Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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देवता तो नहीं

 

मैं देवता तो नहीं पर ,
दुश्मनों की नब्ज पढ़ लेता हूँ ,
जीवन देने वाले की कसम ,
सच कहता हूँ ,
दुश्मनों के बीच दोस्त की तरह ,
सफ़र करता हूँ ,
सफ़र में मधुमास हुआ विरान ,
मिले दहकते जख्मों के निशान ,
दर्द के साथ जीवित है अरमान ,
उनकी बेरुखी निगल गयी अपनी जहां ,
लाख टूट कर भी ,
मरते सपनो की शैय्या पर ,
करवटे बदल ले रहा हूँ ……।
हारा हुआ मान रहे है नसीब के दुश्मन ,
जाति -पद-दौलत के तराजू पर नाप कर ,
बावला कद की तुला पर ,
खुद जीता हुआ समझ रहा हूँ ,
धृतराष्ट्र तुगलकी सरकार ,जातिवाद ,
भाई भतीजावाद फरमान दरबारी ,
शूद्र गंवार ढोल पशु नारी की भांति ,
शोषित हो गया ताड़ना का अधिकारी ,
कहाँ हार मानता ,
वफ़ा का राही समता का सिपाही
पूरी होश में पत्थरो पर लकीर
खींचने में टूट रहा हूँ ,
गम तो कोई और नहीं ,इतना सा गम है
उम्र के रोज-रोज कम होने का दर्द है
हर दर्द के बोझ तले दबा ,
पत्थरो के जंगल में ,
समता की पौध रोप रहा हूँ ,
सच मैं कोई देवता नहीं
कैद नसीब का मालिक दर्द से दबा,
शोषित इंसान हो गया हूँ
दुश्मनो के बीच दोस्तों की तरह सफ़र कर रहा हूँ ..........

 


डॉ नन्द लाल भारती

 

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