धरती के परमात्मा
धरती के परमात्मा
मां माटी मे मिल चुकी हैं
पिता जीवन और मौत से जूझ रहे हैं
घुटने साथ छोड़ चुके है
आंख और आवाज आज भी
रौबदार हैं,
मैं नहीं चाहता पिता दुनिया
छोड़ दे
पिताजी भले ही शरीर से
अक्षम हो चुके हैं
वक्त था जब उनके शरीर मे
शेर जैसा पैरूख था
वही शेर जैसे पिताजी
खटिया मे धंस चुके है
मौत भी गले लगा चुकी है
जीने की इच्छा ही नहीं
अपनों को आसमान छूते
देखने की इच्छा
जीवन दे रही हैं
यही हमारी भी इच्छा
पांव मे नौकरी की जंजीर है
पिता से दूरी की मजबूरी
माता पिता की तपस्या थी यही
मां दुनिया को अलविदा कह चुकी हैं
पिता हमारे सपनों को उम्र दे रहे
हम उनके स्वास्थ्य की प्रार्थना कर रहे
पिता की याद काफी जा चुकी है
खुद को भूल रहे हैं
चटकती हड्डियों का दर्द याद
आ जाता हैं उनको
गले से ना उतरता है न अन्न
पिता की दशा से रोता रहता है मन
मलाल तो है हमें भी
पिता से न मिल पाने का
असीम खुशी भी है
पिता के सपनों को जोड़ रहे हैं
सांसों मे माता पिता को बसाये
अपने भी सपनों को सीये जा रहे हैं
हमारे पिता हमारी जिंदगी हैं
बंदगी है पिता के चरणों मे
प्रार्थना है परमात्मा से
हमारे धरती के परमात्मा को
जमीन पर एक बार खड़ा तो कर दो.....
डां नन्द लाल भारती
20/02/2021
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