Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

दुआ है हमारी

 

ख़ुशी एकदम से बढ़ गयी थी
पाँव जमीन पर नहीं पड़ रहे थे
हौशले को पर लग गए थे
घर-मंदिर गमक उठा था
अगर बत्ती से उठा धुँआ
एकदम से सुगन्धित हो उठा था
दीवार पर टंगी तस्वीरे ,विहस उठी थी जैसे
बात ही कुछ ऐसी थी
बेटा का फ़ोन था
पहली नौकरी की पहली तनख्वाह जो मिली थी
हजारों कोस की दूरिया मिट चुकी थी
बेटा परदेस में होकर सामने बतिया रहा था
उसकी ख़ुशी दिल को बसंत लूटा रही थी
नोटों के बण्डल हाथ पर रख रहा था जैसे
बाप का दिल झूम उठा था
ज्ञान-तन- धन बल का ढेरो आशीष
झराझर बह रहा था
रेगिस्तान में बसंत का एहसास करते हुए बोला
भागवान कहा हो
बेटवा जिम्मेदारी संग अधिक फिक्रमंद हो गया
वह बोली कहा है
भागवान फ़ोन पर है
फोन लेते ही वह झूम उठी
बोली जीओ मेरे लाल सदा रहो खुशहाल
भगवान् खूब तरक्की बख्शे तुम्हे
भगवान पर विश्वास रखना
तुम्हारी खुशी अपने जीवन की साध है
हर माँ-बाप का बेटा हो तुम्हारे जैसे
उनकी छाती को खुशियाँ मिले बसंत जैसे
दिन-दूनी रात चौगुनी तरक्की करना
दुआ है हमारी
कर्म-फ़र्ज़ कभी ना भूलना
यही ख्वाहिश मानना हमारी
सूरज हो चाँद ज़िंदगी हो हमारी
तुम्हारी खुशियों में ज़िंदगी हमारी
खुश रहो मेरे लाल
बरक्त बरसे सदा तरक्की मिले मनचाही
मुबारक हो पहली तनख्वाह
दुआ है हमारी ................

 

नन्द लाल भारती १८.०९.2012

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ