय भी स्टेषन से मैं और मेरा परिवार आटो करके घर आये । कई दिन बात एक अधिकारी बोले ज्ञानप्रकाष स्टेषन आटो का किराया कितना लगता है, टी.ए.बिल बनाना है ।
नरायन-जब तक आदमी की नियति साफ नही होगी समानता और सद्भावना तो उपज ही नही सकती सामन्तवाद और रूढिवादी विचारधारा से पोशित दिलों में । ऐसे लोग दीन दुखियों को चैन तो नही बेचैन रखने के लिये मुट्ठी भर भर आग जरूर बोते रहेगे ।
ज्ञानप्रकाष-छोटा होने दुख मुझे बार बार मिलता है । कुछ साल पहले डी.पीसी.थी । बाहर से अधिकारी आये हुए थे । डी.पीसी. की रिपोर्ट मैने ही टाइप किया । अधिकारी लोग पिकनिक पर चले गये । मैं रिर्पोट लेकर आठ बजे रात्रि तक बैठा रहा । इसी बीच दफतर में बड़े पद पर काम करने वाले चतुरमाणिक रोनाधर आये और मुझसेे हमदर्दी जताते हुए बोले क्येां बैठा है रे ज्ञानप्रकाष तुम्हारी घरवाली खटिया पर पड़ी है । घर जाना था ना । मैने कहा साहब ऐसी बात है कैेसे जा सकता हूं । चतुरमाणिक रोनाधर बोले अरे तू जा मैं बता दूंगा । साहब लोग तो कल जायेगे । खुद पिकनिक मना रहे है । छोटे कर्मचारी को बंधुवा मजदूर बना दिये है । तू जो मैं दे दूंगा रिर्पोट तू चिन्ता न कर जा । मेरी अक्ल पर पत्थर मार गया मैं चला गया । मेरे जाते ही साहब लोग भी आ गये । चतुरमणिक रोनाधर ने मेरी षिकायत कर दी । वह बड़े साहब का खास हो गया । मेरी नौकर जाते जाते बचाी थी ।
नरायन- चतुरमाणिक रोनाधर तो तनिक भी अच्छा नही किया खुद को उपर उठाने के लिये छोटे कर्मचारी के उपर उल्टेपुल्टे इल्जाम लगा दिये । रोटी रोजी पर लात मारने पर उतर गया । कैसा अमानुश है ।
ज्ञानप्रकाष-भइया नरायन जब से आंख खुली है तब से ही जख्म पर जख्म मिल रहा हैै। आदमी द्वारा खड़ी की गयी मुष्किले मुट्ठी की आग भांति तड़पा देती है ।
नरायन-ठीक कह रहे हो भइया जातिवाद,उूंच-नीच का भेद मुट्ठी भर आग ही तो है ।
ज्ञानप्रकाष-इसी मुट्ठी भर आग की लपट में तो झुलस रहा हूं । भेद की मुट्ठी भर आग न होती तो हमारी उन्नति के रास्ते बन्द ना होते । मेरी षैक्षणिक योग्यता जातीय योग्यता के आगे एकदम से छोटी हो गयी है सामन्तवादी व्यवस्था के चक्रव्यूह में फंसकर । चुभती यादों में अच्छाई ढूढने का प्रयास कर रहा हूं ताकि जिन्दगी बोझ न बन सके ।
नरायन-बढिायां सोच है । गरीबों की राह में कांट बिछाने वालों का मन परिवर्तित होने मे भइया आपका कृतित्व सहायक होगा । तुम इतिहास रच रहे हो । तुम्हारी राहों में कांटा बिछाने वाले एक दिन तुम्हारे उपर गर्व करेगें ।
ज्ञानप्रकाष- मेरे साथ छल तो विशमतावादी आदमी कर रहा है । चहुंओर से आती अजगरों की फुफकार से लगने लगा है कि मेरी योग्यता का यौवन नही निखर पायेगा । मेरे आंसू पाशाण पर दूब उगा दे यही भगवान से प्रार्थना है ताकि सद्भावना की जड़ों को बल मिल सके ।
नरायन-तुम्हारा दुख सहकर दूसरों के सुख के लिये जीना जरूर सद्भावना के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित होगा ।
ज्ञानप्रकाष-मैं तो समानता की अभिलाशा में जहर पी रहा हूं । योग्यता को हारता हुआ देखकर भी कर्म से मुंह नही मोड़ रहा हूं ।
नरायन-सच व्यवस्था में जातिवाद की फुफकार हक मार रही है ।गरीब गरीब होता जा रहा है ।जातिवाद की महामारी इंसानियत को डंस रही है इसके बाद भी समाज और लोकतन्त्र के प्रहार जाति तोड़ो के अभियान को हवा नही दे रहे हैं । जातिवाद देष और समाज को कोई तरक्की नही दे सकता । धर्मनिर्पेक्षता का नारा बुलन्द करने वाले जातिनिर्पेक्षता को क्यो भूल जाते हैं । जब तक जातिवाद की आग सुलगती रहेगी कमजोर वर्ग पूरी तरक्की से तरक्की नही कर पायेगा ।
ज्ञानप्रकाष-हां भइया इसी महामारी ने तो मेरी योग्यता को डंस लिया है । मुझसे कम योग्यता वाले बड़ी बड़ी पोस्टों पर विराजित होकर मुझे चिढाते है ,क्योकि मेरे पास जातीय श्रेश्ठता नही हैं । वह कम्पनी जहां मैं नौकर हूं वह सामन्तवादी व्यवस्था द्वारा षासित है । वहां मुझ कमजोर की योग्यता आंसू बहा रही है ।
नरायन- तुम्हारी चुभती यादों के बयान से तो सच्चाई झलक रही है ।
ज्ञानप्रकाष- बहिश्कृत होकर भी पत्थर दिलों पर सद्भावना की बेल उगाने की कोषिष कर रहा हूं ।मेरा भविश्य तो तबाह हो गया हे पर मैं नही चाहता कि किसी और कमजोर की षैक्षणिक योग्यता को जाति का ज्वालामुखी न भस्म करें ।
नरायन-विज्ञान के युग में योग्यता को जातिवाद के तराजू पर तौला जा रहा है । यह तो अन्याय है,साजिष है । इस तरह से तो कमजोर तबके का आदमी तो कभी उबर ही नही पायेगा ।
ज्ञानप्रकाष-मैं कहां उबर पा रहा हूं । वर्णवाद की मुट्ठी भर आग ने मेरी षैक्षणिक योग्यता को डंस लिया है । मेरे आंसू भी उपहास बन रहे है । कुछ षीर्श पर बैठे लोग भी भविश्य तबाह करने की प्रतिज्ञा कर चुके है ।
नरायन-तुम्हारा कर्म के प्रति सच्चा समर्पण जरूर क्रान्ति लायेगा । तुम तो भविश्य को सुलगता हुआ देखकर भी सामाजिक न्याय के लिये काम कर रहे हो । पत्थर दिल जरूर पसीजेगे ।तुम समानता के लिये कलम चला रहे हो ऐसे ही चलाते रहे । ठीक है तुम्हारी पदोन्नति में जाति बाधा बनी हुई है पर तुम एक दिन हर दिल अजीज बनोगे । तुम्हारा त्याग व्यर्थ नही जायेगा ।
ज्ञानप्रकाष-सामाजिक कटुता की जड़ में सद्भावना की खाद डालने का प्रयास कर रहा हूूं अपनी कलम के भरोसे देखो कहा तक सफल होता हूं ।
नरायन-सभी विष्व प्रसिध्द लोग प्रतिकुल परिस्थितियों में तपकर कुन्दन हुए है। प्रतिकुल परिस्थितियां आदमी को अमरता प्रदान करती है ।
ज्ञानप्रकाष-चुभती यादें चैन तो नही लेने देती फिर भी सम्भावना के रथ पर सवार होकर समानता के लिये खुद को स्वाहा कर रहा हूं मौन ताकि कल का सूरज सामाजिक समानता लेकर आये ।
नरायन-ज्ञानप्रकाष तुम्हारे हर षब्द में चुभती यादों की कराह समायी हुई है । जब से तुमने होष सम्भाला है तब से ही प्रतिकुल परिस्थियों से गुजर रहे हो। चुभती यादों के जख्म ढो रहे हो पर तुम टूटे नही । ज्ञानप्रकाष तुम्हारा हौषला जरूर श्रेश्ठता प्राप्त करेगा कहते हुए नरायन माथे से चू रहे पसीने को पोछे और जाति के नाम पर भविश्य बर्बाद करने वालों मुर्दाखोरों के नाम पर थू-थू करते हुए अपने गन्तव्य की ओर दौड़ पड़े ।
डां.नन्दलाल भारती
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