दादी माँ माँ को ही नहीं हमें भी खूब गाली देती थी पर पूरा परिवार दादी माँ की सेवा सुश्रुखा करता था। कभी कभी दादी माँ अपनी जबान को धारदार बनाये रखने के लिए माँ से झगडा भी बिना वजह कर लेती थी पर माँ को कहा फुर्सत थी .माँ पिताजी दे बराबर गृहस्थी की गाडी खीचने के लिए पसीना बहांती थी .उम्र की मार ने दादी की दोनों आँखे छीन ली .चाचा -ताऊ पयायाँ कर गए क्योंकि गाँव में कोइ पुश्तैनी मिलिकियत तो थी नहीं और नहीं बढ़ाते परिवार के जीने का कोइ सहारा .मेरी माँ दादी की कितनी भी सेवा कर ले पर माँ को ही कम लगता था पर दादी थी की खुश न होती थी ..अन्तोगत्वा एक दिन दादी माँ की गाली एकदम से बंद हो गयी। दादी स्वर्ग सिधार गयी .दादी की गाली से उपजा आशीर्वाद मेरे परिवार के लिए इतना सुखकारी साबित हुआ कि आज पूरी बस्ती में मेरे परिवार इतना सुखी कोइ नहीं है मिट्ठू .....
बुजुर्गो की सेवा कर्तव्य और तपस्या है .बुजुर्गो का आशीर्वाद जीवन की श्रेष्टतम सफलता जगत बाबू .काश ये मन्त्र युवा पीढी समझ लेती ..
डॉ नन्द लाल भारती
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