Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

फरिस्ता

 

 

आदमी के रूप में फरिस्तों
क्यों नहीं पहचान रहे ,
खुद को ,
क्यों खून के आंसू दे रहे ,
दीन को।
तुम्हारा तन वतन है ,
खुद का ,
क्यों नहीं ध्यान नाम खुद का।
क्यों मिटा रहे
खुद के निशान आज ,
संवार डालो ,
जिनके बिगड़े हैं आज।
तुम सदा मुस्कराते,
रह जाओगे
खुद को दीन -दुखिओं के ,
बीच पाओगे।

 

 

 

डॉ नन्द लाल भारती

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ