देश प्यारा
सच जनाब,आदमियत
किसी भाषा की मोहताज नहीं होती
ढूंढ लेती है अपनी पहचान
गढ़ लेती है समझ की अपनी भाषा
वाह रे आदमियत की अभिलाषा।
सम्बन्धों को बिना किसी अड़चनों के
आदमी को प्रेम के कच्चे धागे से
जोड़ देती है,
तोड़ देती है
जाति-धर्म की दीवारें जनाब
मिट जाती है ,
जाति-धर्म की हर बाधा जनाब ।
सच जनाब
आदमियत को मिल जाए,
गर अपने हिस्से की पहचान
शेष रह जाता है
आदमियत बस एक धर्म
परमपिता परमात्मा एक श्रीमान।
सच जनाब मिट जायेंगे
आडम्बर सारे,हट जायेंगे मुखौटे
निखर जायेगी आदमियत
लाल लहू एक रंग की होगी पहचान
तब निकली हर बात एक होगी
आदमी समान सब,
एक भगवान की बात होगी ।
इक्कतीस अगस्त २०२४ को
मिला था मुझे करेला के इरापेट के गांव
घनघोर जंगल आकाश छूती
पेड़ के खेतों के बीच खूबसूरत घर
बेबीचन और कुंजूमोल का
हंसता-विहसता खेलता-खाता परिवार
उभर गयी थी आदमियत की परिभाषा
था इसाई परिवार सदाचार की भाषा
एक देश भारत जान से प्यारा
तिरंगा और संविधान यही हो प्यारा ।
जाग गई सोती प्रीति जनाब अब
उभर गयी आदमी सब एक समान अब
एक परमपिता परमेश्वर जनाब
काश हो जाते सच सपने सारे
टूट जाती जाति-धर्म की दीवारें
पा जाता पहचान देश हमारा
सोने की चिड़िया बन जाता
विश्व गुरु जगत को प्यारा
अशोक महान,बुद्ध का देश प्यारा
जय आदमियत जय संविधान
विश्व गुरु जय-जय-जय,
महान देश हमारा।
नन्दलाल भारती
०१/०९/२०२४
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