जहां देखो वही गढडा खोदते रहते हो,कुछ नया कर रहे हो क्या चिन्तानरायन ?
नया तो नहीं हां एक प्रयास कर रहां हूं दयाल भाई ।
कैसा च्रयास ?
आम की गुठलियां बो रहा हूं।
आपके किस काम आएंगे ,आपके बोये आम के बीजो से बने पेड़ और उस पर लगे फल चिन्तानरायन ?
आपके कहने का आशय समझा नहीं ?
जब तक ये पेड़ बनेगे तब कहां होगे पता है ?
जी दयाल बाबू ,रिटायर हो जाउंगा,टाउनशिप से बेदखल हो जाउंगा,यह भी हो सकता है कि धरती पर भी नहीं रहूं।
सब कुछ जानने के बाद भी तपस्या विन्तानरायन ?
दूसरों के लिये,जिन सरकारी आवास के आसपास आम के पेड नहीं हैं, उन रहवासियों को भी आम के फल मिलेंगे और............
और क्या ?
आमफल के लिये अपामनित नही होने पड़े ललू झकमाना जैसे पत्थर दिल लोगों से। पेड़ तो वैसे जीवनदायी है हीं इनसे पर्यावरण की सुररक्षा भी होगी,मैं भले ही नहीं रहूंगा पेड तो रहेगे दयालबाबू।
वाह रे चिन्तानरायन क्या तुम्हारी दूरदृष्टि है।
डां नन्दलाल भारती
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